केरल सरकार ने निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के हित में एक ऐतिहासिक पहल करते हुए ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025’ पेश किया है। इस कानून का उद्देश्य कर्मचारियों को कार्यालय समय के बाद काम से जुड़ी कॉल, संदेश या ईमेल का जवाब देने के दबाव से मुक्त करना है। प्रस्तावित बिल के अनुसार, यदि कोई कर्मचारी ऑफिस टाइम के बाद काम से संबंधित संचार का जवाब नहीं देता, तो उसके खिलाफ किसी भी प्रकार की सजा, पदावनति या भेदभाव नहीं किया जा सकेगा। साथ ही, नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों के कार्य समय स्पष्ट रूप से निर्धारित करने, आपातकालीन परिस्थितियों के लिए दिशानिर्देश तय करने और शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने के निर्देश दिए गए हैं।
यह कदम यूरोपीय देशों में पहले से लागू ऐसे कानूनों से प्रेरित है, जो कर्मचारियों को मानसिक शांति और व्यक्तिगत जीवन का अधिकार प्रदान करते हैं। बिल में जिला स्तर पर शिकायत निवारण समितियों के गठन का भी प्रावधान है, जो अत्यधिक काम का बोझ, कार्य समय के बाद दबाव या डिजिटल निगरानी जैसी शिकायतों की सुनवाई करेंगी। यदि यह कानून लागू होता है, तो केरल भारत का पहला राज्य बनेगा जो कर्मचारियों को कार्य समय के बाद व्यक्तिगत समय का कानूनी अधिकार देगा। यह पहल आधुनिक कार्य संस्कृति में मानसिक स्वास्थ्य और मानवीय दृष्टिकोण को प्राथमिकता देने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
यह बदलाव केवल कानून तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि पूरे देश में इसे कार्य संस्कृति का हिस्सा बनाना चाहिए। कार्यालय समय के बाद काम से जुड़ाव तोड़ना कोई शर्म की बात नहीं, बल्कि हर कर्मचारी का अधिकार होना चाहिए। कंपनियों को यह समझना होगा कि कर्मचारी का स्वास्थ्य और मानसिक शांति किसी भी संगठन की असली पूंजी है। साथ ही, उन व्यक्तियों को भी संवेदनशील होना चाहिए जो ओवरवर्क को ‘समर्पण’ का प्रतीक बनाकर टीमों में पक्षपातपूर्ण माहौल तैयार करते हैं। अब समय आ गया है कि इस मौन महामारी पर खुलकर बात की जाए और कार्य-जीवन संतुलन को कानूनी और सामाजिक दोनों स्तरों पर सामान्य बनाया जाए।
