चंडीगढ़: हरियाणा पुलिस में मचा यह बवंडर अब एक जटिल और बहुस्तरीय विवाद का रूप ले चुका है जहां आरोप-प्रत्यारोप और आत्महत्याओं की कड़ी ने पूरे तंत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया है। ₹2.5 लाख की रिश्वत मांगने के आरोप से शुरू हुआ यह मामला अब नैतिकता, ईमानदारी और सत्ता के संघर्ष की सीमाओं तक जा पहुँचा है।
मामला तब सुर्खियों में आया जब एक शराब कारोबारी ने रोहतक में तैनात हेड कांस्टेबल सुशील कुमार पर आरोप लगाया कि वह आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार के नाम पर हर महीने ₹2.5 लाख की रिश्वत मांग रहा है। कारोबारी ने वीडियो फुटेज भी सौंपी, जिसके आधार पर सुशील को गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में उसने स्वीकार किया कि वह पूरन कुमार के नाम का इस्तेमाल कर रहा था। हालांकि, पुलिस ने न तो पूरन कुमार को जांच में बुलाया था, न ही कोई नोटिस जारी किया था।
लेकिन इससे पहले कि जांच आगे बढ़ती, 7 अक्टूबर 2025 को हरियाणा के वरिष्ठ आईपीएस अधिकार वाई. पूरन कुमार ने आत्महत्या कर ली। उनके नौ पृष्ठों के सुसाइड नोट ने पूरे महकमे को झकझोर दिया, उसमें उन्होंने कई वरिष्ठ अधिकारियों पर जातिगत भेदभाव, मानसिक उत्पीड़न और सार्वजनिक अपमान जैसे गंभीर आरोप लगाए थे।
अब सवाल उठता है, जब खुद पूरन कुमार पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे, तो क्या उनकी आत्महत्या एक मानसिक दबाव का परिणाम था या एक ऐसा कदम जिससे उन्होंने अपने ऊपर उठते संदेहों से ध्यान हटाने की कोशिश की? यदि वे खुद को ईमानदार अधिकारी मानते थे, तो क्या आत्महत्या ही एकमात्र रास्ता था? या फिर यह किसी साज़िश के जवाब में दिया गया संदेश था? वरिष्ठ अधिकारियों पर जातिगत भेदभाव, मानसिक उत्पीड़न और सार्वजनिक अपमान जैसे गंभीर आरोप के द्वारा वे अपने खिलाफ हो रहे जांच को कोई दूसरी दिशा देने के लिए नोट लिखा ? यह सब प्रश्न इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि ऐसे अनेक बातें सामने आई हैं जो उनके भ्रष्टाचार में लिप्त होने की आशंका व्यक्त कर रही हैं, जिसकी जांच भी हो रही है।
पूरन कुमार की मौत के एक सप्ताह बाद ही, एएसआई संदीप कुमार लाठर ने भी आत्महत्या कर ली। अपने वीडियो संदेश और सुसाइड नोट में लाठर ने पूरन कुमार और उनकी पत्नी, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अमनीत पी. कुमार पर भ्रष्टाचार और भारी दबाव डालने के गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने एक ₹50 करोड़ की संदिग्ध डील का ज़िक्र करते हुए दावा किया कि पूरन कुमार खुद इस नेटवर्क का हिस्सा थे।
इस तरह अब कहानी दो बिल्कुल विपरीत दिशाओं में बंट चुकी है, एक ओर पूरन कुमार के नोट में वह एक पीड़ित अधिकारी नजर आते हैं जो तंत्र से लड़ते-लड़ते टूट गया, जबकि दूसरी ओर लाठर के वीडियो में वही अधिकारी भ्रष्टाचार और दबाव की जड़ बन जाते हैं।
इन दोनों घटनाओं ने हरियाणा पुलिस के भीतर गहरे बैठे अविश्वास, जातिगत तनाव और सत्ता संघर्ष को उजागर कर दिया है। अब यह सवाल और भी गंभीर हो गया है, क्या आत्महत्या सच्चाई का अंत है, या सच्चाई से बचने का रास्ता?
सरकार ने इस पूरे प्रकरण की जांच विशेष जांच दल (SIT) को सौंपी है, लेकिन अब यह केवल दो आत्महत्याओं का मामला नहीं रहा, यह हरियाणा पुलिस और प्रशासनिक तंत्र की विश्वसनीयता की सबसे बड़ी परीक्षा बन चुका है।
हरियाणा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने वरिष्ठ अधिकारी अमनीत पी. कुमार (IAS) और उनके दिवंगत पति वाई. पूरन कुमार (IPS) के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति रखने के आरोपों पर खुली जांच (Open Inquiry) के लिए सरकार से अनुमति मांगी है।
अगस्त 2024 में भेजा गया यह प्रस्ताव अब तक स्वीकृति की प्रतीक्षा में है। रिपोर्ट के अनुसार, दंपति की संपत्तियाँ उनकी ज्ञात आय से 100% से अधिक पाई गईं। जांच में संपत्तियों की कम कीमत दिखाने, मनी लॉन्ड्रिंग और वार्षिक संपत्ति विवरण (IPR) में गड़बड़ी के भी आरोप हैं।
2012–2023 के बीच की जांच में ₹10.35 करोड़ की अघोषित संपत्ति का अनुमान लगाया गया है। दंपति के नाम गुरुग्राम, पंचकूला, चंडीगढ़, मोहाली और हैदराबाद में कई संपत्तियाँ मिलीं, जिनमें बाजार मूल्य से कम दरों पर खरीद के संकेत हैं।
यदि सरकार अनुमति देती है, तो यह खुली जांच भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत औपचारिक जांच का रूप ले सकती है।
