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Political

बहुत कठिन है डगर चुनाव की भाजपा महाराष्ट्र की

-संदीप सोनवलकर वरिष्ठ पत्रकार
कई बार महाराष्ट्र के लोग कहते हैं कि महाराष्ट्र से ही राष्ट्र चलता है और इस बार के विधानसभा चुनाव सही मायनों में ऐसे ही साबित होंगे क्योंकि ये लोकसभा में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद होने वाले पहले चुनाव है . दीवाली के आसपास होने वाले इन चुनावों में तय होगा कि किसके घर दिया जलेगा या कहां अंधियारा होगा . बहरहाल सबसे बड़ा स्टेक या दांव पर लगी साख भाजपा की है क्योंकि यही इकलौता राज्य हैं जहां से भाजपा का उदय 1980 में पहली बार हुआ था और उसी समय से उसकी सहयोगी रही बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना को भाजपा ने छोड़ दिया .
प्रयोगशाला बना महाराष्ट्र .
महाराष्ट्र देश का इकलौता ऐसा राज्य बन गया है जहां पर पिछले पांच सालों में सबसे ज्यादा राजनीतिक प्रयोग हुये . यहीं पर बीजेपी शिवसेना का गठबंधन टूटा फिर अचानक सुबह पांच बजे शपथ ग्रहण समारोह हुआ फिर 24 घंटे में सरकार गिर गयी कुछ दिन मे एनसीपी कांग्रेस और उदधव ठाकरे की शिवसेना की सरकार बनी दो साल बाद शिवसेना में सबसे बड़ी टूट हुयी और एक नई शिवसेना बनी जिसको धनुष बाण का चुनाव चिंह भी मिल गया . वहीं शरद पवार की एनसीपी भी टूटी और भतीजे अजीत पवार को भी चाचा का चुनाव चिन्ह घड़ी मिल गया लेकिन पहले टेस्ट यानि लोकसभा चुनाव ने सबसे बड़ा संदेश यही दिया कि लोगों को ये तोड़फोड़ की राजनीती पसंद नहीं आयी इसलिए बीजेपी के लोकसभा सदस्यों की संख्या 21 से घटकर नौ पर आ गयी और जिस कांग्रेस के केवल एक लोकसभा सदस्य थे वो 14 तक पहुंच गयी . लोकसभा के परिणामों ने भाजपा को हिला दिया है और अब भाजपा को तय करना है कि वो कैसे वापसी घरेगी सत्ता में भी और लोगों के दिलों में भी ..
सीट बंटवारा सबसे बड़ी चुनौती .
भाजपा के महायुति गठबंधन की सबसे बडी चुनौती सीटों के बंटवारे की है . 288 सीटों वाली विधानसभा मे अब तक भाजपा और शिवसेना ठाकरे आधी आधी या कभी कभी 171 और 121 सीट पर लड़ते रहे है. दोनों को कभी तकलीफ भी नहीं हुया लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा ने शतप्रतिशत भाजपा का नारा दिया और ठाकरे की शिवसेना को कमजोर किया उसके बाद उनके रास्ते अलग हो गये .अब सबसे मुश्किल सवाल यही कि महायुति में बंटवारा कैसे हो . भाजपा के पास अभी खुद के 103 और इंडिपेंडेंट 10 मिलाकर कुल 113 विधायक है .बीजेपी कम से कम 180 सीट पर चुनाव लड़ना चाहती है ऐसे में उसके दो सहयोगी शिवसेना शिंदे और एनसीपी अजित पवार के हिस्से में कुल बची 100 सीटों में से अधिकतम 50 –50 ही आ सकती है . लेकिन शिंदे के पास खुद के अभी 54 विधायक है तो अजित पवार के पास 44 विधायक है . तीनों पार्टियां उन जगहों को भी चाहती है कि जहां उनके उम्मीदवार नंबर दो पर थे . अब इसका तोड़ निकालना बड़ा कठिन होगा ..लोकसभा में भी खींचतान हुयी और एकनाथ शिंदे 14 सीट लेने में कामयाब रही वहीं अजित पवार 4 सीट पर ही लड़े इसलिए बीजेपी को राहत मिली लेकिन विधानसभा में अब शिंदे कम से कम 100 और अजित पवार भी 100 सीट मांग रहे हैं .इसको हल करना बड़ा कठिन है .
उधऱ दूसरी तरफ महागठबंधन में भी खींचतान है लेकिन सभी दल 96..96 सीट लड़ने लगभग तैयार इसलिए बात बन सकती है कुछ सीटों पर अदला बदली होगी.
अजित पवार बोझ या मददगार ..
लोकसभा चुनाव में तो अजित पवार केवल एक सीट जीत पाये और उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार हार गयी इसलिए सवाल उठने लगा कि भाजपा आगे भी अजित पवार को साथ रखेगी या नहीं . अजित पवार को लेकर भाजपा का कैडर नाराज है उनको लगता है कि पवार पर करप्शन के आरोप रहे है और उनको लेने के बाद भाजपा के कैडर का मानना है कि अब बीजेपी किस मुंह से करप्शन की बात करेंगे . अमित शाह ने भी शरद पवार को करप्शन का सरगना कहा तो सवाल उठ गया कि अजित पवार को क्यों रखा जा रहा है . भाजपा की कोर ग्रुप में भी सवाल उठा और संघ से प्रेरित पत्रिका विवेक ने भी लिखा कि अजित पवार बोझ बन गये हैं .
ऐसे में अब क्या अजित पवार बाहर जायेंगे लेकिन लोकसभा के रिजल्ट के बाद भाजपा ये मैसेज नहीं देना चाहती कि उसने किसी सहयोगी को छोड़ दिया भले ही उसका एक लोकसभा मेंबर है .इसलिए अजित पवार भाजपा की मजबूरी बन गये है .अजित पवार भी भाजपा के साथ ही रहना चाहते हैं उनका फैसला विधानसभा चुनाव के बाद ही होगा .
भाजपा की आपसी खींचतान ..
सहयोगी दलों के साथ साथ भाजपा की राज्य इकाई में जमकर खींचतान है .एक तरफ देवेंद्र फणनवीस किसी तरह फिर से सीएम बनना चाहते हैं तो दूसरी तरफ विनोद तावड़े .आशीष शैलार पंकजा मुंडे सब उनके विरोधी माने जाते हैं. राज्य भाजपा में दो गुट है एक जो संघ और पीएम मोदी के वफादार है और दूसरे जिन पर अमित शाह का हाथ है इसकी साफ झलक लोकसभा चुनाव में दिखी और अब विधानसभा में भी भाजपा किसी एक चेहरे को आगे नहीं रख सकती .भाजपा की इसी खींचतान के चलते केंडिडेट सिलेक्शन से लेकर प्रचार तक हर जगह कैडर में भ्रम दिखाई देता है और उसी का असर वोट पर भी होता है. हालांकि अश्विनी वैष्णव और भूपेंद्र यादव को भेजा गया है पर उनका झुकाव फणनवीस की तरफ ज्यादा दिखाई देता है.
एम फैक्टर का असर ..
लोकसभा चुनाव की तरह ही विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को एम फैक्टर यानि मराठा .मुस्लिम और महार यानि दलित विरोध का सामना करना होगा . मराठा आरक्षण चाहते है मुस्लिम तो बीजेपी विरोधी है महार यानि दलित को संविधान से छेड़छाड़ का मुददा सताता रहा है .लोकसभा में तीनों ने महागठबंध का साथ दिया जिससे कांग्रेस को सबसे ज्यादा फायदा हुआ लेकिन विधानसभा में इसे बीजेपी को तोड़ना होगा तभी बात बनेगा .. राज्य में मराठा करीब 22 फीसदी मुस्लिम करीब 13 फीसदी और महार यानि दलित करीब 12 फीसदी है . आदिवासी भी भाजपा के साथ इस बार नहीं दिख रहे ..
ओबीसी ही सहारा है ..
भाजपा को महाराष्ट्र में अब तक मिली सफलता के बीजेपी संघ का माधव फार्मूला ही रहा है जिसमें म यानि माली ध यानि धनगर और व यानी वंजारा समाज रहा है . गोपीनाथ मुंडे एकनाथ खडसे जैसे दिगगज नेताओं के कारण ओबीसी हमेशा से भाजपा के साथ रहा है क्योंकि वो राज्य में मराठा वर्चस्व को तोड़ना चाहता है लेकिन भाजपा ने इस ओबीसी को बचाने के लिए बहुत कुछ नहीं किया .इसलिए अब ओबीसी में बिखराव दिख रहा है . माली वोटर अब छगन भुजबल के साथ है . धनगर बंटा हुआ है और उसके सबसे बड़े नेता महादेव जानकर लोकसभा का चुनाव हार गये वहीं पंकजा मुंडे के कारण वंजारा समाज नाराज है .भाजपा को इन सबको साधना है तो यूपी की तरह ही छोटी जातियों और उनके नेताओं को अपने साथ लाकर टिकट देना होगा.
क्षेत्रीय और छत्रप की चुनौती .
महाराष्ट्र में मोटे तौर पर पांच इलाके माने जाते है विदर्भ ,मराठवाड़ा , पश्चिम महाराष्ट्र .उत्तर महाराष्ट्र यानि खानदेश और मुंबई सहित कोंकण किनार पटटी . इन सब इलाकों में इस बार भाजपा को निराशा हाथ लगी जबकि विदर्भ और उत्तर महाराष्ट्र को भाजपा का गढ माना जाता है.इसके साथ ही महाराष्ट्र में 13 बड़े शहर है और भाजपा की इन पर पकड़ रही है लेकिन इन सबको अब साधना होगा .
बात विदर्भ से करते हैं. विदर्भ की 11 लोकसभा सीट में से भाजपा को इस बार केवल एक सीट ही मिल पायी . वो भी इसलिए कि नागपुर से नितिन गड़करी चुनाव मैदान में थे और उनके सामने कांग्रेस का उम्रृमीदवार कमजोर था . विदर्भ में मुस्लिम और कुनबी बड़ी संख्या में है कुनबी तो करीब 26 फीसदी है जो नाना पटोले के कारण और भाजपा की बेरुखी के कारण कांग्रेस के साथ चला गया . उसके अलावा दूसरी बड़ी जाति हलबा कोष्टी भी चंद्रपुर में भाजपा के खिलाफ चली गयी . भाजपा के साथ केवल चार फीसदी वाली कोमटी ही गये . बीजेपी को पिछले चुनाव में विदर्भ की 62 सीटें में से 29 सीट मिली थी जबकि कांग्रेस को केवल 15सीट मिली थी लेकिन इस बार ये मामला उलट सकता है.
मराठवाड़ा की बात करें तो भाजपा ने यहां अपनी जडे जमाने में कामयाबी हासिल की थी लेकिन लोकसभा में मराठा आरक्षण के सवाल और देवेंद्र फणनवीस बाह्मण के विलेन बनने के कारण भाजपा का पत्ता साफ हो गया यहां तक कि अशोक चव्हाण जैसे दिग्गज नेता के आने के बाद भी कांग्रेस कमजोर नहीं हुयी और चव्हाण की नांदेड़ सीट पर भी कांग्रेस जीत गयी . अब भाजपा को यहां संभलना होगा . वैसे ये कांग्रेस और एनसीपी का गढ रहा है . पर विधानसभा चनाव में यहां की 46 सीट में से भाजपा को 16 और तब की शिवसेना को 12 सीट मिल गयी थीं कांग्रेस तब यहां 8 पर सिमट गयी थी .
पश्चिम महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण और मुस्लिम सबसे बड़े फैक्टर है मराठा आरक्षण के कारण बीजेपी विरोध दिख रहा है और मराठा ज्यादातर शरद पवार के साथ है . यहां तक कि अजित पवार की पत्नी भी इसलिए हार गयी और अब अजित पवार की साख दांव पर है. अजित पवार हारे तो भाजपा महायुति को उतनी सीटों का भी नुकसान होगा.
उत्तर महाराष्ट्र में भाजपा ने कांग्रेस के बड़े नेता विखे पाटिल को तोड़ा लेकिन मराठा आरक्षण और किसानों की नाराजगी के चलते खुद विखे पाटिल के बेटे लोकसभा का चुनाव हार गये . शिकायत है कि भाजपा ने खुद ही बाहर से आये मराठा नेताओं को कमजोर किया अब भाजपा को प्याज के किसानों की नाराजगी और बारिश के कारण फसल के नुकसान का मुददा भी देखना होगा . यहां भाजपा अब भी ओबीसी वोट साधकर खुद को बचाकर रख सकती है.
मुंबई कोंकण में भाजपा को चुनौती है कि ये शिवसेना और बाल ठाकरे का गढ़ है और आम मराठी मतदाता की सहानुभूति उदधव ठाकरे के साथ है .यहां पर भाजपा सबसे ज्यादा विधायक वाली पार्टी है लेकिन अब लोकसभा में उसका एक ही उम्मीदवार जीत पाया और स्कोर 6 सीट में 4 और 2 का रहा . ऐसे में भाजपा को मुंबई की 36 और ठाणे की 24 विधानसभा सीटों में ज्यादा से ज्यादा जीतनी होगी लेकिन यहां पर भाजपा और एकनाथ शिंदे की शिवसेना की आपसी खींचतान को संभालना होगा .
मोदी फैक्टर नहीं .लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में मोदी फैक्टर नहीं चला मोदी ने चुनावी महीनो में कुल 23 सभायें की जिनमे से 19 पर लोकसभा की सीटें भाजपा हार गयी . विधानसभा चुनाव में वैसे भी डबल इंजन का मुददा अब नहीं चलने वाला.इसलिए भाजपा ने बजट में एमपी की तरह लाड़ली बहना ही नहीं लाड़ला भाई और बेरोजगार भत्ता .किसानों को फ्री बिजली जैसी रेवड़ी बांटना शुरु कर दिया है लेकिन इनका कितना असर होगा अभी नहीं कहा जा सकता .
बीजेपी के सामने महाराष्ट्र में एक नही कई चुनौतियां है लेकिन समय रहते सुधार किया तो बहुत कुछ बदल सकता है सबसे पहला काम भाजपा को अपने कैडर को सदमे से निकालकर फिर से काम पर लगाना है और दूसरा जातिगत समीकरण संभालते हुए काम करना है तभी वापस लौटेंगे .
मेरा अनुमान आज की स्थिति कौन कितने पर मजबूत
भाजपा 58 से 72 पर

एकनाथ शिंदे शिवसेना 22 से 30 पर
अजित पवार एनसीपी 12 से 17 पर
कांग्रेस 52 से 62 पर
उदधव ठाकरे 48 से 55 पर
शऱद पवार एनसीपी 22 से 32पर
निर्दलीय कम से कम 18 पर

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