26 मार्च को देशभर में राज्यसभा की सीटों पर होने वाले द्वीवार्षिक चुनावों ने कांग्रेस में ढकी हुयी राजनीती को उफका कर रख दिया . साफ तौर पर यही संदेश सामने आया कि राहुल कैंप के बाबा लोग अब और सब्र करने तैयार नही है. कहा तो ये भी जा रहा है कि खुद राहुल गांधी ने अपने लोगों को ये संदेश दिया था कि वो कुछ नहीं कर सकते क्योंकि वो अब अध्यक्ष नहीं है इसलिए उनके साथी चाहे तो कुछ भी करें .इस चुनाव ने राहुल की युवा टीम और पुराने कांग्रेसियों के संघर्ष को भी सामने ला कर रख दिया . अब इस गैप को भरने में कांग्रेस को बहुत कुछ करना होगा .
बगावत तो सिंधिया ने की लेकिन धमकी राहुल बाबा कैंप की तरफ से दीपेन्द्र हुडडा ने दी तो उनको टिकट थमा दी गयी .ऐसे ही शक्ति सिंह गोहिल को गुजरात में एडजस्ट किया गया जबकि वो भारी मतों से चुनाव हारे थे .इतना ही नहीं महाराष्ट्र में तो लोकसभा चुनाव लडने से डरकर पीछे हटने वाले राजीव सातव को टिकट दे गयी .उधर सिंधिया को परेशान करने वाले दिग्विजय टिकट पा गये .
खुद राहुल गांधी ने भी मीडिया से माना कि वो कुछ जयादा कर नहीं पाये क्योकिं वो अब अध्यक्ष नहीं है . राहुल ने ये भी कहा कि सिंधिया का दिल तो उनके साथ है लेकिन सिंधिया ने किसी मजबूरी में कदम उठाया .एक तरीके से सिंधिया को क्लीन चिट हैं
इस संदेश को सबसे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने समझा और कांग्रेस को राम राम ठोककर वो बीजेपी ही चले गये . अंदर की कहानी ये है कि करीब पंद्रह दिन पहले ही सिंधिया ने राहुल से दिल्ली लंच पर मुलाकात की थी और दिग्विजय सिंह कैसे उनको परेशान कर रहे है पूरी बात बतायी थी . तब राहुल ने उनको सलाह दी थी कि सोनिया गांधी को बता दें क्योंकि वही अधयक्ष है .सिंधिया ने सोनिया गांधी से भी मुलाकात की थी लेकिन कोई ठोस भरोसा नहीं मिला तो खुद का रास्ता चुन लिया .
दरअसल सिंधिया को लगने लगा कि उनको इसलिए किनारे किया जा रहा है क्योंकि राहुल भी पर्दे के पीछे चले गये हैं . यही बात राजस्थान में सचिन पायलट को लग रही है तभी तो पहले सचिन ने एक व्यापारी को टिकट देने का विरोध किया तो अनुभवी गहलोत ने दलित कार्ड खेलते हुए युवा नीरज डांगी को टिकट दिला दिया जिससे राजस्थान में कई पुराने लोग नाराज हो गये .
जिनको सीट मिलना थी उनमें से कई लोग भी रह गये . राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडे ने राजस्थान का चुनाव जितवाया और महाराष्ट्र में सरकार बनवायी लेकिन उनको कुछ नही मिला तो एनसीपी छोडकर कांग्रेस आये तारिक अनवर बिहार का चुनाव सामने होने पर भी कुछ ना पा सके ..यहां तक कि कई सहयोगी दलों ने कांग्रेस को खुले आम ठेंगा दिखा दिया . आरजेडी ने कांग्रेस की अपील ठुकरा दी तो एनसीपी ने भी कांग्रेस को दूसरी सीट नहीं दी . जाहिर है इन चुनावो के साथ ही कांग्रेस को सबसे पहले लीडरशिप का सवाल सुलझाना होगा वरना अबके चूके तो संभलना मुश्किल हो जायेगा.