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खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे बीजेपी की महाराष्ट्र में हालत

खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे
महाराष्ट्र में सत्ता गंवाने के बाद जिस तरह से बीजेपी पहले ही दिन से विरोध पर उतर आयी है उससे साफ लग रहा है कि सत्ता सामने होकर भी खिसक जाने की खीज उसे सहन नही हो रही है और वो खिसयानी बिल्ली की तरह खंभा नोच रही है .
नये सीएम उदधव ठाकरे के सीएम बनने की शपथ से लेकर विधानसभा में बहुमत साबित करने तक अब वो तकनीकी खामियां जैसी बातें करके कह रही है कि संविधान का पालन नही किया जा रहा है और वो राज्यपाल से शिकायत करेगी. यहां तक कि शनिवार को विशेष सत्र में जब उदधव ठाकरे ने बडे आराम से विशवासमत हासिल किया और पहले से कहा गया 170 का आंकडा हासिल कर लिया तो बीजेपी को लगा कि अब वाकआऊट के अलावा कोई विकलप नही है . सदन में 169 विधायको ने उदधव ठाकरे के पक्ष मे मत डाला जबकि समर्थक दिलीप वलसे पाटिल प्रोटेम स्पीकर है .अगर वो भी वोट डालते तो आंकडा 170 हो जाता . बीजेपी के पास 115 तक का ही आंकडा था वो भी आगे घटने की संभावना है.
ऐसे में बीजेपी को जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिये और ये स्वीकार करना चाहिये था कि उसके पास बहुमत नही था इसलिए विपक्ष में बैठी है. संविधान के पालन नहीं करने की बात बीजेपी के मुंह से लोगों को अचछी नही लग रही है. अगर बीजेपी को इतनी ही चिंता होती तो शायद रात के तीन बजे राज्यपाल को नींद से उठाकर बिना केबिनेट की बैठक करे ही राष्ट्रपति शासन नही हटता और सुबह जब लोग नींद से भी नही उठ पाये थे तब केवल एक न्यूज एजेंसी के कैमरामैन को लेकर सरकार बनाने के दृश्य सार्वजनिक नही किये जाते . जिस तरह से पहले कहा गया कि अजित पवार का कभी समर्थन नही लेगे और फिर चुपके से उनके साथ ही सरकार बना ली ये सबने देखा है . ऐसे में बीजेपी को कम से कम इस बात का तो इंतजार करना चाहिये था कि सरकार कुछ काम कर ले फिर उसकी आलोचना करे लेकिन जिस तरह से देवेन्द्र फणनवीस पहले ही दिन से आक्रामक दिख रहे है उससे लगता है कि उनको भरोसा ही नही हो रहा है कि वो अब मुख्यमंत्री नही है .
कुछ लोगों ने शपथ ग्रहण के दौरान शिवाजी महाराज .बाला साहेब ठाकरे या महात्मा बुदध का नाम लिये जाने की बात को गलत बताया ये भी कहा कि पार्टी नेताओं का नाम नही लिया जाना चाहिये लेकिन अगर हम ध्यान से देखे तो ये सब असल में शपथ के लिये अपना नाम शुरु होने से पहले कहा गया . ये कहा गया कि उनको स्मरण करते हुए मैं शपथ लेता हूं . शपथ तो संविधान के तहत ही ली गयी फिर इस पर इतना बवाल क्यूं .असल मसला है कि क्या सिर्फ शपथ ही सब कुछ होती है असल बात तो उसके पालन करने की होती है.
बीजेपी ने पहले ही दिन से ये भी कहना शुरु कर दिया कि तीन पहियों वाली सरकार ज्यादा दिन नही चलेगी क्योकि तीनो पहिये अलग अलग दिशा में जा रहे है लेकिन असलियत ये है कि खुद बीजेपी इस सरकार को नहीं चलने देना चाहती . अभी से वो लगातार विऱोध कर रही है क्योकि उसे मालूम है कि बीजेपी विरोध का ये मसला अगर सचमुच परवान चढ गया तो देश के कई राज्यों मे इसे दोहराया जा सकता है.
देश की सबसे बडी और केन्द्र में सरकार चला रही बीजेपी से लोग इतनी अपेक्षा तो करते ही है कि वो सरकार को असल मुददों पर घेरे और बडा दिल दिखाते हुए रचनात्मक विपक्ष की तरह व्यवहार करे लेकिन उसके व्यवहार से एक तरह का ये अहंकार झलक रहा है कि अगर उसकी नही तो किसी की नहीं यानी सरकार तो बस बीजेपी चला सकती है और कोई नहीं .
महाराष्ट्र के इस पूरे एपिसोड से बीजेपी को तो धक्का पहुंचा ही है राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी के कामकाज पर भी सवाल उठे है जाहिर है अगर अब अगर वो बीजेपी के साथ कोई भी कदम उठाते है तो सवाल उठने लगेगे कि वो बीजेपी के राज्यपाल है या सरकार के . ऐसा लगता है कि एक बार मुंह जला चुके राज्यपाल अब अगली बार कई बार फूंक फूंक कर ही कदम रखेंगें.
अंदर की बात …सुप्रीम कोर्ट में क्यो नही मिला सहारा …
सरकार बनाने की जल्दबाजी में बीजेपी ने जब कई नियमों को ताक पर रख दिया था तो उसे भरोसा था कि कर्नाटक की तरह ही महाराष्ट्र के लिए भी उसे सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल जायेगी . बीजेपी के वकीलों ने कोशिश भी बहुत की लेकिन एक अहम बात वो याद रखना भूल गये .. वो ये कि इस समय जो मुख्य न्यायधीश शऱद बोबडे है वो दरअसल महाराष्ट्र से ही है और 1993 के बाद श्रीकृष्णा आयोग की रिपोर्ट के बाद बाला साहेब ठाकरे पर मुकदमे के वकील वही थे .इसलिए जब अदालत में ये नया मामला गया तो बोबडे ने खंडपीठ को साफ कह दिया था कि पूरी तरह से संविधान और कानून के तहत ही फैसला होना चाहिये किसी का फेवर नहीं . इसलिए बीजेपी को एक दिन का ही समय मिल पाया 14 दिन का नहीं जाहिर है इतने में वो विधायकों की तोडफो़ड नही कर पायी . अब शायद भाजपा को समझ आ गया होगा जब आप कोई गलती छुपाते है तो कई और गलतियां हो जाती है,.

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