लायलिस्ट शिंदे सवाल नहीं पूछते ..
संदीप सोनवलकर
इन दिनों दिल्ली के राजनीतीक गलियारे मे यही चर्चा है कि अगर राहुल नहीं तो कौन .राहुल साफ कर चुके हैं कि अध्यक्ष पद से इस्तीफे का फैसला नहीं बदलेगें ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के नाम पर सहमति बनने की बात चल निकली है . शिंदे फिलहाल चुप है और इंतजार कर रहे है . खुद शिंदे जानते है कि कांग्रेस में जब तक कुछ हाथ में ना जाये तब तक पता नहीं और क्या हो सकता है. शिंदे को हाथ में मौके आने और फिर निकल जाने का खूब अभ्यास है लेकिन उनकी सबसे बडी खासियत ही यही है कि शिंदे कभी भी आलाकमान के फैसले पर सवाल नही उठाते.
सन 2004 की बात है कि जब शिंदे दिल्ली से वापसी के महज कुछ महीने बाद भी महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की वापसी कराने में कामयाब रहे थे .उनको पूरी उम्मीद थी कि फिर से
मुखयमंत्री उनको ही चुना जायेगा .विधानसभा के ऊपरी हाल पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक चल रही थी . शिंदे पूरी तरह से तैयार थे . इस बीच तब विलासराव देशमुख ने एक बडा राजनीतिक दांव खेल दिया .एक खबर चलवायी कि सारे 38 मराठा विधायक उनके साथ है और हस्ताक्षरों वाला फैक्स दिल्ली भेज दिया .दिल्ली से अचानक फोन आया तो पर्यवेक्षक बनकर आये गुलाम नबी आजाद बाथरुम जाकर बात करने लगे .लौट कर आये तो कहा कि अब मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे …… उनके इतना कहते ही शिंदे समर्थकों ने पटाखे छोडकर मिठाई बांटना और जश्न मनाना शुरु कर दिया .चैनलों में भी यही खबर चलने लगी लेकिन आजाद ने एक बार फिर से सांस लेकर कहा कि अब मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे विधायक दल के नये नेता विलासराव देशमुख के नाम का प्रस्ताव रखेंगे. तमतमाये शिंदे ने कुछ नही बोला और चुपचाप देशमुख का नाम रख दिया . देशमुख मुख्यमंत्री बन
गये .
दुखी मन से शिंदे अपने बंगले वर्षा पहुंचे वहां उनके सारे रिश्तेदारऔर समर्थक दुखी थे. शिंदे ने उनसे बात की . गुससा भी उनको आया . कहने लगे कि जिताया मैने और सीएम कोई और बना लेकिन जब मीडिया से बात करने की बारी आयी तो यही कहा कि जो आलाकमान कहेगा वही करूंगा.. थोडी ही देर में एक और खबर आ गयी कि शिंदे को आंध्रप्रदेश का राज्यपाल बनाया जा रहा है . वो चुपचाप आंध्रप्रदेश चले गये .उनको पता था कि आलाकमान यानि गांधी परिवार को यही पसंद है . बहुत दिन नहीं बीते कि शिंदे को केन्द्र में ऊर्जा मत्री बनाकर फिर से प्रतिष्ठा दे दी गयी .यहां तक कि उपराष्ट्रपति का चुनाव भी उनसे लडवाया गया ये जानते हुये कि वो नहीं जीतेंगे लेकिन वो कुछ नहीं बोले .
ऊर्जा मंत्री बनने के बाद शिंदे ने सोलापुर में एनटीपीसी के पावर प्लांट की आधारशिला रखने के लिए
सोनिया गांधी को बुलाया था . सोनिया तब छुटटी मनाने अंडमान निकोबार गयी थी . वहां से वो पूरे पांच घंटे का हवाई सफर कर चार्टर्ड प्लेन से सोलापुर आयी . हवाईपटटी पर तब मैं भी मौजूद था . सोनिया गांधी जैसे ही उतरी तो तुरंत पलटी भी सब चौंक गये कि क्या हुआ .तभी उनके एक सुरक्षाकर्मी ने एक किताब लाकर दी . सोनिया ने उस पर कुछ लिखा फिर खुद ही एक थैली मंगाकर किताब उसमें डाली और शिंदे को दे दी . अगले दिन जब शिंदे से हमने पूछा कि क्या दिया तो एक किताब जिसके पहले पनने पर शुभकामनायें लिखी थी . किताब का शीर्षक था … मेकिंग आफ ओबामा … तभी हमको लग गया था कि शिंदे गांधी परिवार के कितने करीबी है और खुद सोनिया गांधी शिंदे को लेकर क्या सोचती है.
इस बीच जून जुलाई 2012 का समय चल रहा था पीएम मनमोहन सिंह की लीडरशिप पर लगातार सवाल उठ रहे थे . राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल रही थी कि क्या पीएम को बदला जायेगा.अगर बदला गया तो कौन होगा . जून के आखिरी हफ्ते की बात है . शिंदे उन दिनों भूटान गये थे .लौटकर आये सीधे दस जनपथ से बुलावा आ गया . वहां से मैं उनके साथ ही ऊर्जा मंत्रालय गया तभी देश भर में नार्दन ग्रिड के फेल होने और कई राज्यों में अंधेरा छा जाने की खबर आ गयी . शिंदे ने प्रेस कांफ्रेस की और जल्दी ही सब ठीक करने का भरोसा दिलाया . उसके बाद अकेले में मिले तो कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने गृहमंत्री और लोकसभा में पार्टी का नेता बनने की बात कही है . शिंदे खुश भी थे और कुछ सहमे से भी .मैने कुरेद कर पूछा तो पता चला कि बात तो उनको पीएम बनाने की हो रही थी लेकिन राजनीतिक चालबाजी में दस जनपथ में कुछ लोगों ने आदर्श को लेकर कान भर दिये और उनको रोक दिया गया . फिर मैनें पूछकर खबर चलायी और पांच मिनट बाद ही राष्ट्रपति भवन से अधिकारिक सूचना आ गयी कि शिंदे को गृहमंत्री बना दिया गया . ये शिंदे का अदालत में आवाज लगाने वाले से लेकर गृहमंत्री तक का सफर था .
शिंदे का राजनीतिक कैरियर भी कम उतार चढाव वाला नही रहा । अदालत में आवाज लगाने वाले कारकून से लेकर जब वो पुलिस में सब इंस्पेक्टर बने तभी शरद पवार ने उनको राजनीति का आफर दे दिया .नौकरी छोडकर पहला विधानसभा चुनाव लडे तो हार गये . तब पवार से बोले अब क्या करूंगा . पवार ने सब तरह से मदद की . एक साल के भीतर ही उनको हराने वाले उम्मीदवार की मौत हो गयी तो शिंदे फिर विधायक चुनकर आ गये और पवार ने आते ही उनको मंत्री बना दिया .
शिंदे लगातार गांधी परिवार के करीबी रहे है . 1998.99 में जब सुशील कुमार शिंदे उत्तरप्रदेश के प्रभारी थे तभी से प्रियंका के भी बहुत विशवसनीय बन गये. शिंदे ने तब सोनिया गांधी को पहला चुनाव लडवाया था रायबरेली से . शिंदे तब अकेले ही 18 राज्यो के प्रभारी महासचिव थे . तब से ही शिंदे गांधी परिवार का हर आदेश मानते रहे हैं. शिंदे जानते है कि गांधी परिवार अब भी दरबारी शैली में ही काम करता है और उस दरबार में लायलिस्टों का हमेशा ख्याल रखा जाता है.
गांधी परिवार को भी इस समय ऐसे व्यक्ति की तलाश है जिसको वो जब कहें तब हट जाये.इसके पहले गांधी परिवार को सीताराम केसरी और नरसिंहराव का अनुभव बेहद कडवा रहा है इसलिए अब कांग्रेस अध्यक्ष चुनते समय योग्यता या लोकप्रियता से ज्यादा पैमाना निष्ठा का होगा ।शिंदे इस पर खरे उतरते हैं . दूसरा नाम मल्लिकार्जुन खरगे का चल रहा है लेकिन खरगे कर्नाटक में ज्यादा रुचि रखते हैं.. शिंदे के विरोध में बस एक ही बात है कि वो अब 79 साल के हो गये है और मोदी शाह की अपेक्षाकृत युवा टीम का मुकाबला कैसे कर पायेंगे . वैसै कांग्रेस का फार्मूला तैयार है एक वरिष्ट को अध्यक्ष और चार युवाओं को उपाध्यक्ष जो काम कर सकें . लेकिन जब तक कांग्रेस ऐलान नहीं कर देती तब तक कुछ कहा नही जा सकता .