कांग्रेस ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि वो बदलते वक्त और कठिन चुनौतियों के बावजूद भी यथास्थिती वाद में यकीन रखती है. पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने साफ कर दिया कि अभी जब तक नये अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो जाता तब तक सोनिया गांधी ही कार्यकारी अध्यक्ष का काम संभालती रहेंगी.
सोनिया गांधी को पिछले साल 10 अगस्त को पार्टी की कार्यसमिति ने उस समय अधयक्ष चुना था जब 2019 की हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था . तब से अब तक पार्टी तय नहीं कर पा रही है कि उसे किस रास्ते पर जाना है . पार्टी का ये संकट हर जगह दिखायी देता है विचारधारा से लेकर संगठन के स्तर तक . नये और पुराने का संघर्ष चरम पर है और इसी में ज्योतिरादित्य के बाद सचिन पायलट की बगावत ने ये तो साफ कर दिया है कि टीम राहुल बिखर गयी है. अब ऐसे में राहुल की वापसी को लेकर पार्टी में संकट की स्थिती है .क्योकि सोनिया स्थाई विकल्प नहीं है और राहुल इस बात पर अडे है कि वो फिर से अध्यक्ष तभी बनेगें जब उनको हर फैसला लेने की छूट होगी .कोई आडे नहीं आयेगा. राहुल को लगता है कि अध्यक्ष के तौर पर उनको खुलकर काम करने ही नहीं दिया गया . कांग्रेस को अपना पारिवारिक व्यवसाय और जागीर समझने की ये गलती राहुल को भारी पड सकती है.
खुद कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने लिखा है कि पार्टी को नेतृत्व का संकट सबसे पहले सुलझाना चाहिये तभी केन्द्र से लेकर राज्यो तक पार्टी संगठन में बदलाव हो पायेगा. अभी तो पूरा संगठन ही अस्थाई भाव से चल रहा है .राहुल गांधी की टीम वही पुराने पैतरे अपना रही है . खुद चुनाव से भाग गये राजीव सातव सलाह दे रहे है कि यूपीए दो की गलती के कारण पार्टी को नुकसान हुआ राहुल के कारण नहीं .उनके इस बयान की मनमोहन सरकार में मंत्री रहे लोगो ने जमकर मजम्मत की तो वो बहस से ही भाग गये .
अभी पार्टी राजस्थान के संकट से जूझ रही है .उसके परिणाम के बाद ही तय हो पायेगा कि संगठन में कब बदलाव होगा. राजस्थान ने राहुल टीम और कांग्रेस संगठन में खींचतान को खुला कर दिया है. जाहिर है राजस्थान तय करेगा कि कांग्रेस में टूट कहां जाकर रुकेगी.