कांग्रेस का मूल जन्म सबसे पहले मुंबई में हुआ था . विचार था कि ऐसी पार्टी बनायी जाये जो सभी समाजों का प्रतिनिधित्व कर अंग्रेजों से बात करें. बाद में इसी कांग्रेस ने अंग्रेजों को देश से भगाया लेकिन अब हालात ये है कि कांग्रेस मुक्त भारत की तरफ खुद कांग्रेस ही तेजी से आगे बढ़ रही है .
अब सोनिया गांधी कांग्रेस के नाराज नेताओं से दो महीने बाद ही सही बात कर रही है लेकिन कांग्रेस के चापलूस नेताओं ने फिर राहुल को ही अध्यक्ष बनाने का नारा उछाल दिया है . सवाल यही कि अगर राहुल को ही अध्यक्ष बनना है तो फिर इतने दिन का पालिसी पैरालिसिस का क्या मतलब . बेहतर होता राहुल अध्यक्ष बनकर जैसा चलाना चाहते पार्टी का चलाते .
लेकिन यहां हम बात राहुल गांधी की नहीं महाराष्ट्र में कांग्रेस की हालत की कर रहे है . बीते एक साल से यहां भी सब कुछ एडहाक चल रहा है . पार्टी अध्यक्ष बाला साहेब थोरात एक साथ मंत्री और अध्यक्ष दोनों पद संभाले हुये हैं. तो मुंबई में 80 साल के एकनाथ गायकवाड को भी कार्यकारी के तौर पर ही अध्यक्ष बनाकर खींचा जा रहा है . महाराष्ट्र में कांग्रेस अपने सबसे निचले स्तर पर है .सत्तता से बाहर होने के बावजूद बीजेपी हमलावर है तो शिवसेना और एनसीपी मिलकर एक दूसरे को मजूबत कर रहे हैं.
कांग्रेस के नेता आपस में ही एक दूसरे को निपटाने में लगे हैं .कददावर नेता अशोक चव्हाण बस अपनी सीट नांदेड़ तक सिमटे हुये हैं तो बाकी नेता हाशिये पर हैं. चुनाव नहीं लडने के बाद भी राज्यसभा में चले गये राजीव सातव इन दिनों राहुल की नजदीकी का फायदा उठाकर लगातार महाराष्ट्र कांग्रेस में दखलंदाजी कर रहे हैं. वो प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते हैं लेकिन अगर बने तो उनका हाल भी हरियाणा के अशोक तंवर और मध्यप्रदेश के अरुण यादव की तरह ही होगा .
मुंबई में तो हाल और भी बुरा है संजय निरुपम और मिलिंद देवडा के बाद पार्टी को एक बेहतर अधयक्ष तक नहीं मिल पा रहा है. जबकि करीब डेढ़ साल बाद मुंबई महानगरपालिका का चुनाव होना है . अगर कांग्रेस अब नहीं चेती तो मुंबई में उसका सफाया हो सकता है. जहां उसका जन्म हुआ था .