संदीप सोनवलकर
बिहार चुनाव के बाद लगातार कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर सवाल उठ रहे है . सब ये कह रहे है कि खतरा ये है कि चुनावी हार के साथ साथ कांग्रेस की साख भी नहीं चली जाये. जाहिर है कांग्रेस ने अब भी कदम नहीं उठाये तो उसकी हालत अजीत सिंह की लोकदल की तरह हो जायेगी जहां नाम तो बडे होगें लेकिन दर्शन छोटे .
कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने सही सवाल उठाया है कि क्या कांग्रेस ने हार को नियती मान लिया है . उनका कहना है कि कांग्रेस ये सोचकर नहीं बैठ सकती कि जब बीजेपी हारेगी तभी कांग्रेस जीत पायेगी तब तक कुछ करने की जरुरत नहीं है . कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारिक अनवर ने भी सही सवाल उठाया है कि सोचना पडेगा कि गलती कहां हो रही है. जाहिर है तुंरत सीडब्लयूसी की बैठक बुलाकर विचार मंथन करने की जरुरत है. ये नहीं कि बहुत वक्त बीत जाये तब बैठक बुलाये . राहुल को भी सवालों का सामना तो करना है पडेगा. सबसे पहले तो राहुल को बदलना होगा कि चुनाव कोई भी हो वो केवल लोकल लीडर्स के भरोसे नहीं लडा जा सकता है. बिहार का ही उदाहरण ले तो राहुल केवल तीन दिन गये और बाकी दिन शिमला में पिकनिक मनाते रहे .राहुल को सीजनल पालिटिशियन से सीजन्ड पालिटिशियन बनना होगा .बेहतर होता राहुल शिमला में बैठकर भी रोज शाम को सारे नेताओं से अलग अलग फीडबैक लेते रहते .अगर वो 70 सीटों के कार्यकर्ताओं से एक एक बार भी वर्चुअल ही सही मिल लेते तो कार्यकर्ता उत्साह में रहे. मोदी और अमित शाह तक पूरे चुनाव में बिहार में दिखते रहे .
गठबंधन पहले से हो
जिन राज्यो में कांग्रेस को पहले से पता है वहां तो कम से कम गठबंधन और सीटों का बंटवारा तय समय पर कर ले ताकि कार्यकर्ता को समय मिले . बिहार में नामांकन से दो दिन पहले सीट फाइनल की वो भी 70 सीट जिसमें केवल 19 जीत पाये . जबकि आरजेडी से समझौता करना है ये तो राहुल खुद तेजस्वी से मिलकर तय कर लेते उसके लिए बाकी नेताओं पर छोडने की जरुरत नहीं थी. राहुल को युवराज की मानसिकता से बाहर आना होगा .
उम्मीदवार चयन में ईमानदारी .
कांग्रेस उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया तो दिखावे के लिए पूरा करती है लेकिन असल में अंदरखाने सारे बडे नेता कोटे के हिसाब से आपस में सीट बांट लेते है कुछ पर तो सीट बेचने तक का आरोप लगता है. बिहार में स्क्रीनिंग में अविनाश पांडे को दिखावे के लिए रखा गये लेकिन असल में प्रदेश प्रभारी महासचिव शक्ति सिंह गोहिल और स्थानीय नेताओं ने टिकट बांट ली . एंकर रवीश कुमार के भाई ब्रजेश पांडे के रेप आरोपी होने पर नाम कटने के बाद भी फिर टिकट दे दी गयी . अचानक से आकर शरद यादव की बेटी और शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे का टिकट दे गयी . सवाल है कि जब तक ईमानदारी से जमीनी रिपोर्ट पर टिकट नहीं बंटेगी तो कैसे कांग्रेस जीतेगी. कांग्रेस को सबसे पहले टिकट वितरण की पूरी कवायद हो ही बदलना होगा . सर्वे कोई और करे, प्रभारी महासचिव और जिला अध्यक्ष अपने उम्मीदवार का नाम दे और स्क्रीनिंग कमेटी अंतिम फैसला ले. उसमें दिल्ली का दखल न हो . साथ ही सबकी जिम्मेदारी और दंड भी तय हो .
संगठन को मजबूत बनाये .
कांग्रेस को बीजेपी से ये तो सीखना ही होगा कि संगठन में किसी भी बाहरी को तब तक जगह नहीं जब तक वो साबित नहीं कर दे . टिकट भले ही जीतने वाले को मिले लेकिन संगठन उसी को जो पार्टी की विचारधारा से बंधा हो .साथ ही संगठन में काम करने वालों को चुनावी टिकट के अलावा बाकी फायदे दिये जायें ताकि वो लगातार काम करते रहें. संगठन को जाति के बजाय क्षमता के आधार पर बनाया जाये .
ये दो सुधार भी अगर कांग्रेस ने कर लिये तो कांग्रेस की हालत बहुत हद तक बदल सकती है.