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मोदी की लहर नहीं जातियों में बंट गया महाराष्ट्र का चुनाव

मोदी की लहर नहीं जातियों में बंट गया महाराष्ट्र का चुनाव

संदीप सोनवलकर

देश में इस समय चल रहे लोकसभा चुनाव में सबसे दिलचस्प चुनाव महाराष्ट्र का हो रहा है . इसकी एक बड़ी वजह यही है कि उत्तरप्रदेश के बाद देश में सबसे ज्यादा 48 सीट वाला ये राज्य ही तय करेगा कि किसकी केंद्र में सरकार बनेगी और किसकी विरासत को लोग असली मानते हैं. पिछली बार एनडीए जिसमें बीजेपी और तब की उदधव ठाकरे की अगुआई वाली अविभाजित शिवसेना शामिल थी दोनों ने मिलकर 41 सीट जीत ली थी . लेकिन अब हालात बदल गये हैं.

राज्य में इस बार चुनाव बड़ा दिलचस्प है इस बार कुल छह दल चुनाव मैदान में तीन तीन दो तरफ . इसमें से भी शिवसेना एकनाथ शिंदे को पुराना चुनाव चिन्ह और नाम मिला है और शिवसेना उदधव ठाकरे को नया चुनाव चिन्ह मिला है . इसी तरह एनसीपी भी दो भागों में बंट गयी है पहली अजित पवार की एनसीपी जिसको घड़ी का पुराना चुनाव चिन्ह मिल गया वहीं दूसरी तरफ शऱद पवार की एनसीपी को तुतारी मिला है . बीजेपी और कांग्रेस दोनों अब तक अविभाजित है. इसलिए मतदाता को तय करना है कि वो पुरानी पार्टी और नेता को चुनेगा या फिर नये बने गुट को .कुछ लोग इसे गददारी और लायल्टी के बीच का चुनाव भी कह रहे है.
भ्रष्टाचार कोई मुददा नहीं.

महाराष्ट्र के चुनाव में भ्रष्टाचार कोई मुददा ही नहीं . क्योंकि जो कल तक 70 हजार करोड़ के घोटाले के आरोपी थे उन अजित पवार को एनडीए ने ले लिया है . एकनाथ शिंदे से लेकर नारायण राणे तक कई नेता जो भ्रष्टार के आरोपी थे और कुछ पर ईडी की जांच चल रही है वो सब बीजेपी के साथी हो गये हैं. तो इस बार जनता को तय करना है कि वो जिनको वोट दे रही है वो सही है या वो भी चले जायेंगे . वोटर सबसे ठगा महसूस कर रहा है . नेता केवल सत्ता को ही सबसे बड़ा मान रहे हैं अब वोटर की बारी है .

मोदी लहर का नही है असर

देश में मोदी ने सबसे ज्यादा रैलियां करीब 20 महाराष्ट्र में ही की है जबकि पिछले चुनाव में वो केवल चार या पांच बार ही आये थे इससे साफ हो रहा है कि एनडीए के लिए कितनी बड़ी चुनौती है .बीजेपी इस बार केवल 28 सीट लड़ रही है जबकि शिवसेना शिंदे को 15 सीट दी गयी है. मोदी की इतनी सभाओं के बाद भी चुनाव बहुत ही लोकल और उम्मीदवार पर आ गया है . मोदी लहर का असर बहुत ज्यादा नहीं दिखायी दे रहा है .

जातियों में बंट गया है चुनाव

महाराष्ट्र में बहुत दिनों बाद पूरा चुनाव जातियों में बंट गया दिखायी दे रहा है .सबसे ताकतवर कहे जाने वाले मराठा समुदाय को आरक्षण के मुददे ने बांट दिया है.उनके नेता मनोज जरांगे पाटिल सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं तो मराठा नेता बहुत से एनडीए के साथ है ऐसे में मराठा वोटर कन्फ्यूज है कि वो समुदाय या जाति का साथ दे कि नेताओं के साथ जाये . इसका बहुत सा असर वोटिंग और चुनाव पर दिखायी दिया है.

पहले और दूसरे दौर में विदर्भ की जिन 11 सीटों पर मतदान हुआ वहां कुनबी जो ओबीसी है उसको लेकर कई दावे सामने आ रहे है . कहा जा रहा है कि कुनबी इस बार पूरी तरह से कांग्रेस के साथ गया है इसलिए कांग्रेस विदर्भ में बेहतर नजर आ रही है .
तीसरे दौर के बाद से गैर कुनबी ओबीसी में बीजेपी ने बहुत मेहनत की और ओबीसी बनाम मराठा का एकजुटीकरण करने में बीजेपी को फायदा होते दिख रहा है .लेकिन ये ओबीसी बीजेपी के तो साथ है मगर एकनाथ शिंदे के साथ नहीं.

दलित वोट बैक की नयी चाल

इस बार दलित वोट बैंक को पहले वंचित बहुजन आघाड़ी ने साधने की कोशिश की लेकिन उनके नेता के पलटीमार बयानों के कारण ये संदेश गया कि वो तो असल मे बीजेपी का काम कर रहे है.उसके बाद वो अकेले रह गये और दलित वोट बैंक भी उनके साथ नहीं दिखायी दे रहा है ऐसे में दलित वोट बैंक का बड़ा हिस्सा छिटककर महाविकास आघाड़ी यानि विपक्ष के साथ जाता दिख रहा है . आरक्षण और संविधान को बचाने का मुददा नीचे तक जाते दिख रहा है .

मुस्लिम वोट बैंक एक तरफा .

इस बार राज्य का 11 से 13 प्रतिशत तक कहा जाने वाला मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से उदधव ठाकरे और कांग्रेस के साथ दिखायी दे रहा है इससे सीटों में बहुत उलटफेर हो सकता है. मुस्लिम समाज ने इस बार ओवेसी को घास नहीं डाली और हर सीट पर टेक्टिकली वोट कर रहा है . खासकर हर दौर मे वो विपक्ष के गठजोड़ के साथ दिखा इसे किसी ने दलित मुस्लिम कुनबी यानी डीएमके इफेक्ट कहा तो कहीं डीएमएम यानि दलित मुस्लिम मराठा गठजोड़ दिख रहा है .

जातियों में बंट गये चुनाव में ये कहा जा रहा है कि बीजेपी तो काफी हद तक अपनी 23 में से ज्यादातर सीटें बचाने में कामयाब हो सकती है लेकिन एकनाथ शिंदे को 15 और एनसीपी अजित गुट को मिली 4 सीटों में सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है. परिणाम जो भी होगा उसका देश के साथ साथ महाराष्ट्र पर असर दूरगामी होगा क्योकिं चार महीने बाद ही विधानसभा के चुनाव भी होने हैं.

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