newsmantra.in l Latest news on Politics, World, Bollywood, Sports, Delhi, Jammu & Kashmir, Trending news | News Mantra
Research and Education

हिंदी भाषा के लिए अपार संभावनाएं तलाशता पूर्वोत्तर भारत

हिंदी भाषा के लिए अपार संभावनाएं तलाशता पूर्वोत्तर भारत

– मोनिका त्रिवेदी (लेखिका ताक्त्से इंटरनेशनल स्कूल, सिक्किम में हिंदी विभागाध्यक्ष हैं)

भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है। पूरे भारत में संप्रेषण की सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाली भाषा हिंदी है। भारत में लगभग 171 भाषाएं और 544 बोलियां हैं। कई राज्यों की मातृभाषा भी हिंदी ही है। देश की राजभाषा हिंदी है और अगर हम व्यावहारिक रूप से देखें तो देश की राष्ट्रभाषा भी हिंदी ही है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का अगर अध्ययन किया जाए तो भारत के इन इलाकों में हिंदी की अपार संभावनाएं दिखती है। पूर्वोत्तर में हिंदी भाषा कम बोली जाती है। यहां हजारों वर्षों से असमिया भाषा संपर्क की भाषा रही है। असमिया के साथ ही बांग्ला, नेपाली, मणिपुरी, अंग्रेजी, खासी, गारो, निशि, सहित अधिकांश भाषाएं बोली जाती हैं। इन्हीं भाषाई विविधताओं के कारण ही पूर्वोत्तर भारत को भाषाओं की प्रयोगशाला भी कहा जाता है। पूर्वोत्तर की स्थिति का आकलन करें तो भाषाई रूप से आम बोलचाल में जहाँ विभिन्न जनजातीय भाषाओं का भौगोलिक रूप से एकाधिकार दिखता तो वहीं सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का आधिपत्य रहा है।

हिंदी राष्ट्रीय एकता की एक बड़ी शक्ति के रूप में विकसित और संवर्धित हो रही है। संपर्क की भाषा के लिए भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी हिंदी अपना स्थान बना रही है। आजादी के पश्चात अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय और मिजोरम जैसे राज्य असम से अलग होकर सृजित किये गए, इन राज्यों में रहने वाले लोगों की बोल – चाल की भाषा असमिया रही है। असमिया भाषा हिंदी से लगभग मिलती जुलती रूप में ही इस्तेमाल होती है। पूर्वोत्तर में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां भविष्य में हिंदी की व्यापकता और अधिक बढ़ सकती है। चाहे वह पर्यटन का क्षेत्र हो या आधुनिक मीडिया का। यातायात सुविधा सरल होने के कारण भी औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्रों में अपार संभावनाएं बढ़ी है।

हिंदी का उपयोग दिनों – दिन बढ़ता ही जा रहा है और आगे सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में भाषा की विविधता और अधिक संबल हो होगी। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी एक सफल भाषा के रूप में उभर कर सामने आ रही है। हिंदी भाषा का प्रचार – प्रसार और उसकी लोकप्रियता के कारण ही उच्च शिक्षा में भी हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है। भौगोलिक स्थिति की अगर आकलन करें तो भाषाई विविधता के कारण वर्तमान सामाजिक संस्थाओं में भी शिक्षित युवाओं की भागीदारी बढ़ी है यह नई संभावनाओं के द्वार खोलता नजर आ रहा है। यहां की युवा पीढ़ी भी अपनी जनजाति को भी आगे बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील हुए हैं। जिसके कारण वे अपनी भाषा, साहित्य, संस्कृति से भारत के लोगों से जुड़ने के लिए तत्पर दिख रहे हैं। उनके इस प्रयास में हिंदी अपने सार्थकता को साबित कर रहा है।

पूर्वोत्तर भारत में हिंदी के प्रचार – प्रसार में अनेक सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाएं भी लगी हुई है, जो हिंदी को भारत के माथे की बिंदी के रूप में देखना चाहते हैं। पूर्वोत्तर से प्रकाशित कई समाचार पत्र हिंदी माध्यम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का भी निर्वहन कर रहे हैं। जिनमें दैनिक पूर्वोदय, पूर्वांचल प्रहरी, प्रातः खबर, प्रेरणा भारती, अरुण भूमि आदि शामिल हैं जो हिंदी के विकास की गाथा गढ़ने के लिए अपनी सशक्त भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। वहीं पूर्वोत्तर भारत के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी विषय की पढ़ाई और उच्च शिक्षा में शोध संबंधित कार्य किए जा रहे हैं। जिनका एकमात्र व मूल उद्देश्य है हिंदी का सर्वांगीण विकास हो और यह समाज के हर वर्ग में अपनी भाषीय व्यापकता को साबित करे तभी सही मायनों में पूर्वोत्तर का विकास संभव हो पाएगा।

हिंदी भाषा के संवर्धन को लेकर सरकारी स्तर के साथ जनमानस में वैचारिक चेतना भी बेहद महत्वपूर्ण रही है। पिछले 7 वर्षों से सिक्किम में हिंदी अध्यापन के दौरान अनुभवों के आधार पर मैंने पाया कि पूर्वोत्तर के अभिभावकों में अपने बच्चों को हिंदी सिखाने के प्रति जिज्ञासा है। तथापि गैर हिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी का विकास और संवर्धन बेहद दुरूह कार्य है लेकिन आम जनमानस के सहयोग और विद्यार्थियों के सीखने की ललक से वो आसान हो जाती है। हिंदी साहित्यिक रूप से जितनी समृद्ध और सुढृढ़ भाषा है और यह जन-जन की भाषा के रूप में स्थापित है, उसके शुद्ध उच्चारण और वर्तनी के लेखन में विशेष ध्यान देने की भी आवश्यकता होती है। पूर्वोत्तर में विद्यार्थियों के बीच हिंदी के कथा-कहानी तो बेहद पसंद किए जाते हैं लेकिन लिखने व परीक्षा के लिए लेखन में वें इससे हिचकने लगते हैं। हिंदी में कार्टून व फिल्मों को लेकर उनके बीच उत्सुकता रहती है और वें इसके माध्यम से बोलने लायक हिंदी को ग्रहण कर लेते हैं। विद्यालयी शिक्षा में ये बातें महत्वपूर्ण हो जाती है कि केवल हिंदी बोलना महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि उसके लेखन और उसके व्याकरण को भी समझना होगा।

Related posts

IIM Kozhikode and Emeritus Commence Senior Management Programme to Equip Leaders with AI, Strategy, and Digital Transformation Skills

Newsmantra

L&T Partners with NICMAR for MTech Courses

Newsmantra

EuroKids Preschool Hosts Heartfelt Father’s Day Festivities Across Centres

Newsmantra

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More