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..तो क्या सबसे अधिक आइएएस-आइपीएस देने वाले राज्य में गणित-विज्ञान पढ़ाने वाले नहीं हैं?

बिहार में गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की कमी

-शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर की खरी-खरी, कहा-इस कारण लिया गया डोमिसाइल समाप्त करने का निर्णय

पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई बिहार कैबिनेट की बैठक में वैसे तो 25 एजेंडों पर मुहर लगी, लेकिन जो सबसे अहम फैसला लिया गया वह यह कि अब किसी भी राज्य के नागरिक बिहार में शिक्षक बन सकते हैं।
यानी डोमिसाइल (स्थाई निवासी) का मसला अब समाप्त कर दिया गया है।

इस फैसले से बिहार के शिक्षक अभ्यर्थियों में नाराजगी बढ़ गई है। हालांकि शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने तर्क किया है कि बिहार में गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की कमी है। इसकी वजह से बिहार की शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो रही है। इसी कारण यह निर्णय लिया गया। आगे कहा कि अब पूरे देश के अभ्यर्थी इसमें हिस्सा ले सकेंगे। इसका फायदा यह होगा कि देश के अन्य राज्यों के जो मेधावी विद्यार्थी हैं, वे शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया में भाग ले सकेंगे। यानी शिक्षा मंत्री ने यह माना कि प्रदेश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने वाले शिक्षकों की कमी है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में गणित, विज्ञान, अंग्रेजी, केमिस्ट्री, फिजिक्स के अभ्यर्थी नहीं मिल पाते हैं। इस कारण सीट खाली रह जाती है। इस प्रकार के निर्णय की वजह यही है। जब शिक्षा मंत्री से कहा गया कि इस निर्णय का बिहार के शिक्षक अभ्यर्थी और शिक्षक संघ विरोध कर रहे हैं तो उन्होंने दो टूक कहा कि हर निर्णय का विरोध होता है, हम क्या कर सकते हैं। उधर, जैसे ही बैठक के बाद मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ ने कैबिनेट के इस फैसले की जानकारी दी, विरोध शुरू हो गया। शिक्षक और अभ्यर्थी संघ ने कहा कि बिहार के अभ्यर्थियों की हकमारी की गई है। इसके विरोध में छात्र संघ भी सड़क पर उतरेगा।

भले ही नीतीश कैबिनेट के इस निर्णय का विरोध शुरू हो गया हो, लेकिन जिस पाक-साफ नीयत से यह फैसला लिया गया है, वह स्वागतयोग्य है। बिहार के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की योग्यता किसी से छुपी नहीं है। गांवों के प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में कुछ ऐसे शिक्षक-शिक्षिकाएं कार्यरत हैं, जिन्हें ए फॉर एप्पल और बी फॉर बॉल की स्पेलिंग नहीं आती है। यही वजह है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे सिर्फ खिचड़ी खाकर (मध्याह्न भोजन) खाकर घर चले जाते हैं और ऐसे शिक्षकों को उनका भविष्य संवारने से कोई मतलब नहीं रहता। अब सिक्के के दूसरे पहलू को देखें। यही बिहार सबसे अधिक आइएएस-आइपीएस देश को देता है। संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) की इस प्रतिष्ठित परीक्षा में देश के क्रीम यानी सबसे अधिक पढ़ा-लिखा तबका शामिल होता है। कई आइआइटियन और एमबीबीएस भी इस परीक्षा में शामिल होते हैं। फिर भी, आखिर क्या वजह है कि सबसे अधिक अभ्यर्थी बिहार के ही बाजी मारते हैं। शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर जो कह रहे हैं, उसमें दम है। उसकी सराहना होनी चाहिए कि कम से कम उन्होंने इतनी हिम्मत तो दिखाई कि सार्वजनिक रूप से बिहार की शिक्षा व्यवस्था के स्याह पक्ष को सामने रखा। उन्होंने साफ कहा कि साइंस, मैथ और अंग्रेजी की समस्या थी। इस कारण ऐसा किया गया। तो क्या यह मान लिया जाए कि जो प्रदेश हरसाल सबसे अधिक आइएएस-आइपीएस देता रहा है, वहां साइंस, मैथ और अंग्रेजी पढ़ाने वाले अभ्यर्थी नहीं मिल रहे हैं!

जब इस संबंध में वरीय पत्रकार अनिल कुमार से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था के कारण अधिकांश मेधावी विद्यार्थी पलायन कर जा रहे हैं। उनके पास इससे बेटर ऑप्शन है। ऐसे में शिक्षक बनने की लालसा पाले लोग वही हैं जो सिर्फ डिग्रीधारी हैं। जब बड़े पैमाने पर नियोजित शिक्षकों की बहाली हुई और नियोजन इकाइयां पंचायत के मुखिया या जिला परिषद के अध्यक्षों ने कैसे शिक्षकों को और किस प्रकार बहाल किया, यह किसी से छुपा है क्या? अब ऐसे शिक्षक ही नियोजित से नियमित बनने का सपना देख रहे हैं। उनमें कुछ तो ऐसे हैं जिन्हें कुछ आता-जाता नहीं है। सिर्फ मानदेय से मतलब है। अगर शिक्षा व्यवस्था की नींव प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए इमानदार कोशिश की जा रही है तो इसका विरोध नहीं होना चाहिए। अगर आपमें भी योग्यता है तो ओपन कंप्टीशन में शामिल होकर अपनी जगह बनाइये। सरकार आपको परीक्षा में शामिल होने से थोड़े ना रोक रही है। हां, मंगलवार को लिया गया निर्णय ऐतिहासिक है। बिहार राज्य विद्यालय अध्यापक नियुक्ति, स्थानान्तरण, अनुशासनिक कार्रवाई और सेवाशर्त संशोधन नियमावली-2023 को स्वीकृति दी गई है तो सरकार का यह इमानदार प्रयास है। इसका विरोध नहीं होना चाहिए। सरकार ने अपने वोट बैंक की परवाह ना करते हुए यह निर्णय लिया है। इसलिए राज्य के हर सजग नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि दलगत भावना से उपर उठकर इसका समर्थन करें। राज्य में विद्यालय अध्यापक के पद पर नियुक्ति के लिए अब बिहार के स्थायी निवासी होने की क्वालिफिकेशन जरूरी नहीं है।

आपको बता दें कि राज्य में 1.70 लाख से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति होनी है। कुछ समय पूर्व ही सरकार ने पंचायत और नगर निकाय से शिक्षकों के नियोजन की प्रक्रिया को समाप्त कर बिहार लोकसेवा आयोग बीपीएससी के माध्यम से शिक्षकों की बहाली का निर्णय लिया था। आयोग के जरिये बहाल शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा मिलेगा। सबसे बड़ी बात यह कि इससे प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों को शिक्षक बनने का मौका मिलेगा, जिससे बिहार की शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ होगी। पहले कंप्यूटर, विज्ञान, अंग्रेजी और गणित विषय में अभ्यर्थियों की संख्या कम रहती थी। लेकिन, अब पूरे देश से जब शिक्षक बनने के लिए अभ्यर्थी आवेदन करेंगे तो कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच श्रेष्ठ का ही चयन हो पाएगा। यह निर्णय राज्य के शिक्षा व्यवस्था के क्षेत्र में ऐतिहासिक कदम तो कहा ही जाना चाहिए।

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