श्री कृष्ण जन्माष्टमी: आध्यात्मिकता और उत्सव का पर्व- श्री कृष्ण जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का पावन उत्सव है, जो भारतीय संस्कृति और धर्म में एक विशेष स्थान रखता है। हर वर्ष, भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को यह पर्व बड़ी श्रद्धा और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण, जो भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं, का जन्म धरती पर अधर्म और अन्याय का नाश करने के लिए हुआ था। उनका जीवन और शिक्षाएँ आज भी समाज को सत्य, प्रेम और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
श्री कृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षाएँ –
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। उनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, लेकिन उन्होंने हर परिस्थिति में धैर्य, प्रेम और धर्म का पालन किया। उन्होंने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, जिसमें जीवन के गूढ़ रहस्यों को सरल और सार्थक रूप में समझाया गया। गीता का यह संदेश न केवल धर्म और कर्म के मार्ग को प्रशस्त करता है, बल्कि जीवन के हर पहलू में संतुलन बनाए रखने का मार्गदर्शन भी देता है।
जन्माष्टमी का महत्त्व और उत्सव-
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्त्व इस तथ्य में निहित है कि यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य अवतरण का स्मरण कराता है। इस दिन, देशभर के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन, और झांकियों का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु व्रत रखते हैं और रातभर जागरण करते हैं, ताकि वे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय को स्मरण कर सकें।
मथुरा, वृंदावन और द्वारका जैसे पवित्र स्थलों पर यह पर्व विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। यहां के मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को चित्रित करने वाली झांकियाँ सजाई जाती हैं, जो दर्शकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय होती हैं। इन झांकियों में बाल गोपाल के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म, माखन चोरी, गोवर्धन धारण और रासलीला जैसी दिव्य लीलाओं का प्रदर्शन किया जाता है।
श्रीकृष्ण और आधुनिक समाज –
भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ आज के आधुनिक समाज के लिए भी प्रासंगिक हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सत्य और धर्म का मार्ग कभी भी सरल नहीं होता, लेकिन इसे अपनाने वाला व्यक्ति सदैव विजय प्राप्त करता है। उन्होंने समाज को प्रेम, करुणा, और अहिंसा का संदेश दिया, जो आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना तब था।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन को समझने और उसे सही दिशा में जीने की प्रेरणा भी प्रदान करता है। यह पर्व हमें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और शिक्षाओं को स्मरण कर, उन्हें अपने जीवन में आत्मसात करने का अवसर प्रदान करता है।
भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि जीवन में किसी भी परिस्थिति में हमें धर्म, सत्य और प्रेम के मार्ग का त्याग नहीं करना चाहिए। जन्माष्टमी का यह पर्व हमें अपनी आस्था और विश्वास को और भी प्रगाढ़ करने का अवसर देता है, ताकि हम सभी श्रीकृष्ण की शिक्षाओं के अनुरूप जीवन जी सकें।
कब है जन्माष्टमी 2024: इस साल की तिथि को लेकर लोगों में भ्रम
इस साल जन्माष्टमी की तिथि को लेकर काफी भ्रम बना हुआ है। कुछ लोग 26 अगस्त को जन्माष्टमी मना रहे हैं, तो कुछ 27 अगस्त को। आइए, जानते हैं कि सही तिथि क्या है और पूजा के लिए शुभ मुहूर्त कौन सा है?
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 26 अगस्त को सुबह 3:39 बजे से शुरू होकर 27 अगस्त को सुबह 2:19 बजे तक रहेगी। इसी आधार पर, इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त, सोमवार को मनाया जाएगा। इस वर्ष भगवान श्रीकृष्ण का 5251वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
जन्माष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त 26 अगस्त को दोपहर 12 बजे से लेकर 27 अगस्त की देर रात 12:44 बजे तक रहेगा। इस दिन रोहिणी नक्षत्र भी दोपहर 3:55 बजे से प्रारंभ होकर 27 अगस्त को दोपहर 3:38 बजे समाप्त होगा।
इस प्रकार, 26 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाना उचित रहेगा, क्योंकि इस दिन अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का योग बन रहा है, जो भगवान श्रीकृष्ण की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।