भगवान शिव जी को श्रावण माह में दूध चढ़ाने की परंपरा बहुत पुरानी है
‘रुद्राभिषेक’ और अन्य अवसरों पर भी महादेव जी को दूध चढ़ाया जाता है ने बताया कि शिवजी को दूध चढ़ाने का पौराणिक कारण है:-
पौराणिक कारण:- सृष्टि की रचना होने के बाद जब देवताओं और असुरों में निरंतर भयंकर युद्ध होने लगे तब असुरों की विशालकाय सेना और बाहुबल देवताओं पर भारी पड़ने लगा, देवताओं को अत्यधिक होनेवाली हानि से चिंतित देवराज इंद्र समस्त देवताओं के साथ ब्रह्माजी के पास पहुंचे और वृतांत सुनाया, ब्रह्माजी बोले आपलोग जगतपालक श्रीहरि विष्णु के पास जाईए, वहीं आपकी चिंता दूर करेंगे.
सभी देव विष्णुजी के पास पहुंचे और अपना वृतांत पुनः सुनाया, विष्णुजी ने समुद्र मंथन और उससे प्राप्त होने वाले अमृत तत्व का रहस्य समझाया…. समुद्र मंथन हुआ तो सर्वप्रथम वो “हलाहल विष” प्राप्त हुआ, क्या करें इस विष का पृथ्वी पर पड़े तो समस्त पृथ्वी नष्ट होगी, आकाश में फेकें तो अंतरिक्ष नष्ट और जल में फेकने पर जल संसाधन हीं हलाहल बन जाएगा, महादेव शिव जी ने उस हलाहल को पीकर अपने कंठ में स्थिर कर लिया और विष के कारण उनका कंठ नीले रंग का हो गया, इसीलिए महादेव को ‘नीलकंठ’ नाम भी मिला विष की उष्णता को नियंत्रित रखने के लिए शीतलता की आवश्यकता होती है और गाय के दूध से शीतल क्या हो सकता है?
जिन्होने विष को कंठ में धारण कर लिया हो उनको विष की उष्णता क्या हानि पहुंचा सकती, असंभव, बिल्कुल नहीं।
लेकिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हम उनके प्रति अपनी निष्ठा और श्रद्धा को बताने के लिए दूध का अभिषेक करते हैं.! शिवजी को दूध की आवश्यकता नहीं, हमे शिव जी की आवश्यकता है और इसीलिए अभिषेक होता है.!
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।।
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