संदीप सोनवलकर वरिष्ठ पत्रकार
एक युवराज था वो हर बार नया खिलौना मांगता था .. दरबारी भी उसे नया खिलौना देते थे ताकि वो हमेशा बिजी रहे और इधर उधर ना देख सके ..युवराज खेलता रहा और राज लुटता रहा.. कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के लिए यही सही लगता है. अब राहुल गांधी ने गुजरात को प्रयोगशाला मानकर एक नया झुनझुना पार्टी के लिए बनाया है जिला कांग्रेस को सीधे ताकत देना..
ये युवराज का नया खिलौना है..इसके पहले भी वो कांग्रेस के साथ कई प्रयोग कर चुके हैं. राहुल गांधी वैसे तो 2004 से अधिकारिक तौर पर महासचिव बने और फिर कांग्रेस अध्यक्ष तक बने . कई हार के बाद हटे लेकिन अब भी पार्टी अपनी मर्जी से ही चलाना चाहते हैं. इसलिए नाम के लिए मल्लिकार्जुन खरगे भले ही पार्टी अध्यक्ष बने हुए है वो भी गैर गांधी परिवार से लेकिन असल में कांग्रेस तो राहुल गांधी ही चला रहे हैं.
राहुल के खास लोगों की एक टीम है जिसको उनके पीए अलंकार सवाई चलाते है वो कांग्रेस नेता मीनाक्षी नटराजन ,सचिन राव . सेंथिल और कृष्णा अलावेरु जैसे लोगों के साथ मिलकर हर बार राहुल गांधी को नया कार्यक्रम दे देते हैं और राहुल गांधी भी उसमें इतना बिजी हो जाते है कि फिर कई दिन तक दिल्ली में एआईसीसी में बरसों से जमे हुए नेताओं के कारनामों पर ध्यान देना भूल जाते हैं .. ये लोग भी जानते है कि युवराज को हर बार एक नया खिलौना देते रहे ताकि वो उसमें ही खुश रहें .
इस बार राहुल को नया खिलौना जिला कांग्रेस को मजबूत करने का दे दिया है. इससे राहुल गांधी और उनकी पूरी टीम गुजरात में काम पर लग गयी है. उस गुजरात में जहां कांग्रेस की संख्या एक चुनाव में 70 प्लस से घटकर 17 और पांच विधायकों के छोडने के बाद 12 पर आ गयी है. राहुल गांधी का कहना है कि वो अब एक नयी शुरुआत करना चाहते है जहां जिला कांग्रेस अध्यक्ष को ताकत देंगे और टिकट बंटवारे मे शीर्ष समिती में भी जिला कांग्रेस प्रमुख को बुलाया जायेगा..राहुल ये भी कह रहे है कि इस तरह वो आरएसएस और बीजेपी को हरा देंगे. राहुल की बात सुनने में अच्छी लगती है लेकिन कहते है न कि जब पूरे ही कुएं में भांग पड़ी हो तो बदलाव कहां से हो..राहुल ये बात समझ ही नहीं पा रहे कि 8 सालों से जमे पार्टी महासचिव के सी वेणुगोपाल से लेकर अजय माकन तक सब बस हां जी करने वाले लोग है और उनकी पूरी कोशिश है कि राहुल गांधी कहीं और बिजी रहे तो इधऱ ध्यान नहीं दे..
राहुल पहली बार प्रयोग नहीं कर रहे हैं. करीब बीस साल से कांग्रेस को चला रहे राहुल गांधी ने आते ही सबसे पहले एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस में सीधे चुनाव का फंडा दिया था उसके बाद से ही इन दोनों संगठनों का भट्टा बैठ गया और अब तो इनकी कोई सुनता तक नहीं है.. उसके बाद राहुल गांधी ने महिला कांग्रेस में कई प्रयोग किये और महिलाओं को 33 प्रतिशत तक भागीदारी देने की बात की लेकिन वो भी नहीं हो पाया और अब महिला कांग्रेस को अलका लांबा चला रही है जो एक बार आम आदमी पार्टी की सैर करके आ चुकी है.
राहुल ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों की नियुक्ति में बहुत से फेरबदल किये और कई जगहों पर अपने पसंदीदा लोगों को बिठाया लेकिन उनमें से कई तो पार्टी छोड़ गये और कई ने पार्टी को हार से भी नीचे पहुंचा दिया . गुजरात का ही उदाहरण लें तो राहुल गांधी ने हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर जैसे नेताओं को बढाकर गुजरात के पूरे संगठन को बरबाद कर दिया .. जब सब बड़े नेता घऱ बैठ गये तो हार्दिक और अल्पेश भी कांग्रेस छोड़ गये .. राहुल ने अपने साथ के कई युवा नेताओं को सरकार और पार्टी में बढ़ाया लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा और जितिन प्रसाद जैसे करीबी भी साथ छोड़ गये.. असल में राहुल गांधी ये समझ ही नहीं पा रहे कांग्रेस कैसे चलती है और जब उनको कोई भा जाता है तो वो उस पर इतना प्यार बरसाते है कि बाकी सब दुश्मन हो जाते हैं.. यहां तक कि एक बार तो राहुल ने पीके यानि प्रशांत किशोर पर भी इतना भरोसा कर दिया था कि पूरी पार्टी ही उनको देने वाले थे वो तो भला हो तो डीके शिवकुमार और अशोक गहलोत जैसे नेताओं को जिन्होनें सोनिया गांधी के जरिये इसे रुकवा दिया . वरना तो पीके कब पार्टी बेच देते पता ही नहीं चलता .अब वही पीके दिन रात राहुल गांधी को कोसते रहते हैं.
अब जिला कांग्रेस प्रमुखों को ताकत देने की उनकी बात वैसे तो बहुत बेहतर लगती है ..होना भी यही चाहिये कि पार्टी में ग्रास रुट के लोगों की बात सुनी जाये लेकिन मुश्किल ये है कि यहां भी राहुल की टीम ही जिला कांग्रेस प्रमुखों को बतायेगी कि काम कैसे करना है.. राहुल इसके पहले भी पार्टी में एक साथ 34 सचिव लाकर महासचिवो की ताकत करने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन ये सचिव भी किसी बाबू की तरह बस शीट भरकर भेज देते थे उनकी कोई सुनता नहीं था..
असल में राहुल को पहले तो ये समझना होगा कि अगर उनको कांग्रेस चलानी है तो खुद अध्यक्ष बनना होगा और हर परिणाम के लिए जिम्मेदार होना होगा . दूसरा जब बीमारी एक नहीं कई हो तो इलाज एक का करके काम नहीं होगा पूरे शऱीर को एक साथ ठीक करना होगा.. अब जिला प्रमुखों को ताकत देकर राहुल प्रदेश कांग्रेस को कमजोर कर रहे हैं .सब जानते है कि कांग्रेस में जिला प्रमुख कैसे बनते हैं और उनमें से कितने चुनकर आ सकते हैं.. राहुल इस कदम से पार्टी में टकराव का एक नया मोर्चा खोल रहे हैं. ऐसे बीजेपी से नहीं निपटा जा सकता ..राहुल को प्रयोग बंद करके पार्टी में बड़े बदलाव करने होंगे और सबको साथ लेकर चलने पर जोर देना होगा .. राहुल की टीम जो सिर्फ यस सर कहती है उसके नये नये प्रयोगों से पार्टी का फायदा कम नुकसान ही ज्यादा होगा.