अपनी मिट्टी और पत्नी के हमेशा आभारी रहे पंडित जसराज
संगीत मार्तण्ड और पदमविभूषित संगीतगय पंडित जसराज हमेशा अपनी मिटटी यानि भारत और पत्नी मधुरा के प्रति आभारी रहे .इसलिए पंडित जी का अंतिम संस्कार भी मुंबई में ही होगा .उनको अगले दो दिन में मुंबई लाया जायेगा.
पंडित जसराज का सोमवार को 90 वर्ष की उम्र में अमेरिका में निधन हो गया था. वह तीनों पद्म पुरस्कारों- पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित शास्त्रीय गायक थे. आठ दशकों तक भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत में छाए रहे पंडित जसराज मेवाती घराना से ताल्लुक रखते थे. उन्होंने महज 14 साल की उम्र में शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण लिया था. बाद में उन्होंने अपने बड़े भाई पंडित प्रताप नारायण से तबला वादन भी सीखा. ठुमरी और खयाल गायन को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा.
पंडित जसराज के निधन की खबर मिलने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, “पंडित जसराज जी के दुर्भाग्यपूर्ण निधन से भारतीय संस्कृति के आकाश में गहरी शून्यता पैदा हो गई है. उन्होंने न केवल उत्कृष्ट प्रस्तुतियां दीं, बल्कि कई अन्य गायकों के लिए अनूठे परामर्शदाता के रूप में अपनी पहचान भी बनाई. उनके परिवार और दुनियाभर में उनके प्रशंसकों के प्रति संवेदना. ओम शांति.”
पंडित जी का 90 वां जन्मदिन इसी साल मुंबई के विलेपार्ले में मनाया गया था . जहां खासतौर पर उनके परिवार के सभी लोग और शिष्य मौजूद थे . पंडित जी ने इस मौके पर newsamantra.in से बातचीत में कहा था कि वो जो कुछ है उसके लिए हमेशा भारत और अपनी पत्नी मधुरा के आभारी रहेंगे . पंडित जी का विवाह मशहूर फिल्मकार वी शांताराम की बेटी से हुआ था .वो कहते थ कि मधुरा जी ने ही उनको तराशा और संगीत में मदद की . पंडित जी ने शुरुआत में संगीत अपने पिता मोतीराम जी से सीखा लेकिन जल्दी की पिता का साया उठ गया तो उनके बडे भाई मणिराम ने उनको संगीत में आगे बढाया .
पंडित जी के शिष्य और वरिष्ठ पत्रकार संजय शर्मा ने बताया कि पंडित जी हाल ही में न्यूजर्सी गये थे लेकिन वहां से भी रोज भारत को याद करते थे . जब संजय शर्मा अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास की रिपोर्टिंग के लिये गये थे तो पंडित जी ने वीडियो काल पर हनुमान गढी के दर्शन किये थे और संजय के साथ हनुमान लाल गीत भी गाया था . इतना ही नहीं कृष्ण जन्माष्टमी पर भी वीडियो काल से ही मथुरा के नंदलाल के दर्शन किये थे . पंडित जी कृष्ण के अनन्य भक्त थे और कृष्ण छठी पर ही उनमें ही विलीन हो गये .