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आसमानी आफत और सुल्तानी कहर..महाराष्ट्र में दोनों से परेशान लोग

आसमानी आफत और सुल्तानी कहर ..महाराष्ट्र में दोनों से परेशान लोग

–  संदीप सोनवलकर वरिष्ठ पत्रकार

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा , पश्चिम महाराष्ट्र और विदर्भ के एक बड़े हिस्से में आसमान से बारिश के तौर पर बरसी आफत ने लोगों के आंख का पानी सुखा दिया है तो दूसरी तरफ जमीन पर राज कर रहे सरकारी कारकून और नेताओं के कहर ने इस जख्म को और भी गहरा कर दिया है. लोगों का कहना है कि इस दोतरफा मार के बाद अब जिंदगी का हर एक दिन कई बरसों तक मर मर के गुजरेगा और लोग अब जिंदगी से ज्यादा मौत की दुआ मांग रहे हैं.

बीते दस साल में पांच हजार से ज्यादा किसानों की आत्महत्या देख चुके इन इलाकों में अब इस आसमानी आफत औऱ सुल्तानी कहर के बाद और भी खबरें आने लगी है. बीते दस दिनों कुछ ऐसे गांव है जो लगातार पानी में डूबे हुये हैं और खाने के नाम पर बस कच्चे अनाज के दाने ही बचे हैं. हम इसे आसमानी आफत और सुल्तानी कहर इसलिए कह रहे हैं कि आसमान से बारिश इतनी बरसी की जो बीते सौ साल में भी नही हुयी .. जिस मराठवाडा और विदर्भ में तीन सौ मिलीलीटर पानी भी पूरी बरसात में नहीं बरसता था वहां इस बार तीन दिन में एक से डेढ हजार मिलीलीटर पानी बरस गया . क्या खेत क्या खलिहान क्या चूल्हा और क्या गौठान सब जगह पानी भर गया .अब तक करीब चालीस लोगों की जान चुकी है . लेकिन पशुओं के मारे जाने की संख्या तो हजारों में हैं .इसके अलावा करीब दस लाख हेक्टर में फसल पूरी तरह बरबाद हो गयी है.. बात अकेले किसानों की नहीं है दुकानों में पानी और कीचड़ भर गया तो घरों को बहा ले गया ..स्कूल , दफतर यहां तक पुलिस थानों में भी कीचड़ की मोटी परत जम गयी है. इतना ही नहीं खेतों से पांच से दस इंच तक मिटटी की परत बह गयी है इससे लोगों को अगले तीन साल तक फसल लेना मुश्किल होगा.. नुकसान का जायजा सरकारी कागजों में कुछ भी दर्ज हो लेकिन असल में ये पूरी जिंदगी उजाड़ कर गया है..

अब बात सुल्तानी कहर की …ये इसलिए कि मुगल शासन काल में जब लोगों पर सूखे या बाढ़ का असर होता था तब भी सरकार की तरफ से वसूली की जाती थी और लोगों को राहत नहीं दी जाती थी तब से ये सुल्तानी कहर कहलाने लगा ..अब नये जमाने के सुल्तान सरकारी बाबू और नेता भी यही कह रहे हैं. सीएम देवेंद्र फणनवीस से एक किसान ने पूछा कि मुआवजे की बात तो कर रहे हो दोगे कितना तो सीएम ने उसी को सुना दिया यहां राजनीती मत करो .बाद में पुलिस उसे खदेड़ कर बाहर ले गयी. अजित दादा पवार से पूछा कि कैसे राहत दोगे तो वो पूछने वाले को ही बोलने लगे कि इसको ही नेता बना दो हम तो यहां गोटियां खेलने आये हैं लगता है.. एक और मंत्री गिरीश महाजन से बात की तो उन्होने बोल दिया कि मैं जेब में पैसे लेकर नहीं घूमता पहले सर्वे होगा फिर मदद मिलेगी.. दूसरे डिप्टी सीएम ने मदद भेजी लेकिन सब पर अपनी तस्वीर छाप दी तो किसानों ने उनको भगा दिया … ये सुल्तानी अदा नहीं तो क्या है.

इस बाढ़ के आने का कारण वैसे तो अति बारिश है लेकिन इसने सारे सरकारी इंतजाम की पोल खोल दी है.. मराठवाड़ा मे जब एक डैम का पानी बढ़ने लगा तो दो दिन तक डैम के दरवाजे ही नहीं खुल पाये इससे पानी पांच किलोमीटर तक फैल गया .. जब अफसरों से पूछा कि ऐसा कैसे हुआ तो कह रहे है कि जंग लग गयी थी कभी गेट खोलने की बारी ही नहीं आयी .अब सिंचाई घोटाले के नाम पर करोड़ों रुपये डकार लेने वाले नेताओ और अफसरों से कौन पूछे कि कम से कम डैम के गेट को तो ठीक कर लेते. उधर किसानों को मुआवजा देने के नाम पर भी रोज राजनीती हो रही है. सरकार कह रही है कि अभी 8 हजार रुपये प्रति किसान मुआवजा देंगे लेकिन बाद में इसे और भी देंगे. कितना ये किसी को पता नहीं . सरकार ने तो फसल बीमा से नुकसान का पैरामीटर ही बदल दिया पहले ये तीन हेक्टेयर तक 13 हजार रुपये तक था जिससे किसान को कम से इतना मिल जाता कि अगली फसल खरीद लेता लेकिन अब इसे घटाकर दो हेक्टेयर और प्रति हेक्टेयर आठ हजार कर दिया गया है. फसल बीमा में भी नुकसान का आंकलन फसल की कटाई के बाद कम हुए उत्पादन पर होता है लेकिन जब फसल ही नहीं होने वाली तो नुकसान का आंकलन कैसे होगा..

किसान नेता और विधायक रविकांत तुपकर की तरफ से एक बात और कही जा रही है कि सरकार ने जिस दिन किसानों के लिए करीब तीन हजार करोड़ रुपये की पहली मदद राशि जारी करने का प्रस्ताव केबिनेट में दिया उसी दिन एक बंदरगाह बनाने के लिए भी उतनी ही राशि जारी कर दी जबकि वो बंदरगाह दस साल में बनना है .सवाल ये है कि बंदरगाह का काम तो कुछ साल टल सकता था ..दूसरी तरफ सरकार का खजाना खाली है.. पहले से ही सरकार पर नौ लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. अकेले पीडब्लयू डी विभाग जो सरकारी इमारतें और ग्रामीण सड़के बनाता है उसके ठेकेदारों का नब्बे हजार करोड़ रुपये बकाया है जिसे सरकार दे नहीं पा रही है इसलिए सब काम बंद है और अब इन किसानों के लिए सरकार पैसा कहां से लाये ..मांग हो रही है किसानों का 50 हजार रुपये तक का कर्ज माफ हो लेकिन सरकार के पास पैसा नहीं सो वो केंद्र के पास कटोरा फैला रही है.. पीएम अक्टूबर में नवी मुंबई के एयरपोर्ट का उदघाटन करने आ रहे हैं तब वो घोषणा कर सकते हैं तब तक किसानों को चुप रहने कहा गया है.

मराठवाड़ा और विदर्भ का इलाका सूखे के लिए जाना जाता रहा है वहां के लोंगों कि जिंदगी तो एक एक बूंद पानी के लिए तरसती है और अब इतना पानी है कि घरों और खलिहानों से निकल नही रहा. ये बाढ़ जितनी आसमानी आफत है उतनी ही जमीनी भी .कभी इस इलाकों में पानी के बांधों से गाद नहीं निकाली गयी. जब कहा गया तो सिंचाई विभाग ने कह दिया उनके पास डैम से गाद निकालने की कोई तकनीक नहीं..डैम की कैपेसिटी एकदम कह हो गयी इसलिए ज्यादा बारिश आने पर डैम ओवरफ्लो हो गये .. इतना ही नही पानी के बंटवारे के इंतजाम भी नहीं थे ..पूरा मराठवाड़ा और विदर्भ जमीन से बोरवेल से पानी निकालने पर निर्भर है.. विदर्भ के गोसीखुर्द डैम का काम तो 40 साल से चल रहा है .इसी पर पीएम मोदी ने अब अपने सहयोगी बन गये एनसीपी के अजित पवार पर 70 हजार करोड़ के करप्शन का आरोप लगाया था..

अब मंहगाई बढ़ेगी..

इस इलाके में सोयाबीन और कपास के साथ साथ गन्ना और प्याज की फसल भी बड़े पैमाने पर होत है. संतरा अनार और बाकी फल भी लगाये जाते हैं लेकिन इस बार फसल पर ऐसा पानी फिरा है कि अगली फसल अब अप्रैल मे ही आयेगी यानी एक फसल का नुकसान होगा जिसके चलते अगले महीने से ही दामों में आग लग सकती है. मसलन प्याज की बात करें अभी प्याज के दाम 25 रुपये कितो तक ही है और थोक में दाम 1500 रुपये क्विंटल तक ही है .इसलिए कि लोग नयी फसल आने से पहले पुराना स्टाक निकालते हैं और नयी फसल अक्टूबर के बीच तक आना शुरु हो जाती है लेकिन बारिश के कारण बड़ी मात्रा में पुराना स्टाक भीगकर खराब हो गया और अब नया स्टाक आने वाला नहीं है जाहिर है सप्लाई कम होगी तो मंहगाई बढ़ेगी..

अब इन किसानो और पशु गंवाकर बरबाद हो रहे किसानों को कौन समझायेगा कि जीएसटी बचत उत्सव से कैसे पैसे बचाये जायें और जब खाने को ही नहीं तो जीएसटी कहां बचा पायेंगे.. कुल मिलाकर नुकसान दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का हुआ है..ये कैसे भर पायेगा इस बात की कोई तस्वीर साफ नहीं है .. सरकार पहले ही लाड़ली बहन और बाकी चुनावी योजनाओं के कारण खाली हो गयी है और अब ये आफत सामने हैं.. बस मुश्किल ये है कि अभी पंचायत औऱ नगरपालिकाओं के चुनाव होने हैं ..नेताओं को चिंता है मदद नहीं तो किसान मारेंगे ..

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