संदीप सोनवलकर
पांच राज्यों के चुनाव नतीजों ने कांग्रेस के अप्रासंगिक होने का खतरा पैदा कर दिया है अब ये सवाल उठने लगा है कि कहीं कांग्रेस की हालत लेफ्ट की तरह तो नहीं हो जायेगी जो सिर्फ विचारधारा की बात करेगी लेकिन सत्ता और जनता की राजनीति से दूर हो जायेगी . खतरा गांधी परिवार की ब्रैंड वैल्यू पर भी है कि कहीं लोग ये न कहने लगे कि अब गांधी के बिना भी कांग्रेस चल सकती है . सबसे बड़े सवाल तो राहूुल गांधी पर होगे जिनकी टीम फ्लाप हो गयी . अब राहुल को फिर से अध्यक्ष बनना कांटो पर चलना होगा .
कांग्रेस का चुनाव प्रबंधन . सिदधू जैसे मसखरे पर दांव लगाना ,टिकटों का बेचा जाना और चुनाव मेंं केवल राहुल प्रियंका के प्रचार पर फोकस करना सब सवाल उठेंगे . साफ है कि अब केवल कुछ नेताओं को हटा देने से बात नहीं बनेगी अब तो पूरा घर ही बदलना होगा .
कांग्रेस ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन को लेकर कहा कि वह इस जनादेश से सबक लेगी और आत्मचिंतन करते हुए नए बदलाव एवं रणनीति के साथ सामने आएगी।
पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जल्द ही कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाने का फैसला किया है, जिसमें चुनावी हार के कारणों पर मंथन होगा।
उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों के जो नतीजे आए हैं, इससे भी अगर सबक नहीं लिया तो कांग्रेस का कोई कुछ भी नहीं कर सकता। ये नतीजे कांग्रेस के नेतृत्व, कांग्रेस के नेताओं, कांग्रेस के संगठन, कांग्रेस की चुनावी रणनीति, चुनावी प्रबंधन सभी पर समग्रता से विमर्श और मंथन की जरूरत बता रहे हैं। खास कर पंजाब, गोवा और उत्तराखंड के परिणाम कांग्रेस के लिए मीमांसा और मंथन का विषय है।
तीस साल से उत्तर प्रदेश की सत्ता से दूर कांग्रेस का इस चुनाव में अब तक का सबसे कमजोर प्रदर्शन सामने आया है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने 39 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल कर 269 सीटें जीती थी। नारायण दत्त तिवारी इसके अंतिम मुख्यमंत्री थे। तब से अब तक पार्टी का जनाधार गिरता जा रहा है। 1989 में यह मत प्रतिशत गिर कर 28 और 1991 में 18 पहुंच गया। इसके बाद प्रदेश कांग्रेस दृश्य से बाहर होती चली गई। 2017 में दहाई से नीचे जा गिरी और इस बार पांच सीट का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई। जो जीते, वे अपने दम पर जीते। पार्टी की भूमिका उनकी जीत में लगभग शून्य है। गांधी परिवार अपने गढ़ अमेठी और रायबरेली को भी नहीं बचा सका। पिछले चुनाव में रायबरेली की दो सीटें कांग्रेस जीती भी थी, जो अब भाजपा के पास जा चुकी है।