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Political

नये साल में सरकार से उम्मीद भी और चुनौतियां भी

-संदीप सोनवलकर, वरिष्ठ पत्रकार

साल 2024 वैसे तो ये भी एक और साल है लेकिन भारत के लिहाज से देखें तो एक बहुत ही महत्वपूर्ण साल है क्योंकि इसी साल की दूसरी तिमाही में लोकसभा के चुनाव होंगे और उसी में नयी सरकार बनेगी जो अगले पांच साल के लिए देश की दशा और दिशा दोनों तय करेगी . बीजेपी ने अभी से मोदी 3.0 यानि तीसरी बार भी मोदी सरकार की तैयारी शुरु कर दी है वहीं विपक्ष भी मोदी सरकार को चुनौती देने के लिए इंडिया एलायंस को ठीक करने में लगा है . चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी मैं नहीं करूंगा लेकिन इस साल की उम्मीद और चुनौतियों पर तो बात हम कर ही सकते हैं.

इकानामी की रफ्तार .. कोविड के तीन साल और उसके बाद जीएसटी नोटबंदी के असर के बाद इस साल बाजार में फिर से तेजी आने की उम्मीद है . मोदी सरकार की वापसी के साथ बाजार को स्थिरता की उम्मीद है . भारत इस बार कम से कम सात प्रतिशत की ग्रोथ रेट की उम्मीद कर रहा है और सरकार भी पांच ट्रिलियन इकानामी की तरफ कदम बढाना चाहती है . लेकिन इसी इकानामी में पूरी दुनिया में सुस्ती और युदध के असर के संकेत भी दिख रहे हैं ऐसे में भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती इकानामी की रफ्तार बनाये रखना और साथ ही पूंजी के नये रास्ते खोलने की जरुरत है . बीते दो साल में स्टार्टटप की इकानामी ठप पड़ गयी है और ये कहा जा रहा है कि केवल बड़े उघोग ही पैसा कमा रहे हैं लेकिन अब इसे आगे ले जाने की जरुरत है तभी देश में पूंजी का सृजन और विस्तार होगा . हालांकि फरवरी में सरकार का अंतरिम बजट होगा लेकिन उसके बाद जुलाई में पूरे बजट के साथ सरकार को बताना होगा कि उसकी इकानामी को लेकर क्या सोच है. हो सकता है कि तब तक देश को कोई नया वित्त मंत्री भी मिल जाये .

रोजगार की चुनौती . भारत में इस समय बेरोजगारी की दर सात से आठ प्रतिशत और कुछ राज्यों में तो बीस प्रतिशत तक दिख रही है .. ये साल रोजगार के हिसाब से बहुत अहम होगा एक तरफ जहां चुनावी वादे करने होगे वहीं दूसरी तरफ रोजगार देने के नये अवसर तलाशने होगे . सरकार ने विश्वकर्मा कौशल योजना चालू की है और लोकल से वोकल जैसे नारे भी दिये है लेकिन असल मे अभी भी छोटे उघोंगों में सुस्ती बरकरार है और नये प्रोडक्ट की गुंजाइश कम दिख रही है ऐसे में उनकी खरीद और एक्सपोर्ट दोनों पर ही ध्यान देना होगा .इसके साथ ही इंफ्रा सेक्टर में भी बड़े निवेश और सुधार की तरफ देखा जा रहा है तभी इकानामी का पहिया घूमेगा . सरकारी नौकरी की गुंजाइश कम दिख रही है और अगर कहीं होगी भी तो वो अग्निवीर की तर्ज पर ही होगी ऐसे में बड़ी संख्या में रोजगार सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है. आभासी समझ यानि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस साल बहुत बड़ा इस्तेमाल होगा इसका असर रोजगार देने वाली आईटी इंडस्ट्री पर अभी से दिखने लगा है . सरकार को रोजगार के लिए बड़े फैसले और निवेश दोनों पर काम करना होगा.

सांप्रदायिक सौहार्द … देश में इस समय चुनावी माहौल के कारण कड़वाहट बढती जा रही है. एक तरफ जहां राममंदिर के बनने का माहौल है तो दूसरी तरफ अल्पसंखयक समुदाय में लगातार डर की भावना आ रही है ..विदेशों में भी आतंक के बढ़ने की कई घटनाये हुयी है. इसलिए ये साल आतंकी हमलों का डर बना रहेगा वहीं देश में आपसी मेल जोल और सौहार्द बनाये रखने की जरुरत है . वाटसअप यूनिवर्सिटी के ग्यान के बजाय सच में लोगों के बीच सही जानकारी और आपसी तालमेल एक बड़ी चुनौती होगी क्योकि किसी भी देश में अगर अँदरूनी तनाव का माहौल रहेगा तो तरक्की में रुकावट आ सकती है.

मंहगाई .. देश में बढती मंहगाई और खेती में बढता खर्च दोनों ही एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं .सरकारें चुनावी घोषणा तो कर दे रही है लेकिन आम आदमी को मंहगाई से राहत मिलने की कोई उम्मीद अभी नजर नहीं आती ..तेल की किल्लत और अंतर राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमत बढ़ने के चलते मंहगाई और बढ सकती है. ऐसे में सरकार को इसमें दखल देना होगा .सब्सिडी की इकानामी बहुत देर तक नहीं चल सकती. हमारे पड़ोसी देशों श्रीलंका और पाकिस्तान का हाल हम देख चुके हैं ऐसे में भारत को बहुत संभलकर चलने की जरुरत है . मंहगाई रोकने के लिए उत्पादन में बढत और विदेशों से आयात के लिए समझौते बहुत काम कर सकते हैं लेकिन दुनिया भर मे इस समय आबदी और मांग दोनों बढ रहे है तो उसके लिए उत्पादन बढ़ाना भी जरुरी है .

कुल मिलाकर हम देखें तो ये साल भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और घटनाओं से भरा होगा . उम्मीद हम इतनी ही कर सकते है कि इक बरामन ने कहा है कि साल अच्छा है .

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