देश की एकता और अखंडता की भाषा है हिंदी
हिंदी दिवस पर विशेष आलेख
हिंदी को संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकृति प्राप्त है। आज़ादी के पश्चात सन् 1950 ई॰ में भारतीय संविधान ने इसे राजभाषा के रूप में दर्जा दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ही भारत में हिंदी को राजभाषा बनाने की आवाज मुखर रूप से सुनाई देने लगी थी लेकिन इसमें देश की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता का ध्यान रखना भी तत्कालीन दौर में नई आजादी मिले देश के लिए गंभीर विषय था। परिणामस्वरूप स्वतंत्र भारत की संविधान सभा में 12 सितंबर 1949 से राजभाषा से संबंधित विवेचना शुरू हुई तथा कुल 324 सदस्यों में से 312 सदस्यों द्वारा संघ की राजभाषा हिंदी और देवनागरी लिपि के रूप में पारित हो गई।
हिंदी भाषा की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। संस्कृत और हिंदी भाषा के रिश्ते को माँ-बेटी के रिश्ते के समान माना जाता है। भक्ति आन्दोलन (14वीं-17वीं सदी) के दौरान कबीर, तुलसीदास, सूरदास जैसे संतों ने हिंदी को जन-जन की भाषा के रूप में प्रचलित किया। हिंदी भाषा ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ आन्दोलन चलाने तथा जन-जन को जागृत करने के लिए भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने हिंदी को ही महत्वपूर्ण माना। यहाँ तक कि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने कहा था, “हिंदी ही भारत की राष्ट्रभाषा बन सकती है।” जन-जन तक अपने विचार पहुंचाने के लिए हिंदी अखबार सफल संसाधन के रूप में उभरे। हमारे देश के क्रांतिकारी कवियों और लेखकों ने लोगों में एकता एवं देशभक्ति जागृत करने के लिए हिंदी भाषा को सार्थक और सहज के साथ जनव्यापी समझा। ऐसा इसलिए था क्योंकि उस वक़्त हिंदी एकमात्र ऐसी भाषा थी जो सारे देश के लोगों को एक सूत्र में बांधती थी | भारत के ज्यादातर लोग हिंदी समझ सकते थे और आज भी यह तर्क यथावत लागू होता हैं |
राष्ट्रीय एकता में हिंदी की अहम् भूमिका हमेशा से ही रही हैं। वर्तमान समय में हिंदी भाषा भारत के 11 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों की आधिकारिक भाषा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 52.8 करोड़ लोग अर्थात 43.63 प्रतिशत हिंदी को मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। हिंदी भाषा की अन्य बोलियों जैसे भोजपुरी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी आदि जोड़ने पर संख्या 57 प्रतिशत से अधिक हैं। भारत के 75 प्रतिशत विद्यालयों में हिंदी भाषा विषय के रूप में पढ़ाई जाती हैं। एनसीआरटी एवं सीबीएसई की कक्षाओं में हिंदी का पाठ्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर समानता और एकरूपता का मानक स्थापित करते हैं। 40 प्रतिशत से अधिक समाचार पत्र हिंदी भाषा में प्रकाशित होते हैं |
वैश्विक स्तर पर भी हिंदी सक्रिय रूप से अपनी पहचान लगातार बनाने में सफल रही है। सुदूर देश मॉरीशस में हिंदी आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित है तथा वहाँ की 70 प्रतिशत आबादी भारतीय है। यहाँ तक कि फिजी में संसद के आधिकारिक कार्यों में हिंदी का प्रयोग होता है। हिंदी साहित्य एवं संगीत की झलक सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो में आज भी देखने को मिलती हैं। सबसे तेज़ी से स्वीकार्य और बढ़ने वाली भाषा फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर हिंदी ही हैं। वर्तमान दौर में हिंदी गानों और अन्य सामग्रियों को सबसे अधिक यूट्यूब पर देखा जाता है। बॉलीवुड फिल्मों, गानों, योग और साहित्य ने हिंदी को वैश्विक पहचान दिलाई है। शिक्षा के क्षेत्र में भी हिंदी भाषा पीछे नहीं रही। विश्वभर में करीब 170 से अधिक विश्वविद्यालयों (रूस, जापान, जर्मनी, अमेरिका, कोरिया आदि) में हिंदी पढ़ाई जाती है। ऑक्सफ़ोर्ड, कैम्ब्रिज और हावर्ड जैसे प्रतिष्ठित और पुराने विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा विभाग सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। हिंदी भाषा एक ऐसी भाषा हैं जो राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान को सक्रिय रूप से मजबूती प्रदान करती हैं।
परंतु कई प्रश्न भी उठते हैं कि जहाँ हिंदी भाषा को विश्व स्तर पर अधिक सम्मान मिल रहा हैं वही दूसरी ओर हमारे ही देश में क्या सही मायनों में हिंदी को व्यापक सम्मान मिल रहा है? जिस भाषा के माध्यम से हमें आज़ादी मिली उसी भाषा को लोग अब बहिष्कृत और तिरस्कृत करने लगे हैं। हास्यास्पद यह हैं कि आज कल कई लोग अपनी ही मातृभाषा हिंदी में बात करने को अपमान मानते हैं तथा हिचकते हैं। वें समझते हैं कि हिंदी भाषा में बात करने से उनका स्तर नीचे हो जाएगा या उन्हें दोयम नजर से देखा जाएगा। गैर हिन्दी भाषी क्षेत्रों में इसका महत्त्व कुछ अभिभावकों द्वारा समझा तो जा रहा हैं परंतु कई विद्यालयों में इसे केवल एक विषय के रूप में ही लिया जाता है, जिसे माना जाता हैं कि आगे जाकर उच्च शिक्षा के लिए यह विषय उपयोगी नहीं है। जबकि हिंदी किसी भी अन्य विषय से कहीं भी कम नहीं है। यह रोजगारपरक विषय है और इसे भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर उसी सम्मान के नजर से देखने की आवश्यकता है। केंद्र की वर्तमान सरकार ने हिंदी को लेकर बेहद ही सार्थक पहल की थी लेकिन आज भी संगोष्ठियों और भाषणों से बाहर यह धरातल पर उतनी कारगर नहीं हो सकी है। हिंदी को बोलना जितना आसान है उतना ही शुद्ध हिंदी लिखना और बोलना कठिन कृत्य है लेकिन कई बार हिंदी को बेहद आसान समझ लिया जाता है और व्याकरण की समझ के बगैर इसके इस्तेमाल से हिंदी का अपभ्रंश कर दिया जाता है जिससे इसके अस्तित्व पर खतरा भी मंडराने लगता है। यह एक विडंबना ही हैं कि आज़ादी के पश्चात जहाँ हिंदी भाषा को सम्मान मिलना चाहिए था वहीं वह अपने अस्तित्व के लिए अपने ही उद्भव स्थल में जूझ रही है। कई राज्यों में तो हिंदी बोलने पर ही विरोध किया जा रहा है जो अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आता है। आखिर हिंदी को सही रूप से अपने ही देश में सम्मान और वाजिब दर्जा कब मिलेगा तथा सही अधिकार कब मिलेंगे? ऐसे यक्ष प्रश्न मन में उभरते हैं। जिस हिंदी भाषा ने आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी उसका सम्मान हमें करना चाहिए तथा हिंदी भाषा के महत्त्व को समझना चाहिए एवं इसकी उन्नति के लिए सदा अग्रसर रहना चाहिए। यही भाषा हैं जो हर भारतीय को आपस में एकता के रूप में जोड़ती है और उनमें आत्मीयता का संचार करती है।
मोनिका त्रिवेदी
(लेखिका मंजुश्री पब्लिक स्कूल, सिक्किम में हिंदी की अध्यापिका हैं)