रामगढ़: झारखंड के रामगढ़ जिले में परित्यक्त कोयला खदान में पिंजरे में मछली पालन का एक दृश्य। झारखंड में लगभग 1,741 ेऐसी परित्यक्त कोयला खदानें हैं, जिनमें से कई 1980 के दशक की हैं।
मत्स्य विभाग में राज्य उप निदेशक और झारखंड राज्य मछली सहकारी संघ के प्रबंध निदेशक शंभू प्रसाद यादव ने अप्रयुक्त क्षमता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “जिले में सीसीएल की कई परित्यक्त कोयला खदानें हैं, जिनमें साल भर पानी रहता है और पिंजरे में मछली पालन के लिए इनका दोहन किया जा सकता है।”
इन कोयला खदानों से वर्तमान औसत उपज सालाना लगभग 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। यादव का मानना है कि पिंजरे में मछली पालन से उत्पादन 10,000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक बढ़ सकता है।
इस सफलता ने झारखंड में ग्रामीणों के लिए रोजगार के एक खेत्र को रेखांकित किया है । मछली पालन अब रामगढ़, रांची, बोकारो और चतरा में फैले 16 परित्यक्त कोयला खदानों में चल रहा है।
१६ कोयला खदानों में से तीन-तीन गड्ढे रांची, रामगढ़, हजारीबाग में, दो बोकारो में और एक चतरा जिले में स्थित हैं।