बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियो के बीच लालू यादव की पार्टी के पांच नेताओ के पार्टी छोड़ने पर ऐसे दिखाया जा रहा है कि जैसे चुनाव के पहले ही विपक्ष बिखर गया है । लेकिन कुछ लोग ये भी सवाल उठा रहे है कि कही ये बीजेपी का खेल तो नही जो छू करके खो खो का खेल जीतना चाह रही है ।
अभी तक का अनुभव रहा है जहाँ भी विधानसभा के चुनाव होते है वहाँ बीजेपी कुछ नेताओं को अपने पास लेकर तो कुछ को दूसरे दलो में भेजकर विपक्ष को डरा देती है।।महाराष्ट्र में तो रिकॉर्ड 300 नेताओ को तोड़ा गया लेकिन तब भी वोट नही बंटा और सरकार नही बन पाई।
विपक्ष को इस सियासी खेल को समझना होगा । राजद की कमान संभाल रहे तेजस्वी भी ये समझ रहै है उनका पूरा फोकस कांग्रेस और उपेंद्र कुशवाहा से तालमेल पर है ।जीतन राम मांझी को वो घास नही डाल रहे मांझी भी जल्दीजेडीयू जांयेंगे।
असल में बीजेपी और जेडीयू को।सवर्ण वोट का डर लग गया है।।इस बार भूमिहार और राजपूत के साथ ब्राम्हण भी नीतिश से कम बीजेपी से ज्यादा खफा है इसलिए बीजेपी इस वर्ग के कुछ बडे नेताओ को जेडीयू भेजकर वोट शिफ्ट करने की कोशिश कर रही है।।ऐसे में कांग्रेस और राजद को भूमिहार और सवर्ण समाज के नए जमीनी नेताओ को सही टिकट देकर इनकी काट निकालनी होगी।।
मांझी अलग लड़कर बीजेपी के साथ गए थे लेकिन पिट गए इसलिए नया ठौर तलाश रहे है तो रघुवंश बाबू उम्रदराज़ होकर अपनी उपेक्षा और खुद को हराने वाले रामा सिंह की राजद में आने से परेशान है।रामा सिंह बड़े राजपूत नेता के तौर पर उभर रहे हैं ।
बिहार में मुकाबला एनडीए vs महागठबंधन है.हालांकि एनडीए गठबंधन में लोजपा ने पेंच फंसा कर रखा है।लोजपा विस की कम से कम 43 सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रही है।चिराग पासवान तो कई बार कह चुके हैं कि उनकी पार्टी लोजपा उन सीटों पर तैयारी में जुटी है जहां जेडीयू और बीजेपी के विधायक नहीं हैं।
राजद गठबंधन के नेताओ को अब अपराध या फिर प्रवासी मजदूर का हर मुद्दे पर एक साथ नजर आना होगा और नेताओं।की आवाजाही के बजाय मुद्दों पर फोकस करना होगा।
बता दे कि पिछली बार राजद-जदयू साथ-साथ थी। जदयू ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था.इस बार जेडीयू बीजेपी के साथ चुनाव लड़ रही है।एनडीए गठबंधन में शामिल जेडीयू कह चुकी है कि 2019 का लोकसभा का फार्मूला ही इस बार भी लागू होगा।वहीं इस गठबंधन में लोजपा भी है।वहीं महागठबंधन में राजद सबसे बड़ी पार्टी है।इसके बाद कांग्रेस,रालोसपा और वीआईपी जैसी पार्टियां हैं।लेकिन सभी छोटी पार्टियों की चाहत है कि इस बार उन्हें अधिक सीटें मिले।