कहते है हर सफल आदमी के पीछे किसी महिला का हाथ होता है .उदधव ठाकरे के महाराष्ट्र के सीएम बनने तक की कहानी मे उनके पीछे हर जगह पत्नी रश्मी का ही हाथ उनके साथ दिखाई देता है. जब वो राजभवन में सत्ता के लिए दावेदारी करने भी गये तो रश्मि ठाकरे साथ में थी .
ठाकरे परिवार में हमेशा से ही महिलाओं का दबदबा रहा है . ये ठाकरे परिवार की परंपरा भी है कि हर बडे फैसले में परिवार की महिला की राय अहम होती है. शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे भले ही कितने बडे थे लेकिन हर बडे फैसले में मां साहेब मीना ताई ठाकरे का ही अंतिम फैसला होता था . उदधव भी इसी तरह अपनी पत्नी के कायल है.
दो बेटों आदित्य और तेजस की मां रश्मि का मायके का सरनेम पाटणकर है और वो एक ब्राहमण परिवार से हैं. 13 दिसंबर 1998 को उदधव के साथ विवाह सूत्र में बंधने वाली रश्मि ने शुरुआत में खुद को पूरी तरह से पारिवारिक ही रखा . बालासाहेब ठाकरे की तबियत बिगडने के साथ ही वो उनकी देखभाल की पूरी जिम्मेदारी संभालने लगी और धीऱे धीरे राजनीतिक तौर पर शिवसेना की महिला विंग को भी देखने लगी . जब परिवार में राज और उदधव ठाकरे का झगडा सामने आया तो ससुर बालासाहेब को समझाने वाली भी वहीं थी . वो हमेशा उदधव के साथ साये की तरह रहती है.
बालासाहेब के बाद जब उदधव ने पार्टी की कमान संभाली तो रश्मि खुलकर सामने आयी . कई बार वो महिला विंग के कार्यक्रम में भाषण भी देने लगी . हालांकि जब भी शिवसेना का कोई बडा कार्यक्रम होता तो स्टेज के सामने कार्यकर्ताओं के साथ बैठती. कार्यकर्ता उनको वहिनी साहेब कहते है.
धीरे धीरे मातोश्री के अंदर रश्मि का पूरा दबदबा हो गया . वो उदधव के कई राजनैतिक फैसलों को बदलने में कामयाब रही है . उदधव के पीए मिलिंद नार्वेकर भी पूरी तरह से वहिनी साहेब के हर काम को करने के लिए तैयार रहते है. सूत्र बताते है कि चुनाव के पहले रश्मि ने ही बेटे आदित्य को चुनाव में उतारने की सलाह दी जो मानी . खुद रशिम ने चुनाव प्रचार की कमान अपने हाथ मे रखी थी .
चुनाव के बाद जब नंबर गेम बदल गया तो उदधव को सीएम पद का दावा करने की सलाह भी रश्मि की थी .पर्दे के पीछे वो सुप्रिया सुले और बाकी नेताओं से बात भी करती रही .आखिर वो मातोश्री की नई मां साहेब बनने में कामयाब रही .