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अब क्रिकेट नहीं हाकी का खेल बन गया है चुनाव

अब क्रिकेट नहीं हाकी का खेल बन गया है चुनाव
संदीप सोनवलकर
इन दिनों देश भर के तमाम चुनाव प्रोफेशनल हारी हुयी पार्टियों को सलाह देने में लगी है . कांग्रेस के नेता भी पीके के सामने हाथ जोड़ कर खड़े है कि वो कोई ऐसी जुगत बतायेंगे जिससे कांग्रेस की डूबती नैया पार लग जायेगी. पीके यानि प्रशांत किशोर ने अपने पुराने अंदाज में आंकड़ों के सहारे करीब 600 स्लाइड्स का प्रेजेंटेशन देकर कांग्रेस नेताओं को समझाने की कोशिश की है कि किस तरह 2024 की तैयारी की जाये . लेकिन असल सवाल तो कांग्रेस से जु़ड़ा जमीन का कार्यकर्ता पूछ रहा है कि कागजों पर रणनीती तो बना लोगे लेकिन काम करने वाले कार्यकर्ता कहां से लाओगे . नहीं तो यूपी की तरह ही हाल हो जायेगा और जहां पार्टी सबसे बड़ी थी वो अब एक सीट पर ही रह गयी है.
इन दिनों सभी ये जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या है जिससे बीजेपी चुनाव जीत जाती है. मेरी छोटी सी राजनीतिक समझ यही कहती है कि असल में बीजेपी ने चुनाव के खेल के नियम ही नहीं खेल ही बदल दिया है . पहले चुनाव क्रिकेट की तरह होते थे जहां पर चुनाव असल में कुछ बेहतरीन बल्लेबाजों यानि नेताओं की दम पर ही लड़ा जाता था . ये क्षेत्रीय और केन्द्रीय नेता अपनी दम पर ही चुनाव को जीत की तरफ खींच ले जाते थे . नरेंद्र मोदी ने भी 2014 का चुनाव अपने ही दम पर लड़ा और चुनावी जीत तक ले गये . पूरी टीम में अकेले वो ही ऐसे बल्लेबाज रहे जो ओपनिंग से लेकर अंत तक खेलते रहे .. लेकिन पांच साल बाद 2019 का चुनाव आते आते मोदी ने खेल ही बदल दिया .वो टीम के केप्टन तो रहे लेकिन क्रिकेट के बजाय अब वो हाकी के नियमों के हिसाब से खेल रहे हैं जहां पर पूरी बीजेपी मेन टू मेन मार्किंग के हिसाब से खेलती है. बस यही खेल कांग्रेस या बाकी दलों को समझ नहीं आ रहा वो अब भी किसी एक शीर्ष बल्लेबाज के भरोसे गेम जीतना चाहते हैं.
राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर अब इस मेन टू मेन मार्किंग वाली हाकी की रणनीती को समझते हैं. इस रणनीति के तहत बीजेपी पहले अपनी टीम को इस तरह लगाती है जहां पर वो सेंटर से लेकर बैकफुट तक मजबूत होती है और उसके बाद के चरण में फारवर्ड को तय करती है. इस रणनीति में अपने हिसाब से खेलने के साथ साथ इस बात पर भी ध्यान देना होता है कि विरोधी किस तरह खेल रहा है . अगर कोई विरोधी ज्यादा तेज खेलता है तो उसे घेरकर उसकी बढ़त रोक दी जाती है . इसी तरह खेल में जीत की तरफ बढ़ते हुए लगातार गेंद को एक दूसरे को पास दिया जाता है यानि लगातार मुददे बदलते रहते हैं जिससे सामने वाले को संभलने का मौका कम ही मिल पाता है और वो बीजेपी के ही बनाये नियमों से केवल डिफेंड खेलता रहता है .
अभी हाल ही में मेरे एक मित्र ने मुझे एक ऐप दिखाया जिसमें कैसे मतदाता की पहचान बिना उसे बताये ही कर ली जाती है. इस ऐप मे सोशल मीडिया के ऐनालिसिस से सबसे पहले पता लगाया जाता है कि उस इलाके के हर मतदाता और उसके परिवार की क्या रुचि है और वो क्या देखता है. फिर मतदाताओं का वितरण समर्थक ,निरपेक्ष और विरोधी में कर दिया जाता है .उसी हिसाब से उनको सोशल मीडिया पर मेसेजिंग की जाती है. यहां तक कि चुनाव के दिन भी समर्थक और निरपेक्ष मतदाता पर जोर दिया जाता है और साथ ही विरोधी मतों को कैसे काटा जाये इस पर ध्यान दिया जाता है. मैने हाल ही में गोवा चुनाव बहुत करीब से देखा बीजेपी शुरुआत में कमजोर विकेट पर थी लेकिन बाद में मेन टू मेन मार्किंग से उसने मतदाताओं का वर्गीकरण किया . अंतिम दिन से ठीक पहले गोवा की एक लोकल पार्टी गोवा रिवोल्यूशनरी की तरफ विरोधी मतों को धकेल दिया .बीजेपी की जीती 20 सीटों में से 10 में अंतर 2000 से भी कम था यानि मतों का सहीं अनुमान और वितरण से बीजेपी जीत गयी जबकि कांग्रेस की बिखरी टीम ये भी नहीं पता लगा पायी कि बीजेपी का चुनाव मैनेजमेंट क्या है.
जाहिर है अब राजनीति के मैदान में उतरने और जमे रहने वाली विरोधी पार्टियों को समझना होगा कि अब खेल के नियम ही नहीं खेल भी बदल चुका है .अब ये केवल एक या दो खिलाडियों का नहीं बल्कि पूरी टीम का पूरे समय तक खेलते रहने का खेल है जिसमें अपने साथ साथ विरोधी को भी उलझाये रखने का तरीका आना चाहिये .जाहिर है केवल किसी बाहरी कोच के भरोसे टीम नहीं जीत सकती टीम को खुद भी बदलना होगा .

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