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विपक्षी एकता की राह में रोड़ा बन सकता है आप-कांग्रेस के बीच की कड़वाहट

विपक्षी एकता की राह में रोड़ा बन सकता है आप-कांग्रेस के बीच की कड़वाहट

By Rakesh Kumar

विपक्षी एकता की राह में रोड़ा बन सकता है आप-कांग्रेस के बीच की कड़वाहट

नई दिल्ली। विपक्षी एकता की राह में आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के बीच की कड़वाहट सबसे बड़ी बाधा बन सकती है। दरअसल, कांग्रेस के वजूद (पंजाब, दिल्ली जैसे राज्य) पर अपने अस्तित्व की इमारत की नींव रखने वाली आप के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली अध्यादेश पर अब नया दांव चला है। केजरीवाल ने पटना में 23 जून को विपक्ष के महाजुटान में यह साफ कर दिया कि कांग्रेस को दिल्ली अध्यादेश पर आप का समर्थन करना होगा। 15 प्रमुख विपक्षी दलों के 22 से अधिक प्रमुख नेताओं की मौजूदगी में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सभी विपक्षी दलों से दिल्ली अध्यादेश पर समर्थन मांगा। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाये और कहा कि राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे को अपना स्टैंड क्लियर करना चाहिए।

दरअसल, यह अध्यादेश दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिया था, लेकिन केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए ये अधिकार फिर से उपराज्यपाल को दे दिये हैं। तबसे इसी को लेकर दिल्ली की सरकार और केंद्र सरकार में तनातनी है। आप ने इस अध्यादेश को ही असंवैधानिक बता दिया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि केंद्र का यह अध्यादेश असंवैधानिक और लोकतंत्र के खिलाफ है।

इसको लेकर आप ने कांग्रेस के सामने नई शर्त भी रख दी है और कहा है कि विपक्षी एकता तभी संभव है जब राहुल गांधी अध्यादेश का समर्थन करने के लिए हामी भरें। पटना में विपक्ष के महाजुटन के बाद आप की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कहा कि अगर कांग्रेस संसद में दिल्ली अध्यादेश का विरोध करती है तो आम आदमी पाटी कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष का हिस्सा नहीं बनेगी। आप ने कांग्रेस के सामने एक नई शर्त यह भी रखी है कि कांग्रेस राहुल गांधी को तीसरी बार नेता के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं करेगी। यह संविधान को बचाने से भी अधिक महत्वपूर्ण है। दरअसल, शिमला में विपक्षी एका के लिए अगली बैठक अगले माह के दूसरे सप्ताह में होनी है और इसके लिए पूरी तैयारी भी की जा रही है, लेकिन विपक्षी एका की राह में दिल्ली अध्यादेश बड़ा रोड़ा बन सकता है। 23 जून की पटना में हुई बैठक के बाद भी विपक्ष के संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और आप के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा व संजय सिंह नजर नहीं आये और वापस दिल्ली चले गए और दिल्ली से बयान जारी कर कहा कि अगर कांग्रेस दिल्ली अध्यादेश पर आप का समर्थन नहीं करती है तो कांग्रेस के साथ कोई भी गठबंधन मुश्किल होगा। वहीं राहुल गांधी ने कहा कि अध्यादेश पर चर्चा की एक प्रक्रिया होती है। अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सुझाव दिया है कि राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल को चाय या दोपहर के भोजन पर मतभेदों को दूर करना चाहिए।

वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आप के आरोपों पर कहा कि आप प्रवक्ता कांग्रेस पर ही आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रियंका कक्कड़ ऐसा कैसे कह सकतीं हैं कि राहुल गांधी का दिल्ली अध्यादेश पर भाजपा के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर है। वहीं, कांग्रेस नेता अजय माकन ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए केजरीवाल के समर्थन का हवाला दिया और पूछा कि बी टीम कौन थी। इस प्रकार आप के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का रवैया विपक्षी एका की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बनता दिख रहा है। वहीं, पश्चिम बंगाल से कांग्रेस के सांसद अधीर रंजन के बयान के भी मायने निकाले जाने लगे हैं। अधीर रंजन ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस टीएमसी पर कई आरोप लगाते हुए उसे चोरों की पार्टी तक कह डाला। ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि बंगाल में आप हमें खत्म करना चाहतीं हैं और बाहर हम आपको मदद करने के लिए खड़े रहें, यह संभव नहीं है। इस प्रकार साफ है कि भले ही विपक्षी दल जुलाई के दूसरे सप्ताह में शिमला में मिलें, लेकिन जो कड़वाहट कुछ प्रमुख पार्टियों के बीच सामने आ रही है, उससे साफ जाहिर है कि विपक्षी एका की राह आसान नहीं है।

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