महाराष्ट्र की राजनीति में कहते है कि शरद पवार फायदा कम कराते हैं लेकिन नुकसान जरुर बहुत पहुंचा सकते है. यही डर है कि एनसीपी के विधायक पार्टी छोडने से पहले कई बार सोचते हैं . सातारा के महाराज उदयन राजे भोसले ने भी जब सांसदी छोडी तो पवार ने श्रीनिवास पाटिल के जरिये उनको हरा दिया और संदेश दिया कि हमसे दुशमनी अच्छी नही .
पवार को जानने वाले ये भी कहते है कि शरद पवार के लिए खुद से बडा और कोई नहीं और वो खुद को बचाने के लिए कुछ भी दांव पर लगा सकते है. अब बस ये साफ होना बाकी है कि पवार ने इस बार क्या दांव पर लगाया है . राजनीतिक जानकार मानते है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद सबसे पहले विपक्ष में बैठने का राग अलापने वाले शरद पवार ने फिर सरकार बनाने की कोशिश करके एक साथ कई निशाने लगाये हैं.
1. अजित पवार को हटाया .. एनसीपी के लोग मानते है कि शरद पवार को एक हफ्ते पहले से इस बात का अंदाजा था कि अजीत पवार बाहर जायेंगे .उन्होने वो होने दिया .ताकि अजीत पवार चले तो पार्टी की कमान पूरी तरह अपनी बेटी सुप्रिया को दे सकें
2. बीजेपी के साथ सेंटिंग. किसानों के मुददे के नाम पर शरद पवार खुद अकेले ही पीएम मोदी से मिले .कहते है कि उसी में रणनीती बनी कि बीजेपी की सरकार बनने दी जाये . पवार मान गये लेकिन ये सोचा कि इसी बहाने अपना कांटा भी साफ कर लें.
3. कांग्रेस शिवसेना को नुकसान .. शऱद पवार की चाल का सबसे बडा नुकसान हुआ तो कांग्रेस शिवसेना को होगा. अब सरकार नहीं बनी तो कांग्रेस और शिवसेना दोनों ही डिसक्रेडिट हो जायेंगे और गलती से अगर बन गयी तो पवार ने शिवसेना को मजबूर कर दिया है कि ढाई ढाई साल सीएम का पद बंटे यानी एनसीपी को सीएम की पोस्ट मिल जाये . तब कांग्रेस को तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा.
4. शक ये भी है कि पवार ने अपने और सहयोगी पटेल सहित अन्य लोंगो पर चल रहे मुकदमे और जांच को भी ठंडे बस्ते मे डालने की बात कर ली है .
5. कुल मिलाकर हर हाल में फायदा शरद पवार का ही होगा . कांग्रेसी अभी पवार को समझ नहीं पायेंगे .उदधव तो खैर क्या ही समझेंगे .