नया साल 2025 दुनिया के लिए कई चुनौतियां एक साथ लायेगा और दुनिया को उनसे मिलकर ही लड़ना होगा . अगर ये साल हम चूक गये तो इसकी कीमत सदियों तक चुकानी होगी. नये साल में कितने अवसर और चुनौतियां होगी खासकर भारत के संदर्भ में आइये इस पर बात करते हैं.
युदध से आगे जाना होगा . दुनिया के कम से कम तीन बड़े इलाकों में इस समय युदध चल रहा है और सबसे ज्यादा असर आने वाले साल में इसका दिखायी देगा.. इजराइल फिलिस्तीन के युदध में इस बार निर्णायक मोड़ आने की संभावना है .उसके लिए अमेरिका के नये ट्रंप की जनवरी 2025 में ताजपोशी के साथ ही फैसले होंगे . वैसे तो अमेरिका खुलकर इजराइल के साथ है लेकिन ये युदध ज्यादा दिन चले उसे रास नहीं आ रहा .इसका असर दुनिया भर की इकानामी पर भी हो रहा है. दूसरा युदध उक्रेन और रुस के बीच चल रहा है इसे रोकने में भी अमेरिका की बड़ी भूमिका हो सकती है लेकिन वो अभी रुस के साथ नहीं है ऐसे मे पुतिन बार बार हार की हताशा में परमाणु बम चलाने की धमकी देते रहते हैं. अगर ऐसा हुआ तो दुनिया के लिये ये बहुत बुरा होगा. तीसरा युदध मिडिल इस्ट के कई देशों में गृहयुदध के तौर पर चल रहा है . सीरिया लेबनान हूती जैसै कई देश अब भी इससे उबर नहीं पा रहे हैं. 2024 का साल युदध की विभीषका और लालच की पराकाष्ठा दिखाता रहा है . जमीन के एक टुकड़े से लेकर संसाधनों पर कब्जा हर बार इसी कारण से युदध हो रहा है . अगर दुनिया को अगले साल में आगे बढ़ना है तो युदध का समाधान देखना होगा.
इकानामी के फ्रंट पर .. दुनिया भर की इकानामी में विकास का पहिया थम सा गया है. जर्मनी में तो विकास की दर जीरो पर है तो चीन अमेरिका और यूरोप जैसे बड़े देशों में भी विकास दर दो से तीन प्रतिशत तक ही है. ऐसे मे हर देश पहले खुद के संसाधनों पर अपने लोगों के हक की बात कर रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने तो अमेरिका फस्ट की बात करके ये बता ही दिया है कि नये साल में वो कई देशों पर पाबंदी लगायेंगे और दुनिया भर से काम की तलाश में अमेरिका आने पर पाबंदी भी इसमे शामिल होगी . एच 1 बी वीसा को लेकर पहले ही बहस होने लगी है . इसका सबसे ज्यादा असर भारत पर होगा . भारत से हर साल दस लाख लोगों को अलग अलग केटेगिरी में अमेरिका का वीसा दिया जाता है लेकिन अब इस पर पाबंदी ज्यादा होगी तो लोगों को जाने मे परेशानी होगी. उधर अमेरिकी डालर के मुकाबले भी भारत का रुपया तेजी से गिर रहा है अब ये लगभग 86 रुपये की बेस दर पर पहुंच गया है लेकिन असल में एक डालर के लिए सौ रुपये तक एक्सचेंज की कीमत आती है. ऐसे में भारत में एशियाई देशों के साथ मिलकर एक नई करेंसी का विचार रखा था लेकिन अमेरिका ने साफ कह दिया कि वो ऐसे किसी प्रयास को चलने नहीं देगा. इकानामी और उसमें दुनिया भर की हिस्सेदारी इस पर नया साल सबसे ज्यादा असर डालने वाला है. बीस साल पहले जब दुनिया में आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरु हुआ था तो तब कहा जाने लगा कि दुनिया मे सब मिलकर तरक्की करेंगे लेकिन अब फिर से लोकल से वोकल की बात कही जाने लगी है. हर देश पहले खुद को देखना चाहता है. हालांकि भारत और चीन दोनों को ही इस दौर मे सबसे ज्यादा फायदा होने की बात कही जा रही है क्योकि दुनिया में ये दोनों ही देश सस्ते श्रम और खुली इकानामी के कारण उत्पादन मे सबसे ज्यादा योगदान दे सकते हैं. भारत और चीन में भी अब दुश्मनी के बजाय सह अस्तित्व की भावना दिख रही है लेकिन चीन के आक्रामक सैनय ताकत के आगे कुछ कहा नहीं जा सकता.
एआई तय करेगी आपका एजेंडा .. दुनिया भर में 2024 जहां ए आई के पापुलर होने का साल रहा तो 2025 उसके हर घर और हर व्यक्ति से जुड़ जाने का साल होगा. अगले साल तक चैट जीपीटी जैसे कई वर्जन सामने आयेंगे जो एक तरफ आपके काम को आसान करेंगे वही इस बात पर मजबूर कर देंगे कि सोचने की जरुरत ही नहीं सब काम ए आई करेगा यानि ए आई अब आपकी तरफ से सोचने और ऐजेंडा बनाने का काम करेगा. इसका रोज की जिंदगी पर सबसे ज्यादा असर होगा . दुनिया भर के लोग ये सोच रहे है कि एआई अब तक किसी रोबोट सा है जो कमांड देने पर काम करता है लेकिन अगर एआई खुद ही सोचकर खुद को कमांड देने लगे तब क्या होगा . एआई 2025 का सबसे बड़ा अविष्कार और खतरा दोनों हो सकता है. दुनिया भर में इससे सोचने समझने का तरीका बदल जायेगा . रोजगार के मौके और तरीकों पर भी इसका जमकर असर होगा .भारत जैसा देश इसका चाहे तो फायदा उठा सकता है क्योकिं ये अँग्रेजी के कारण कम आंकने वाले युवाओं के लिए बहुत ही मददगार साबित हो सकता है. साथ ही इसके जरिये आप बहुत से रुटीन काम को आसानी से कर सकते तो उससे आगे सोचने का मौका भी मिलेगा. इसका एक बड़ाअसर डिटीजल क्रांति और वीडिओ कंटेंटे पर भी होगा .हो सकता इस नये साल में पूरी फिल्म ही एआई से बनकर आती हुयी दिखे . पी आर से लेकर पत्रकारिता तक के लेखन और चिंतन के क्षेत्र मे एआई का सबसे ज्यादा असर होगा ..
पर्यावरण की चुनौतियां. सन 2024 ने कोविड के बाद प्राकृतिक तौर पर कई ऐसी आपदायें देखी जो ये साफ बता रही है कि अगर अगले एक साल मे हमने पर्यावरण को लेकर कदम नही उठाये तो उसका खामयाजा हमको देखना ही होगा. साल भर में अचानक कहीं कम और कहीं बहुत ज्यादा बारिश का असर हम देख चुके हैं गर्मी ने कई रिकार्ड तोड़ दिये तो अब समूचे भारत मे धुंध और हवा की क्वालिटी खराब होने जैसे कई हादसे दिख रहे हैं. उधऱ दुनिया भर में बर्फ पिघलने के कारण जहां समुद्र का जल स्तर बढ रहा है इससे कई संमदर किनारे बसे शहर डूब सकते हैं. पर्यावरण जनित बीमारियों के फैलने का असर भी हम देख चुके हैं इसका सबसे बड़ा नुकसान गरीबों को ही उठाना प़ड़ रहा है . दुनिया भर में गरीब को इलाज कराना सबसे बड़ी चुनौती बनता जा रहा ऐसे मे अगले साल भारत और कई देशो में इंश्योरेंस का विस्तार होगा लेकिन उसे लेना भी उतना ही मंहगा होता जायेगा.
एनर्जी की लड़ाई ..कहते है कि दुनिया में अगली लड़ाई केवल पानी और ऊर्जा पर ही होगी जो देश इन दोनों मामले में जितना काम करेगा वो दुनिया में उतना ही विकास करेगा . भारत में उर्जा पर तो बहुत काम हो रहा है लेकिन पानी को लेकर जागरुकता केवल कमी के समय ही दिखायी देती है. भारत को अपनी नदियों और जल स्त्रोंतो को बचाने का काम नये साल मे करना होगा उसी से उसकी तरक्की के रास्ते खुलेगें .फसलों के चक्र मे बदलाव , चावल दाल गेंहू के साथ साथ बाकी अन्य फसलों पर एमएसपी .. किसानी को लाभदायक बनाना और गांव में रोजगार के अवसर बनाना भारत के सामने सबसे पहली प्राथमिकता होगी. जहां तक भारत की बात है तो लोकसभा चुनाव के बाद अब कम से कम अगले चार साल तक स्थिरता दिख रही है . मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में अब उनको विकसित भारत की तरफ कदम बढ़ाना है लेकिन मंहगाई और अमीरी गरीबी की बढ़ती खाई ऐसी चुनौतियां है जिनका हल अभी तक नहीं दिख रहा.
सांप्रदायिकता से लड़ाई .
भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में इस समय बहुसंख्यकवाद की लहर चल निकली है जिस देश में जो ताकतवर है वो दुसरी कौम को दबाना या हटाना चाहता है. भारत में इन दिनों हिंदुत्व और इस्लामोफोबिया का असर जनता से लेकर मीडिया तक हर जगह दिख रहा है . बंगलादेश में हिंदूओं पर अत्याचार हो रहे हैं तो इजराइल जमकर फिलिस्तीन पर बम बरसा रहा है .नये साल में इस्लामिक विश्व में भी जमकर बदलाव होने हैं वहां भी उनको नया रास्ता देखना है . दुनिया के करीब 64 देशों में इस बार चुनाव होना है ऐसे में वहां पर अगर ज्यादातर जगह पर बहुसंख्यक वादी और लोकतंत्र के बजाय अधिनायकवादी ताकतें आती है तो दुनिया में फिर से एक बार संघर्ष का दौर आ सकता है. कुल मिलाकर देखे तो नया साल बहुत सी चुनौतियों को लेकर सामने आने वाला है . ऐसे में दुनिया के ताकतवर देशों को अपने संकुचित दायरे से उठकर दुनिया के सवाल पर बात करनी होगी तो एक नय