शारदीय नवरात्रि दुर्गा पूजा दिनांक शनिवार १७ अक्टूबर २०२० को सुबह ०७ बजकर ४५ मिनट के बाद शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित करें।
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आश्विन घटस्थापना शनिवार, १७ अक्टूबर २०२० को घटस्थापना मुहूर्त –
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०६-१० सुबह से ०९-०४ सुबह
अवधि – ०२ घण्टे ५६ मिनट्स
राहु काल
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०९- ०४ सुबह से १०-३२ सुबह
घटस्थापना
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अभिजित मुहूर्त
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११-३६ सुबह से १२-२२ दिन
अवधि – ०० घण्टे – ४७ मिनट्स
नौ दिनों तक अलग-अलग माताओं
की विभिन्न पूजा उपचारों से पूजन,
अखंड दीप साधना, व्रत उपवास, दुर्गा
सप्तशती व नवार्ण मंत्र का जाप करें.
अष्टमी को हवन व नवमी को नौ
कन्याओं का पूजन करें. जानें किस
दिन कौन सी देवी की होगी पूजा।
१७- अक्टूबर- मां शैलपुत्री पूजा
घटस्थापना
१८- अक्टूबर- मां ब्रह्मचारिणी पूजा
१९- अक्टूबर- मां चंद्रघंटा पूजा
२०- अक्टूबर- मां कुष्मांडा पूजा
२१- अक्टूबर- मां स्कंदमाता पूजा
२२- अक्टूबर- षष्ठी मां कात्यायनी
पूजा
२३- अक्टूबर- मां कालरात्रि पूजा
२४- अक्टूबर- मां महागौरी दुर्गा पूजा
२५- अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री पूजा
नवरात्र में अखंड ज्योत का महत्व:
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अखंड ज्योत को जलाने से घर में
हमेशा मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है।
नवरात्र में अखंड ज्योत के कुछ नियम
होते हैं जिन्हें नवरात्र में पालन करना
होता है। परंम्परा है कि जिन घरों में
अखंड ज्योत जलाते है उन्हें जमीन
पर सोना होता है।
कलश स्थापना और पूजन के लिए महत्त्वपूर्ण वस्तुएं-
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मिट्टी का पात्र और जौ के ११ या २१
दाने शुद्ध साफ की हुई मिट्टी जिसमे
पत्थर नहीं हो शुद्ध जल से भरा हुआ
मिट्टी, सोना, चांदी, तांबा या पीतल का
कलश मोली (लाल सूत्र) अशोक या
आम के ०५ पत्ते कलश को ढकने के
लिए मिट्टी का ढक्कन साबुत चावल
एक पानी वाला नारियल पूजा में काम
आने वाली सुपारी कलश में रखने के
लिए सिक्के लाल कपड़ा या चुनरी,
मिठाई, लाल गुलाब के फूलो की
माला।
नवरात्र कलश स्थापना की विधि
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महर्षि वेद व्यास से द्वारा भविष्य
पुराण में बताया गया है की कलश
स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा
स्थल को अच्छे से शुद्ध किया जाना
चाहिए। उसके उपरान्त एक लकड़ी
का पाटे पर लाल कपडा बिछाकर
उसपर थोड़े चावल गणेश भगवान को
याद करते हुए रख देने चाहिए। फिर
जिस कलश को स्थापित करना है
उसमे मिट्टी भर के और पानी डाल कर
उसमे जौ बो देना चाहिए। इसी कलश
पर रोली से स्वास्तिक और ॐ बनाकर
कलश के मुख पर मोली से रक्षा सूत्र
बांध दे। कलश में सुपारी, सिक्का
डालकर आम या अशोक के पत्ते रख
दे और फिर कलश के मुख को ढक्कन
से ढक दे। ढक्कन को चावल से भर
दें। पास में ही एक नारियल जिसे लाल
मैया की चुनरी से लपेटकर रक्षा सूत्र
से बांध देना चाहिए। इस नारियल को
कलश के ढक्कन रखे और सभी देवी
देवताओं का आवाहन करें। अंत में
दीपक जलाकर कलश की पूजा करें।
अंत में कलश पर फूल और मिठाइयां
चढ़ा दें। अब हर दिन नवरात्रों में इस
कलश की पूजा करें।
ध्यान देने योग्य बात
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जो कलश आप स्थापित कर रहे है वह
मिट्टी, तांबा, पीतल, सोना,या चांदी का
होना चाहिए। भूल से भी लोहे या
स्टील के कलश का प्रयोग नहीं करें
नव का अर्थ नौ तथा अर्ण का अर्थ
अक्षर होता है। अतः नवार्ण नवों
अक्षरों वाला वह मंत्र है, नवार्ण मंत्र ‘ऐं
ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ है। नौ अक्षरों
वाले इस नवार्ण मंत्र के एक-एक
अक्षर का संबंध दुर्गा की एक-एक
शक्ति से है और उस एक-एक शक्ति
का संबंध एक-एक ग्रह से है। नवार्ण
मंत्र का जाप १०८ दाने की माला पर
कम से कम तीन बार अवश्य करना
चाहिए।
ब्रह्मांड के सारे ग्रह एकत्रित होकर
जब सक्रिय हो जाते हैं, तब उसका
दुष्प्रभाव प्राणियों पर पड़ता है। ग्रहों
के इसी दुष्प्रभाव से बचने के लिए
नवरात्रि में दुर्गा की पूजा की जाती है।
आइए जानें मां दुर्गा के नवार्ण मंत्र
और उनसे संचालित ग्रह।
०१- पहीला नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों
में पहला अक्षर ऐं है, जो सूर्य ग्रह को
नियंत्रित करता है। ऐं का संबंध दुर्गा
की पहली शक्ति शैल पुत्री से है,
जिसकी उपासना ‘प्रथम नवरात्र’ को
की जाती है
०२- दूसरा अक्षर ह्रीं है, जो चंद्रमा ग्रह
को नियंत्रित करता है। इसका संबंध
दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी से है,
जिसकी पूजा दूसरे नवरात्रि को होती
है।