भगवत गीता के अनुसार कौन हैं भगवान श्री कृष्ण के प्रिय भक्त, जानें गीता के श्लोक- परम् पूज्य महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी श्री ज्ञानानंद जी महाराज
गुरुग्राम : श्री पुरुषोत्तम मास के पावन पुण्य अवसर पर परम् पूज्य महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी श्री ज्ञानानंद जी महाराज जी के आशीर्वाद से श्रीकृष्ण कृपा जीओ गीता परिवार गुरुग्राम श्रद्धालुओं द्वारा पुरषोतम मास में गीता पाठ एवं सत्संग किया जा रहा है।18 जुलाई से 16 अगस्त तक पुरुषोत्तम मास (अधिक मास) में भजन कीर्तन और नाम जप का अत्यंत विशेष महत्व है। पुरुषोत्तम मास में श्री कृष्ण कृपा जीओ गीता परिवार गुरुग्राम की ओर से विभिन्न निवास स्थान और प्रतिष्ठानों पर 15वें अध्याय का गीता पाठ आयोजन किए जा रहे हैं। जिओ गीता प्रमुख पंकज पाठक ने बताया कि इन गीता पाठों के लिए पूरा महीना बुक हैं। इन पाठों का समय प्रति दिन शाम को 07:30 बजे से 9 बजे तक से मास पर्यंत सभी भक्तों द्वारा किया जा रहा है। पाठकों की सूचना नित्य प्रति सभी को व्हाट्सप्प ग्रुप से दी जाती है। और सिर्फ एक मेसिज से ही सैकड़ों भक्तों की संख्या एकत्रित होकर के गीता पाठ एवं भजनों का आनंद लेते है। श्री कृष्ण कृपा जीओ गीता परिवार गुरुग्राम के प्रधान गोविन्द लाल आहूजा ने बताया कि इन गीता पाठों में पंकज पाठक,उषा भरद्वाज,सुभाष गाबा,उमाशंकर भरद्वाज ,हरीश कुमार,दिनेश अरोरा,ठाकुर,अमित यादव ,आशुतोष ,मुख्य रूप से अपना योगदान दे रहे है ।
भगवत गीता को हिंदू धर्म का बहुत ही पवित्र धर्मग्रंथ माना गया है।
महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था जिसके बाद अर्जुन को अपने कर्तव्यों का अहसास हुआ।
भगवत गीता में कही गई बातों को महत्व आज भी उसी प्रकार बना हुआ है जितना कि उस समय युद्ध की भूमि में था।
श्रीमद्भागवत गीता, श्रीकृष्ण द्वारा बताई गई बहुमूल्य बातों का एक संग्रह है।
भारतीय परम्परा में गीता वही स्थान रखती है जो उपनिषद् और धर्मसूत्रों का है। आज यह केवल भारत तक सीमित नहीं रह गई है बल्कि देश-विदेश में भी गीता का पाठ करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। ऐसे में भगवत गीता में निहित कुछ श्लोक आपको जीवन की कठिन-से-कठिन परिस्थिति से निकलने में सहायता करते हैं। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कुछ ऐसे लोगों के बारे में बताए है जो उन्हें बेहद प्रिय हैं।
कौन हैं श्री कृष्ण के प्रिय लोग
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥
अर्थ – भगवान श्री कृष्ण के अनुसार, वह व्यक्ति जो कभी भी ज्यादा हर्षित होता है, न किसी से द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है। जो शुभ और अशुभ कर्मों से ऊपर उठ चुका है, ऐसा भक्त श्री कृष्ण को प्रिय होता है।
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥
अर्थ – जो मनुष्य किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं करता है, जो शुद्ध मन से भगवान की आराधना में लीन है, और जो सभी कर्मों भगवान को अर्पण करता है। ऐसा भक्त भी भगवान श्री कृष्ण को अति प्रिय है।
समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः॥
अर्थ – भगवत गीता में वर्णित इस श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं कि जो मनुष्य शत्रु और मित्र में, मान तथा अपमान में समान भाव से स्थित रहता है, जो सर्दी और गर्मी में, सुख तथा दुःख आदि द्वंद्वों में भी समान भाव से रखता है और जो बुरी संगति से मुक्त रहता है, वह मेरा प्रिय भक्त है।
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित्।
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः॥
अर्थ – भगवत गीता में निहित इस श्लोक का अर्थ है कि जिसकी मन सहित सभी इन्द्रियाँ शान्त हैं, जो हर प्रकार की परिस्थिति में संतुष्ट रहता है और जिसे अपने घर गृहस्थी में बहुत आसक्ति नहीं होती है ऐसा स्थिर बुद्धि वाला भक्त भी भगवान श्री कृष्ण को प्रिय है।