महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार से भी होशियार कहे जाने वाले मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस अकेले पड गये हैं. यहां तक कि शिवसेना से बात करने के लिए उनको कोई साथ नही दे रहा . मंत्रिमंडल में भी उनके पुराने सहयोगी और तारणहार रहे गिरीश महाजन तक चुप बैठे हैं . प्रदेश अधयक्ष चंद्रकांत पाटिल और वरिष्ठ सहयोगी सुधीर मुनगंटीवार तो खार खाये बैठे है और पंकजा मुंडे चुनाव हारने के बाद से ही घर पर है.
दरअसल दिल्ली में नरेंद्र और मुंबई में देवेन्द्र का नारा देने वाले मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस के बारे में कहते हैं उनमें पुणे की पेशवाई का खजाना देखने वाले फणनवीस परिवार का खून बहता है और वो हिसाब किताब बखूबी जानते हैं . पांच साल की सरकार में उन्होने खूब ये किया भी और लोग ये कहने लगे कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक से दस तक केवल फणनवीस ही है लेकिन इस बार उनकी चाल उन पर ही उल्टी पड गयी.
फणनवीस ने पहले तो बीजेपी में अपने सारे प्रतिद्वंदी नेताओं को किनारे किया . वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे को मंत्रिमंडल से हटाया और फिर टिकट भी नहीं दिया . फिर चिक्की घोटाले में पंकजा मुंडे का कद घटाया और पंकजा तो चुनाव तक हार गयी . शिक्षा मंत्री रहे विनोद ताव़डे को पहले एक मंत्रालय छीनकर कट टू साईज किया और बाद में चुनाव तक नही लडाया . आवास मंत्री रहे प्रकाश मेहता को भी टिकट नही दिया. केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के खास रहे बाबनकुले को भी टिकट नहीं दिया. पूरी बिसात ऐसी बिछाई कि अबकी बार अगर बीजेपी को बहुमत मिलता तो कह पाते कि सब कुछ फणनवीस ने दिलाया लेकिन चुनाव होते होते उनकी सांस फूलने लगी ..सबके विरोध के बाद भी कई नेताओ को दूसरी पार्टी से भाजपा में लिया लेकिन उनमें से कई बडे नाम हार गये .इसके साथ ही पार्टी की राय के बाद भी शिवसेना से समझौता किया जिससे पार्टी के ही कई नेता नाराज हो गये और बागी बन गये जिससे बीजेपी कई सीटें हार गयी . कुल मिलाकर अबकी बार बीजेपी सरकार का नारा देने वाले फणनवीस की रणनीती ही चूक गयी.
अब हाल ये है कि शिवसेना जो कभी उनके साथ थी और लोग कहते थे कि फणनवीस के पास जादुई मंत्र है जिससे वो शिवसेना प्रमुख उदधव ठाकरे को मना लेते हैं .वो भी नाराज है. शिवसेना तो खुलकर उनके खिलाफ बोलने लगी है. शिवसेना को लगता था कि फणनवीस उनसे बात करके ही बयान देगे लेकिन फणनवीस ने बिना बातचीत के ही कह दिया कि सीएम तो बीजेपी का ही होगा पूरे पांच साल के लिए .उस पर कोई समझौता नही होगा .इससे शिवसेना और भडक गयी . हाल ये है कि शिवसेना अब भाजपा के केन्द्रीय नेता नितिन गडकरी और गृहमंत्री अमित शाह के अलावा किसी और से बात करने तक तैयार नही है.
अब फणनवीस दिल्ली जाकर मदद मांग रहे है . मुंबई में शिवसेना को मंत्रालय देने पर उनके ही साथियो में तकरार चल रही है . पिछले हफ्ते एक बैठक में फणनवीस ने शिवसेना को वित्त और राजस्व मंत्रालय देने का प्रस्ताव रखा था तो दो बडे नेताओं ने कह दिया कि आप अपने पास के गृह और शहरी विकास मंत्रालय ही क्यों नही देते .वैसे भी राजस्थान के सीएम के पास एक भी मंत्रालय नही .सीएम तो मुखिया होता है उसको मंत्रालय की क्या जरुरत है.जाहिर है खुद फणनवीस को भी ऐसे जवाब की उम्मीद नही होगी.
दरअसल उनका गणित ही गडबडा गया है कहां तो वो 144 प्लस की तैयारी कर रहे थे और कहां 105 तक गाडी रुक गयी .अब शिवसेना के बिना सरकार नही बनती .एनसीपी भी पिछली बार की तरह बिना शर्त समर्थन के लिए इस बार तैयार नही .यानि फणनवीस की होशियारी उन पर ही भारी पड रही है.
महाराष्ट्र के चुनाव से सबसे बडा संकेत भी यही गया है कि मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस की कुर्सी पर पकड कमजोर हो गयी है. वो मुख्यमंत्री बन भी गये तो उनको अब सबको साथ लेकर चलना होगा .उन पर ये भी दवाब रहेगा कि वो पहले की तरह सारे फैसले अकेले ही ना कर लें.राजनीती में वैसे भी कोई पकका दोस्त या दुशमन नहो होता लेकिन राजनीती मे ये भी कहते है कि नीचे की सीढी काटने के पहले इंतजाम कर लेना चाहिये कि लौटना पडे तो पैर कहां रखें.
– संदीप सोनवलकर
(वरिष्ठ पत्रकार )