पवार पर भरोसा करके डूबी कांग्रेस कांग्रेस की हालत गरीबी में आटा गीला की तरह हो रही है । एक तरफ देश और महाराष्ट्र में मोदी के सामने पूरी तरह निपट गए और अब तक महाराष्ट्र में नेता विपक्ष राधाकृष्ण विखे पाटिल और 4 विधायक बीजेपी में । इसका मतलब होगा कि लोकसभा ही नही राज्य में नेता विपक्ष का पद भी कांग्रेस के पास नही रहेगा । हार से हदराए कांग्रेसी नेता समझ ही नही पा रहे कि ये असल में शरद पवॉर का दाव है जो बहुत दूर तक मार करेगा ।
पहले तो पवार ने लोकसभा सीट के लिए जमकर बारगेनिंग की जिससे अहमदनगर और औरंगाबाद में कांग्रेस का जमकर नुकसान हुआ ।नेता विपक्ष विखे पाटिल आखिर तक रुके रहे की अहमदनगर की सीट मिल जाये बेटे सुजय विखे पाटिल के लिए ।। लेकिन पवार माने ही नही।किसी कांग्रेस के नेता ने भी दम नही लगाया ।
मैं खुद उस दिन देहली में मौजूद था विखे पाटिल अपने बेटे को एक दिन के लिए रोककर देहली गए। वहां शांगरीला होटल में मेरी मुलाकात हुई। पता चला कि जब वो राहुल गांधी से मिलने गए तो राहुल ने उनको अजब प्रस्ताव दिया जिसे सुनकर वो हैरान रह गए। राहुल ने उनसे बस 5 मिनिट बात की उसमे भी कहा कि एनसीपि और शरद पवार मान नही रहे और सुजय को चाहै तो एनसीपी से खड़ा कर दीजिये। जाहिर है पवार ने बढ़िया बिसात बिछा के रखी थी । सब जानते है महाराष्ट्र की राजनीति में अहमदनगर पवार की कमजोर नस है। यहां सालो से विखे पाटिल परिवार ने पवार को नही घुसने दिया। सीनियर विखे पाटिल ने तो खुलेआम पवार का विरोध किया था तो पवार ने भी विखे पाटिल परिवार को सीएम नही बनने दिया। विखे पाटिल के विरोध में पवार अहमदनगर में दूसरे कांग्रेस नेता को बढ़ाते रहे । ऊपर से अहमदनगर के लोकल चुनाव में एनसीपी बुरी तरह हार गई।
विखे पाटिल परिवार और शरद पवार की दुशमनी पुरानी है जाहिर है पवार बदले का कोई मौका नही चूक रहे ऊपर से कांग्रेस मे अशोक चव्हान और बाकी सब विखे पाटिल के खिलाफ थे इसलिए किसी ने कुछ नही बोला. अगर विखे पाटिल बने रहते तो शायद अहमदनगर के साथ ही शिर्डी की लोकसभा सीट कांग्रेस को मिलती तब शायद कांग्रेस के पास कम से कम तीन सीट तो रहती लेकिन अब तो एक ही मिली.जाहिर है पवार का गेम प्लान पहले से तय था कि राज्य में कांग्रेस को लोकसभा मे इतना कमजोर कर दिया जाये कि वो विधानसभा में बारगेनिंग ही नही कर सके .
पवार ने कई बार कांग्रेस को झटका दिया . पहले तो मोदी को कई बार बारामती ले गये मोदी ने उनको
अपना गुरु तक बता दिया . जाहिर है इसके बाद एनसीपी के नेताओं को संदेश था कि साहेब तो मोदी जी के करीबी है इसलिए एनसीपी का वोट कहीं भी कांग्रेस के काम नही आया. ऊपर से पवार साहेब ने मोदी की खिलाफत के बजाय कांग्रेस के खिलाफ ही बयान दिये .पहले कह दिया कि राहुल की लीडरशिप नही चलेगी और फिर कह दिया कि गठबंधन राष्ट्रीय के बजाय लोकल हो .यहां तक चुनाव के दौरान ही मनसे के राज ठाकरे से मुलाकात और फिर राज ठाकरे के प्रचार का जमकर समर्थन किया जिससे कांग्रेस के रहे सहे उतत्तर भारतीय वोट भी भाग गये .
इतना ही नही राज्य में लोकसभा चुनाव में करीब 7 फीसदी वोट पाने वाले और कांग्रेस के दलित मुस्लिम वोट बैंक को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले प्रकाश अम्बेडकर और ओबैसी को साथ नही लाने के पीछे भी शरद पवार ही थे . पवार जानते थे कि ये वंचित बहुजन आघाडी विदर्भ और मराठवाडा मे ही नुकसान करेगी वो भी कांग्रेस का .इसलिए राहुल गांधी को समझा दिया कि उनको साथ लेने की जरुरत नही . अब इस आघाडी के इम्तियाज जलील जीत भी गये .अगर ये आघाडी कांग्रेस के साथ होती तो कांग्रेस कम से कम पांच सीटें जीतती . यहां तक कि प्रदेशअध्यक्ष अशोक चव्हाण की हार के पीछे भी आघाडी ही प्रमुख वजह रही . प्रकाश अंबडेकर किसी तरह से पवार के साथ नही रहना चाहते . उन्होने कांग्रेस को पवार को छोडकर गठबंधन करने का आफर भी दिया था लेकिन पवार मोह में पडी कांग्रेस समझ नही पायी .यहां तक कि अब भी चुनाव के बाद पवार सबसे पहले जाकर राहुल गांधी से मिल लिये और महाराष्ट्र का गणित समझा दिया यानि अब आगे भी वही होगा जो पवार चाहेंगे . अब राहुल गांधी को कौन बताये कि खुद पवार के बायें हाथ को पता नही होता कि उनका दायां हाथ क्या कर रहा है और पवार के बारे में ये भी कहते है वो जो कहते है वो कभी नही करते और जो करते है और वो कभी नही कहते . कांग्रेस को ये सब समझना ही होगा .
संदीप सोनवलकर