माया को बचायेगी बीजेपी यूपी में
बहुजन समाजवादी पार्टी प्रमुख मायावती इन दिनों चुप है. हाथरस से लेकर हर दलित अत्याचार की घटना पर बोलती नहीं और बोलती है भी तो सहम कर .वजह ये है कि उत्तरप्रदेश में राज्यसभा की 10 सीटों पर हो रहे चुनाव में अब 11 उम्मीदवार हो गये हैं जाहिर है चुनाव होंगे तो मायावती को हर हाल में बीजेपी की मदद लगेगी . असल में अंतिम समय में अखिलेश यादव ने 11 वां उम्मीदवार देकर मायावती की मुश्किलें बढा दी है.
यदि सपा की तरफ से प्रकाश बजाज 11 वें उम्मीदवार के तौर पर पर्चा नहीं भरते तो बीजेपी के 8. सपा का एक और बीएसपी को एक सीट मिल जाती लेकिन अखिलेश यादव ने बीजेपी और बीएसपी का गठजोड का खुलासा करने के लिए ये चाल चल ही दी . नौ नवंबर को होने वाले चुनाव में बीएसपी सबसे कमजोर है उसके पास केवल 18 विधायक है और जीत के लिए से बाहरी वोट चाहिये ही .एनडीए के पास अपने 8 उम्मीदवारों की जीत के बाद भी 17 वोट अतिरिक्त है जाहिर है अगर बीएसपी अपने उम्मीदवार रामजी गौतम को जिताना चाहती है तो से उसे एनडीए से मदद लेनी होगी .
असल में मायावती का आधार लगातार दरक रहा है और अब वो नये साथी की तलाश में है . पिछली बार सपा और बसपा ने मिलकर विधानसभा चुनाव लडा था लेकिन बीएसपी एकदम सिमट गयी .अब बीजेपी भी यूपी में अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है ऐसे में बीएसपी के साथ उसका पर्दे के पीछे से समझौता फायदा दिला सकता है.इतना ही नहीं असल में बीएसपी प्रमुख अपने खिलाफ चल रहे मामलों की जांच से बचने के लिए भी केन्द्र से पंगा नहीं लेना चाहती .
मायावती चाहती तो सपा से मदद ले सकती थी सपा के पास 47 विधाय़क है और सपा ने केवल एक उम्मीदवार राम गोपाल वर्मा को बनाया है लेकिन मायावती ने कोई पहल नहीं की तो सपा ने एक और उम्मीदवार उतार दिया . असल में सपा को लगता है कि मायावती अब बीजेपी के इशारे पर ही चल रही है. कहा तो ये भी जा रहा है कि बीएसपी ने बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए ही बिहार में अपना तीसरा गठबंधन बनाया है .ताकि सत्ता विरोधी वोट काट सके.
असल में मायावती ऐसे दोराहे पर खडी है जहां उनके सामने सवाल है कि राजनीती बचाये या खुद को . मायावती हमेशा से खुद को बचाने पर सबसे ज्यादा जोर देती रही है इसलिए उनका वोट बैंक लगातार खिसक रहा है .