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मोदी ने हाथ जोडे़ कहां किसान झूठ का राजनीति में न फंसे

किसानों के लगातार चल रहे आंदोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों से हाथ जोड़कर अपील की ही कि वो झूठ की राजनीति का शिकार न हो और भ्रम में ना फंसे . पीएम ने ये भी कहा कि वो किसानों के सारे मुददों पर बात करने तैयार है .मध्यप्रदेश के किसानों के साथ वीडियो संदेश से बातचीत में पीएम ने कहा कि किसान बिल सोच समझकर लाये गये हैं.

ये रहे पीएम के भाषण के कुछ अहम अंश .

 

भारत की कृषि, भारत का किसान, अब और पिछड़ेपन में नहीं रह सकता। दुनिया के बड़े-बड़े देशों के किसानों को जो आधुनिक सुविधा उपलब्ध है, वो सुविधा भारत के भी किसानों को मिले, इसमें अब और देर नहीं की जा सकती। समय हमारा इंतजार नहीं कर सकता। तेजी से बदलते हुए वैश्विक परिदृष्य में भारत का किसान, सुविधाओं के अभाव में, आधुनिक तौर तरीकों के अभाव में असहाय होता जाए, ये स्थिति स्वीकार नहीं की जा सकती। पहले ही बहुत देर हो चुकी है। जो काम 25-30 साल पहले हो जाने चाहिए थे, वो आज करने की नौबत आई हैं। पिछले 6 साल में हमारी सरकार ने किसानों की एक-एक जरूरत को ध्यान में रखते हुए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसी कड़ी में देश के किसानों की उन मांगों को भी पूरा किया गया है जिन पर बरसों से सिर्फ और सिर्फ मंथन चल रहा था। बीते कई दिनों से देश में किसानों के लिए जो नए कानून बने, आजकल उसकी चर्चा बहुत है। ये कृषि सुधार, ये कानून रातों-रात नहीं आए हैं। पिछले 20-22 साल से इस देश की हर सरकार ने राज्यों की सरकार ने इस पर व्यापक चर्चा की है। कम-अधिक सभी संगठनों ने इन पर विमर्श किया है।

देश के किसान, किसानों के संगठन, कृषि एक्सपर्ट, कृषि अर्थशास्त्री, कृषि वैज्ञानिक, हमारे यहां के प्रोग्रेसिव किसान भी लगातार कृषि क्षेत्र में सुधार की मांग करते आए हैं। सचमुच में तो देश के किसानों को उन लोगों से जवाब मांगना चाहिए जो पहले अपने घोषणा पत्र में इन सुधारों की सुधार करने की बात लिखते थे, वकालत करते थे और बड़ी बड़ी बाते करके किसानों के वोट बटोरते रहे, लेकिन अपने घोषणा पत्र में लिखे गए वादों को भी पूरा नहीं किया। सिर्फ इन मांगों को टालते रहे। क्योंकि किसानों की प्राथमिकता नहीं था। और देश का किसान, इंतजार ही करता रहा। अगर आज देश के सभी राजनीतिक दलों के पुराने घोषणापत्र देखे जाएं, तो उनके पुराने बयान सुने जाएं, पहले जो देश की कृषि व्यवस्था संभाल रहे थे ऐसे महानुभावों की चिट्ठियां देखीं जाएं, तो आज जो कृषि सुधार हुए हैं, वो उनसे अलग नहीं हैं। वो जिन चीजों का वादा करते थे, वही बातें इन कृषि सुधारों में की गई हैं। मुझे लगता है, उनको पीड़ा इस बात से नहीं है कि कृषि कानूनों में सुधार क्यों हुआ। उनको तकलीफ इस बात में है कि जो काम हम कहते थे लेकिन कर नही पाते थे वो मोदी ने कैसे किया, मोदी ने क्यों किया। मोदी को इसका क्रेडिट कैसे मिल जाए? मैं सभी राजनीतिक दलों को हाथ जोड़कर कहना चाहता हूं- आप सारा क्रेडिट अपने पास रख लीजिए, आपके सारे पुराने घोषणा पत्रों को ही में क्रेडिट देता हूं। मुझे क्रेडिट नहीं चाहिए।मुझे किसान के जीवन में आसानी चाहिए, समृद्धि चाहिए, किसानी में आधुनिकता चाहिए। आप कृपा करके देश के किसानों को बरगलाना छोड़ दीजिए, उन्हें भ्रमित करना छोड़ दीजिए।

साथियों,

ये कानून लागू हुए 6-7 महीने से ज्यादा समय हो चुका है। लेकिन अब अचानक भ्रम और झूठ का जाल बिछाकर, अपनी राजनीतिक जमीन जोतने के खेल खेले जा रहे हैं। किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर वार किए जा रहे हैं। आपने देखा होगा, सरकार बार-बार पूछ रही है, मीटिंग में भी पूछ रही है, पब्लिकली पूछ रही है हमारे कृषि मंत्री टीवी इन्टरव्यू में कह रहे हैं, मैं खुद बोल रहा हूं कि आपको कानून में किस क्लॉज में क्या दिक्कत है बताइए? जो भी दिक्कत है वो आप बताइए, तो इन राजनीतिक दलों के पास कोई ठोस जवाब नहीं होता, और यही इन दलों की सच्चाई है।

साथियों,

जिनकी खुद की राजनीतिक जमीन खिस गई है, वो किसानों की जमीन चली जाएगी, किसानों की जमीन चली जाएगी का डर दिखाकर, अपनी राजनीतिक जमीन खोज रहे हैं। आज जो किसानों के नाम पर आंदोलन चलाने निकले हैं, जब उनको सरकार चलाने का या सरकार का हिस्सा बनने का मौका मिला था, उस समय इन लोगों ने क्या किया, ये देश को याद रखना जरूरी है। मैं आज देशवासियों के सामने, देश के किसानों के सामने, इन लोगों का कच्चा-चिट्ठा भी देश के लोगों के सामने, मेरे किसान भाईयों – बहनों के सामने आज मैं खुला करना चाहता हूं, मैं बताना चाहता हूं।

साथियों,

किसानों की बातें करने वाले लोग आज झूठे आसूं बहाने वाले लोग कितने निर्दयी हैं इसका बहुत बड़ा सबूत है। स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट। स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट आई, लेकिन ये लोग स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को आठ साल तक दबाकर बैठे रहे। किसान आंदोलन करते थे, प्रदर्शन करते थे लेकिन इन लोगों के पेट का पानी नहीं हिला। इन लोगों ने ये सुनिश्चित किया कि इनकी सरकार को किसान पर ज्यादा खर्च न करना पड़े। इसलिए इस रिपोर्ट को दबा दो। इनके लिए किसान देश की शान नहीं, इन्होंने अपनी राजनीति बढ़ाने के लिए किसान का समय – समय पर इस्तेमाल किया है। जबकि किसानों के लिए संवेदनशील, किसानों के लिए समर्पित हमारी सरकार किसानों को अन्नदाता मानती है। हमने फाइलों के ढेर में फेंक दी गई स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट बाहर निकाला और उसकी सिफारिशें लागू कीं, किसानों को लागत का डेढ़ गुना MSP हमने दिया।

साथियों,

हमारे देश में किसानों के साथ धोखाधड़ी का एक बहुत ही बड़ा उदाहरण है कांग्रेस सरकारों के द्वारा की गई कर्जमाफी। जब दो साल पहले मध्य प्रदेश में चुनाव होने वाले थे तो कर्जमाफी का वायदा किया गया था। कहा गया था कि सरकार बनने के 10 दिन के भीतर सारे किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। कितने किसानों का कर्ज माफ हुआ, सरकार बनने के बाद क्या-क्या बहाने बताए गए, ये मध्य प्रदेश के किसान मुझसे ज्यादा भी अच्छी तरह जानते हैं। राजस्थान के लाखों किसान भी आज तक कर्जमाफी का इंतजार कर रहे हैं। किसानों को इतना बड़ा धोखा देने वालों को जब मैं किसान हित की बात करते देखता हूं तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि कैसे लोग हैं, क्या राजनीति इस हद तक जाती है। क्या कोई इस हद तक छल-कपट कैसे कर सकता है? और वो भी भोले-भाले किसानों के नाम पर। किसानों को और कितना धोखा देंगे ये लोग?

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