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क्या बीजेपी की सहमति से अलग हो गये चिराग

क्या बीजेपी की सहमति से अलग हो गये चिराग

बिहार की राजनीति में पासवान परिवार को मौसम वैग्यानिक कहा जाता है.कहते है वो ये भांप लेते है कि हवा किस तरफ बह रही है . इसलिए अब जब चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर उन 143 सीटों पर चुनाव लडने का ऐलान कर दिया है जिसमें जेडीयू चुनाव लड रही है तो सवाल उठने लगा है कि क्या चिराग पासवान इस बार बीजेपी के कहने पर ही अलग हुए है और चुनाव में वो बीजेपी की बी टीम की तरह होकर नीतिश को नुकसान पहुचायेंगे .चिराग ने कहा भी है कि वो बीजेपी के साथ है नीतिश के नहीं . तो समझते है कि असल में बात क्या है .

चिराग पासवान भी राजनीतिक स्थिति भांपने में माहिर है। बता दें कि चिराग पासवान ने जब राजनीति के क्षेत्र में अपना कदम बढ़ाया था तब उनके पिता रामविलास पासवान राजनीति के मुश्किल दौर से गुजर रहे थे। उसी वक्त बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो नरेंद्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट किए जाने के खिलाफ थे, वे बीजेपी से अलग होकर बिहार में नए साथी की तलाश कर रहे थे। उस समय एलजेपी का ग्राफ तेजी से नीचे की ओर जा रहा था और यूपीए में रहने की वजह से धर्मनिरपेक्षता के नाम पर रामविलास पासवान के लिए एनडीए में शामिल होना मुश्किल लग रहा था। तब चिराग पासवान ने एलजेपी को इस मुश्किल घड़ी से निकाला और देश का मूड भांपते हुए अपने पिता रामविलास पासवान को मनाकर पार्टी को एनडीए का हिस्सा बनवाया। आज चिराग पासवान के इसी सियासत की समझ की वजह से रामविलास पासवान नरेंद्र मोदी की सरकार में दूसरी बार मंत्री बने हैं।

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने 42 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन, जीत का स्वाद मात्र दो सीट पर ही चखने को मिला था। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ एनडीए में एलजेपी के अलावा जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा ( HAM) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) शामिल थी। 2015 चुनाव के दौरान एनडीए में सीट बंटवारे का मामला हो या पार्टी के टिकट बंटवारे का फैसला, हर फैसले में चिराग पासवान की मौजूदगी रही थी। लेकिन, 2020 के विधानसभा चुनाव में स्थिति बदल गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले और सरकार बनाने वाले नीतीश कुमार घर वापसी कर चुके हैं। नीतीश के एनडीए में वापसी के बाद से ही चिराग पासवान का कद एनडीए में घटने लगा और वे मुख्यमंत्री के खिलाफ हो गए।

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