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राज ठाकरे से फणनवीस की मुलाकात का सच क्या है ?

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस और राज ठाकरे ने पर्दे के पीछे मंगलवार की रात को चुपके चुपके एक बडे होटल में मुलाकात की . इस मुलाकात के पीछे की असली वजह हम बताते हैं . दरअसल देवेन्द्र फणनवीस राज ठाकरे के सामने प्रस्ताव लेकर गये थे कि अगर राज ठाकरे एनआरसी और सीएए के मुददे पर केन्द्र की मोदी सरकार के कदम का समर्थन करते हैं तो बदले में बीजेपी अगले मुंबई महानगरपालिका चुनाव में एमएनएस के साथ मिलकर चुनाव लडेगी .

दरअसल सत्ता से हटने के बाद बीजेपी को भी ठाकरे परिवार के किसी सदस्य का नाम चाहिये ताकि आम मराठी मुंबईकर और हिंदुत्व से जुडे लोग उसके साथ रहे . साथ ही केन्द्र की तरफ से भी फणनवीस को कहा गया है कि एनआरसी और सीएए के मुददे पर समर्थन दिलाये ताकि केन्द्र को राहत मिल सके .अभी राज्य में शिवसेना , कांग्रेस और एनसीपी तीनों मिलकर सरकार तो चला रही रहे है साथ ही वो नागरिकता कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का भी विरोध कर रहे हैं . शिवसेना में रहते हुए राज ठाकरे ही वो सबसे प्रखर वक्ता थे जो मुंबई में बढती भीड और बंगलादेशियों के आने पर बोलते रहे हैं. राज ने तो बाकायदा इस पर शिवसैनिकों के लिए प्रेजेन्टेशन भी दिया था .. बीजेपी चाहती है कि राज वैसा ही प्रेजेन्टेशन लेकर पूरे प्रदेश में सभायें करे जिनका बीजेपी समर्थन करेगी .

दरअसल विधानसभा चुनाव के बाद जब से शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लिया है तब से राज ठाकरे अकेले पड गये हैं . विधानसभा में भी उनका एक ही विधायक चुनकर आया साथ ही कई महानगरपालिकाओं में भी उनका खाता नही
खुला . राज ठाकरे को ये भी समझ आ गया है कि वो हिंदुत्व और मराठी अस्मिता के सवाल पर ही राजनीती कर सकते हैं.इसलिए वो अपनी पार्टी का झंडा भी बदल रहे है. अब तक केवल भगवा झंडे को ही अपनाने वाले है . राज मकर संक्रांति के बाद इसकी घोषणा करेंगें . बीजेपी के नेताओं को लगता है कि अगर राज ठाकरे साथ आये तो मुंबई में उनकी मदद मिलेगी लेकिन सबसे बडी मुशिकल उत्तर भारतीयों और हिंदी भाषी समाज की है जिसे राज ठाकरे की पार्टी के लोग पीटते रहे हैं.

अब फणनवीस ने राज ठाकरे को शिवसेना की तरह ही मी मुंबईकर मुहिम शुरु करने कहा है जिसमें मराठी के साथ साथ हिंदी भाषी .गुजराती और अन्य समाज को भी जोडा जायेगा . फणनवीस का मानना है कि बीएमसी चुनाव में शिवसेना कांग्रेस एनसीपी मिलकर लडते है तो तीनों दलो में बडी संख्या में बगावत होगी जिनको वो अपने और मनसे के बैनर तले टिकट दे सकती है. पिछले बीएमसी चुनाव में भी शिवसेना और बीजेपी अलग अलग होकर चुनाव लडे थे जिसमें बीजेपी को 82 और शिवसेना को 86 पार्षद मिले थे लेकिन चुनावी मजबूरियों के चलते बीजेपी ने शिवसेना को बीएमसी में सत्ता संभालने दे दी थी .

40 हजार करोड रुपये के बजट वाली बीएमसी शिवसेना की कमजोरी है . बीजेपी इसी कमजोरी पर हाथ रखना चाहती है . वो जानती है कि अकेले ये नही हो पायेगा इसलिए बीजेपी ,मनसे और रामदास आठवले की आरपीआई मिलाकर एक बडा मोर्चा बनाया जाये .

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