बिहार में इस बार चुनाव केवल नितीश कुमार के भविष्य का ही नहीं है बल्कि अब लालू यादव की पार्टी आर जे डी को पूरी तरह संभाल रहे उनके बेटे और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को नये तेज और तेवर के साथ राजनीती करनी होगी .. यहां हमारा मतलब उनके भाई तेजप्रताप से नहीं है जो पारिवारिक और मानसिक समस्याओं से घिरे है यहां तेज का मतलब तेजी से फैसले और गठबंधन से है. बिहार चुनाव के लिए अब बमुशिकल चार पांच महीने बचे है जिसमें से दो तो बारिश में ही निकल जायेंगे . ऐसे में तेजसवी को सबसे पहले तय करना होगा कि गठबंधन किसके साथ और कैसे करें .
तेजस्वी को बिहार में सबसे पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन और सीटों का बंटवारा तय करना चाहिये साथ ही छोटे दल जैसे पप्पू यादव ,समाजवादी पार्टी ,जीतनराम मांझी और मुकेश साहनी के दल के साथ आगे संबंधों पर भी फैसला लेना होगा .ये फैसले भी साफ और कडे हो ताकि कोई बोझ ना बने .अगर एनडीए में शामिल रहे उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी आ जाये तो सोने पर सुहागा हो सकता है. तेजस्वी को लालू के फार्मूले माय यानि माइनारिटी और यादव के गठजोड से आगे जाना होगा. उन्हे अपने साथ ब्राह्मण और राजपूत इन दोनों को जोडना होगा .भले ही भूमिहार और लाला वोट ना मिले लेकिन राजपूत और ब्राहमण अगर साथ आ गये तो उनका काम बन सकता है.
तेजस्वी प्रवासी मजदूरो के मुददे और कोविड पर नीतिश को घेरने में कामयाब रहे है . नीतिश को लेकर बीजेपी और सहयोगी एलजेपी में भी बहुत कुछ ठीक नहीं है . खुद नीतिश कुमार भी अपनी ही पार्टी में चल रही उठापटक से परेशान है और उनके कई सहयोगी छोड चुके हैं. ऐसे में तेजस्वी को सबसे पहले अपने कुनबे और कोटेरी से बाहर आकर अपनी अलग पहचान बनानी होगी . क्योकिं लालू के करप्शन ,कुनबेदारी से बाहर आकर अपनी इमेज सही करनी होगी साथ ही टिकट बंटवारे में जातिगत समीकरणों पर ध्यान देना है .
-संदीप सोनवलकर