वो जो पानीपत में बचे रह गये..जो दर्शन करने कुरुक्षेत्र गये थे
हिंदी फिल्म के बहाने ही सही फिर से एक बार मराठों की ऐतिहासिक लडाई पानीपत तृतीय की चर्चा शुरु हो गयी है.इसके साथ ही इस बात पर खोजबीन शुरु हो गयी है कि पानीपत में बचे मराठे आखिर कहां चले गये .
पानीपत की कहानी बडी ही दिलचस्प है . अहमद शाह अब्दाली का मुकाबला करने के लिए पुणे से सदाशिवभाऊ के नेतृत्व में करीब फौज जब दशहरे के बाद रवाना हुयी तो रास्ते में हजारों मराठी भाषिक लोग भी इसमें जुड गये .इसमे बडी संख्या में महिलायें, बच्चे और बूढे भी थे .ये लोग इस आशा में गये थे कि युदध जीतने के बाद मराठा पेशवा बडा इनाम देंगे और इसके साथ ही तीर्थक्षेत्र के तौर पर विख्यात कुरुक्षेत्र के ब्रहम सरोवर में मकर संक्रांति के दिन स्नान का पुण्य मिलेगा. पेशवा की फौज के साथ उस समय जाने वालो की संख्या डेढ लाख रुपये से ज्यादा हो गयी . युदध हारने के बाद इनमे से बहुत से लोग महाराष्ट्र वापस नहीं लौट पाये . तो ये कहां चले गये . अब इसका खुलासा होने लगा है .
इनमें से बडी संख्या में ब्राहमण उत्तराखंड में चले गये इसलिए आज भी उत्तराखंड में पंत और जोशी जैसे सरनेम बडी संख्या मे दिखते हैं. इन लोगों के घरों में हर त्यौहार और कई पकवान में नारियल और सुपारी का इस्तेमाल होता है जबकि ये दोनों ही महाराष्ट्र के कोकण में मिलते हैं. इसी तरह गणेश उत्सव और रांगोली जैसे कार्य भी मराठी ब्राहमणों की ही देन रहे हैं .
इसी तरह पानीपत के आसपास के 230 गांवों में बसे रोड समुदाय के छह लाख लोग दरअसल उन 500 मराठा सैनिकों के ही वंशज हैं, जो अब्दाली की फौज के हाथों, तितर-बितर कर दिए जाने के बाद जंगलों में छिप गए थे. सन् 1761 से पहले के रिकॉर्डों में इस इलाके में रोड जाति का कोई उल्लेख नहीं मिलता. गौरतलब है कि पानीपत की लड़ाई में 50,000 से ज्यादा मराठा सैनिक मारे गए थे, जो बचे, उन्हें जंगलों में छिपना पड़ा क्योंकि अफगानों ने युद्ध का नारा ही दे रखा था, ‘एक मराठा मुंडी लाओ, सोने का एक सिक्का पाओ.’ युद्ध में मारे गए लोगों में सदाशिवराव भाऊ, पेशवा बालाजी बाजीराव के पुत्र विश्वासराव, ग्वालियर के राजघराने के जनकोजी और तुकोजी सिंधिया, धार और देवास घराने के यशवंतराव पवार जैसे मराठा सेनापतियों के अलावा जाधव, निंबालकर, भापकर (चव्हाण), भोंसले, कदम, फाल्के, भोइते, पैगुडे, सावंत और कई अनजान मराठा परिवारों के जत्थे थे.
इनमें से बहुत से युदध के बाद घायल होकर या बचकर हरियाणा के आसपास के गांवों में छिप गये और बाद में वहीं बस गये. इनके घरों में आज भी मराठा शैली के कई निशान देखने को मिलते है , साथ ही खानपान और त्यौहारों में भी मराठा झलक साफ दिखाई देती है.