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नीतीश और राहुल बोले- मिलकर लड़ेंगे भाजपा से, अब शिमला में मिलेंगे विपक्षी दल

नीतीश और राहुल बोले- मिलकर लड़ेंगे भाजपा से, अब शिमला में मिलेंगे विपक्षी दल

नीतीश और राहुल बोले- मिलकर लड़ेंगे भाजपा से, अब शिमला में मिलेंगे विपक्षी दल

-बड़ा सवाल-क्या अपनी महत्वाकांक्षा त्याग पाएंगे विपक्षी एका के लिए जुटे नेता
-राजनीतिक दीवार पर लिखी गई इबारत को विपक्षी दलों को तो समझना होगा
-अमित शाह का तंज-कितना भी दम लगा लो, आपकी एकता कभी संभव नहीं होगी

पटना। बिहार की राजधानी पटना में शुक्रवार को एक अणे मार्ग (मुख्यमंत्री आवास) में ढाई घंटे तक (12 से 2.30 बजे तक) विपक्षी दलों के महाजुटान से यह साफ जाहिर है कि 2024 में नरेंद्र मोदी (भाजपा) को रोकने के लिए पूरा कुनबा एक होना चाह रहा है। हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बैठक बाद संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह स्वीकारा कि सभी पार्टियों में थोड़े-बहुत मतभेद हैं, लेकिन फिर भी हम एक हैं। मिलकर लड़ेंगे भाजपा से। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कहा कि लोकसभा चुनाव एकसाथ लड़ने पर सहमति बनी है। विपक्षी एकता के लिए दूसरी बैठक शिमला में होगी। यह बैठक दस से 12 जुलाई के बीच होने की संभावना है। इसमें कौन कहां से, कितनी सीटों पर लड़ेगा, इसे अंतिम रूप दिया जाएगा। गठबंधन के नाम, संयोजक और सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर भी शिमला में चर्चा होगी।

नीतीश और राहुल बोले- मिलकर लड़ेंगे भाजपा सेअब बड़ा सवाल यह है कि 15 पार्टियों के शीर्ष नेता लोकसभा चुनाव तक एका बनाए रखने में सफल हो पाएंगे? यह आनेवाला वक्त बताएगा। लेकिन, यह तो कहा ही जा सकता है कि विपक्षी एका की राह फिलहाल आसान नहीं दिख रही है। दरअसल, सबकी अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा है और बैठक में शामिल तीन राष्ट्रीय पार्टियों को छोड़कर अन्य 13 क्षेत्रीय दलों के भी अपने-अपने मुद्दे और अपनी-अपनी रणनीति है। सिर्फ बैठकभर से ये पार्टियां प्रधानमंत्री (पीएम) पद के लिए सर्वमान्य नेता का चयन कर लेंगी, यह फिलहाल संभव होता नहीं दिख रहा है।

आज की बैठक का उद्देश्य आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल करना है, लेकिन सवाल यह है कि क्या क्षेत्रीय पार्टियां अपनी महत्वकांक्षा छोड़ पाएंगी? बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दो टूक कहा भी कि सभी दलों को अपनी महत्वाकांक्षा छोड़नी होगी। बैठक के दौरान राजनीतिक दीवार पर लिखी गई इस इबारत को विपक्षी दलों को समझना होगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो शुरू से यह कहते रहे हैं कि हम प्रधानमंत्री पद के ना तो दावेदार हैं और ना ही हमारी कोई महत्वकांक्षा है। हमारा उद्देश्य सिर्फ विपक्ष को भाजपा के खिलाफ गोलबंद करना है। बैठक में यह तय हुआ है कि नीतीश कुमार को महागठबंधन (यूपीए) का संयोजक बनाया जाये।

वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दावा किया कि हम सभी मिलकर ‌भाजपा को हराएंगे। राहुल गांधी ने कहा कि देश में दो विचारधारा की लड़ाई है। एक ओर कांग्रेस की भारत जोड़ो वाली विचारधारा है तो दूसरी तरफ भाजपा-आरएसएस की भारत तोड़ो की विचारधारा है। अबतक जो बातें सामने आई है, उसके अनुसार बैठक में भाजपा के खिलाफ बनने वाले गठबंधन के नाम पर चर्चा हुई। यह भी चर्चा हुई कि हर लोकसभा सीट पर भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एक प्रत्याशी ही मैदान में उतरेगा। कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर भी बैठक में चर्चा हुई। इतना ही नहीं, दिल्ली अध्यादेश पर भी बैठक में चर्चा हुई। आप के अरविंद केजरीवाल ने बैठक में कांग्रेस समेत सभी दलों से दिल्ली अध्यादेश पर समर्थन मांगा तो वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने केजरीवाल से धारा 370 पर आप का रुख साफ करने को कहा। अब देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर क्या रूख अपनानी है, क्योंकि आप और कांग्रेस की कड़वाहट कई मुद्दां पर सामने आ चुकी है।

फिर भी इस मायने में यह बैठक महत्वपूर्ण रही कि जदयू, राजद, आप, डीएमके, टीएमसी, सीपीआई, सीपीएम, भाकपा (माले), पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), सपा, जेएमएम और एनसीपी एक मंच पर आये। हालांकि अब इसका श्रेय लेने को लेकर भी राजनीति शुरू हो गई है। दबी जुबान से राजद के कुछ नेता यह कह रहे हैं कि 22 जून को विपक्षी एका के लिए बैठक राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के कारण सफल हो पाई और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके के नेता एमके स्टालिन, टीआर बालू, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी की नेता ममता बनर्जी, उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी, डेरेक ओ ब्रायन, दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, राघव चड्ढा, संजय सिंह, वाम दल के डी. राजा, दीपंकर भट्टाचार्य और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी, एनसीपी के शरद पवार, सुप्रिया सुले, प्रफुल्ल पटेल, सीपीएम से सीताराम येचुरी, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, सपा के अखिलेश यादव, शिवसेना के उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे, संजय राउत, जेएमएम के हेमंत सोरेन, बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार, ललन सिंह, संजय झा, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और बिहार के उपमुख्यमंत्री व लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव एक मंच पर आये।

बिहार की राजधानी पटना में शुक्रवार को एक अणे मार्ग (मुख्यमंत्री आवास) में ढाई घंटे तक विपक्षी दलों के महाजुटानदरअसल, इससे पहले 12 जून को भी विपक्षी एकता के लिए पटना में बैठक बुलाई गई थी, लेकिन कुछ कारणों से यह बैठक स्थगित करनी पड़ी थी। इससे पीछे कई तर्क दिये गए थे। अब जबकि 23 जून को विपक्षी दलों के 22 से भी ज्यादा नेता एक मंच पर जुटे तो इसका श्रेय भी दबी जुबान से लेने की होड़ मची है। हालांकि बैठक में बसपा सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश (यूपी) की मुख्यमंत्री मायावती का बैठक में शामिल नहीं होना अपने आप में कई सवाल खड़े कर रहा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि मायावती का यूपी और यूपी से सटे बिहार के कुछ इलाकों में इंटैक्ट दलित वोट बैंक है। इसलिए दलितों की गोलबंदी भी मायावती के बैठक में शामिल ना होने से मुश्किल दिख रही है। वहीं, बैठक में से तेलंगाना सीएम केसीआर, ओडिशा सीएम नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी और जेडीएस नेता कुमारस्वामी भी शामिल नहीं हुए।

उधर, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्षी एका के लिए आयोजित बैठक को फोटो सेशन करार दिया है। उन्होंने दो टूक कहा कि आज पटना में फोटो सेशन चल रहा है। वे प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देना चाहते हैं। मैं विपक्षी नेताओं से कहना चाहता हूं कि कितना भी दम लगा लो, आपकी एकता संभव नहीं है। अगर एकता संभव हो भी गई तब भी कोई फायदा नहीं है। उन्होंने दावा किया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में तीन से अधिक सीटों के साथ मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे।

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