महाराष्ट्र में कोरोना के फैलाव को लेकर बीजेपी आक्रामक है और लगातार सरकार पर नाकाम होने का आरोप लगा रही है तो तीन दलों की सरकार आघाडी सरकार जवाब देने में लगी है . ये सब जानते है कि सरकार बीजेपी की भी होती तो कोरोना का यही हाल होता लेकिन कोरोना में लगातार बढते नंबरों ने बीजेपी को मौका दे दिया है .इसके साथ ही हाशिये पर खडे होकर बीजेपी का साथ दे रहे नारायण राणे जैसे नेता राष्ट्रपति शासन लगाने की बात कर रहे हैं लेकिन अंदर की बात ये है कि ये तो बस ट्रेलर है फिल्म अभी बाकी है .
दरअसल भाजपा के शीर्ष नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह किसी भी तरह से राष्ट्रपति शासन लगाने के पक्ष में नहीं है . अमित शाह ने खुद इस विषय पर पूर्व मुखयमंत्री देवेंद्र फणनवीस और भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल से बात की है .उनको ये साफ संदेश दिया गया है कि अगर सरकार अपने ही बोझ से गिरे तो कोई बात नहीं .इसी को समझ कर देवेन्द्र लगातार चालें चल रहे हैं .अभी इतना लगातार आक्रामक होकर हमले इसलिये कर रहे हैं ताकि आघाडी सरकार में ये संदेश जाता रहे कि सरकार ज्यादा दिन नहीं चलने वाली हैं .इसके कई फायदे एक साथ हो रहे हैं एक तरफ ब्यूरोक्रेसी जो कोरोना में सबसे अहम हो गयी है वो काम नहीं कर रही उसे लगता है कि बीजेपी सरकार आ गयी तो कीमत चुकानी होगी दूसरा आघाडी सरकार में आपस में अविशवास पनप रहा है और इसी में कुछ विधायक पाला बदल सकते हैं .
ये सच भी है कि किसी भी सरकार में सब कुछ सही नहीं होता खासतौर पर तब जब तीन दलों की सरकार हो . देवेन्द्र फणनवीस को मालूम है कि अगर उदधव सफल हो गये तो बीजेपी और उनके लिए रास्ते बंद हो जायेंगे . देवेन्द इसी वजह से कई बार हडबडी में भी कदम उठा रहे हैं जैसे बिना तैयारी के ही सरकार के खिलाफ आँदोलन का ऐलान कर दिया जो नहीं हो सका . फिर खुद को सबसे बड़ा साबित करने के लिए हेल्पलाईन खोल दी जबकि संगठन साथ नहीं है . अब फिर से तूफान खड़ा करने की कोशिश है .
यहां तक कि सातारा महाराज उदयन राजे को राज्यसभा और रंजीत सिंह मोहिते पाटिल को विधानपरिषद भेजकर संदेश भी दिया कि जो भाजपा में आयेगा उसको इनाम मिलेगा लेकिन आघाडी के विधायक अभी डर रहे हैं वो ये भी जानते है कि अगर कम नंबर में बाहर गये तो फिर उदयन राजे की तरह हार भी सकते हैं. मगर मुश्किल ये है कि आघाडी के तीनों दलो में दरार बढती जा रही है आपसी भी और अंदरुनी भी .
शिवसेना में कई लोग नाराज है कि उनको मंत्रिमंडल या महामंडल नहीं मिला जबकि अब भी विधानपरिषद से चुने गये लोग ही सरकार में अहम है .वहां भी उदधव और आदित्य गुट की लड़ाई है . संजय राउत उसमें छौंका लगाते हैं . एनसीपी में चाचा भतीजे की लड़ाई है . शऱद पवार के बताये कामों को अजीत पवार अडंगा लगा रहे है जिससे ट्रांसफर पोस्टिंग तक पर झगडा हो रहा है . कांग्रेस नेता विहीन है . थोरात और अशोक चव्हाण की पटती नहीं तो दिलली तक नेता को लेकर भ्रम है .राहुल गांधी ने तो जिम्मेदारी ही झटक ली थी बाद में पवार के कहने पर सोनिया गांधी ने दखल दिया तब राहुल ने उदधव से बात की और अगले दिन संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस हुयी .
इन सबसे अलग सरकार का एक अर्थशास्त्र है . ये सबको समझ में आ रहा है कि बिना केन्द्र सरकार के सहयोग के सरकार नहीं चलने वाली इसलिए उदधव लगातार केन्द्र में मोदी से पंगा नहीं लेते बल्कि जब चाहे सुधार लेते हैं. बीजेपी में भी कई लोग है जो कहते है कि शिवसेना को हमेशा के लिए छोड देना ठीक नहीं है . यही वजह है कि राष्ट्रपति शासन लगाने की कोई जल्दबाजी अभी नहीं होगी बल्कि सरकार को लगातार अस्थिर करने की कोशिश होती रहेगी ताकि दीवाली तक अपने ही बोझ से सरकार गिर जाये तब बीजेपी के पास कई विकल्प होंगे .तब तक कई समीकरण बनेंगे और बिगडेंगे भी .