संघ RSS की चुप्पी बहुत कुछ कहती है..
संदीप सोनवलकर
बीजेपी का मातृसंगठन RSS और उसका नागपुर मुखयालय इन दिनों चुप है यहां तक
कि हर बडी बात पर बोलने वाले संघ के प्रमुख मोहन भागवत .उनके सहयोगी भैयया जी जोशी और मुस्लिमों को संघ से जोडने की वकालत करने वाले इंद्रेश कुमार भी कोई भी बयान देने से बच रहे हैं . संघ के जानकारो का मानना है कि संघ की ये चुप्पी भी बहुत कहती है. सबसे बडी बात ये कि संघ ने कम से कम इतना संकेत तो दे दिया है कि ये चुनाव केवल और केवल मोदी MODIका है उससे संघ का सीधा कोई लेना देना नही है . संघ प्रमुख मोहन भागवत MOHAN BHAGVATका 21 अप्रैल को आखिरी बडा बयान आया था कि सरकारें हर पांच साल में आती जाती रहती है संघ का काम यथावत चलता रहता है.जाहिर है संघ की ये चुप्पी इस बार यूं ही नहीं हैं.
संघ की चुप्पी की वजह
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को करीब से जानने वाले कहते है कि संघ प्रमुख ने संघ की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में साफ कर दिया था कि इस बार संघ सीधे किसी राजनीतिक बहस में हिस्सा नही लेगा . इसलिए संघ ने किसी भी ऐसे मुददे पर जो सरकार के पक्ष में या सरकार के विरोध में कोई बयान नही दिया .आपको याद होगा कि बिहार के चुनाव से ठीक पहले संघ प्रमुख ने आरक्षण की समीक्षा का बयान दे दिया था . बीजेपी और मोदी सरकार को इस पर सफाई देते समय पसीना आ गया था . जाहिर है संघ की तरफ से जब कोई अधिकारिक बयान आता है तो इसका मतलब होता है. खुद पीएम नरेंद्र मोदी संघ के प्रचारक रह चुके है और जानते है कि संघ के शब्द का मतलब क्या होता है.
जानकार कहते है कि दरअसल संघ इस समय तटस्थ भाव से चुनाव को देख रहा है उसकी बडी वजह ये है कि संघ नहीं चाहता कि केन्द्र में हिदुत्ववादी सरकार हटे और कोई दूसरा आ जाये इसलिए मोदी सरकार के लिए कोई परेशानी पैदा नही की जा रही है लेकिन संघ का घोष वाक्य भी है देश पहले व्यकित बाद में . मगर मोदी सरकार को लेकर संघ में ऊहापोह है .चुनाव में मोदी ही भाजपा है और इकलौता चेहरा भी .यानि या तो मोदी का साथ दे या विरोध.संघ इस तरह की व्यक्तिवादी राजनीती को नही मानता .इसलिए संघ ने व्यक्ति केंद्रित चुनाव से खुद को अलग कर दिया है . यानि चुनाव जीते तो मोदी और हारे तो मोदी .
संघ ये मुश्किल अटल बिहारी वाजपेयी के समय में देख चुका है . संघ ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनाने में तो मदद की थी लेकिन 2004 आते आते जब ये लगने लगा कि वाजपेयी का कद संघ और भाजपा दोनों से बडा हो गया है तो संघ उनसे अलग हो गया जिसका खामयाजा वाजपेयी की सरकार जाने का हुआ .उसके बाद दस साल तक सत्ता नही रही . इससे संघ को भी नुकसान हुआ इसलिए संघ इस बार खुलकर विरोध नही कर रहा है
इस चुनाव में कई ऐसे मुददे उठे जिस पर संघ को बोलना चाहिये था और संघ उन पर बोलता रहा है .इस बार संघ ने चुनाव के पहले तो इन मुददो पर बात की लेकिन चुनाव मे नहीं .
राम मंदिर .RAM MANDIR
अयोध्या में राम मंदिर बने ये संघ की प्राथमिकता है चुनाव के पहले कुंभ और बाकी संत सम्मेलनो में संघ प्रमुख भागवत खुलकर इस मुददे पर कह चुके है लेकिन मोदी सरकार ने पांच साल तक केवल अदालत के फैसले का ही रुख रखा और अब चुनाव में भी राममंदिर कही मुददा नही जाहिर है संघ के कई वरिष्ठों को पसंद नही पर वो चुप है .
राष्ट्रवाद .. NATIONAL ISSUES
पुलवामा और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद संघ की तरफ से सरकार के समर्थन में बयान तो आये लेकिन आगे इसे नही बढाया गया .संघ के कैडर और शाखाओं में इस पर प्रबोधन नही किया गया .जाहिर है सेना की तो तारीफ है लेकिन पीएम मोदी अकेले को इसका श्रेय देना शायद संघ की नीति और नीयत दोनो नही है .
असम और इस्लामिक आतंक ASSAM AND ISLAMIC TERROR
संघ हमेशा से असम में घुसपैठ और इस्लामिक आतंकवाद के मुददे पर हर बार बोलता रहा है लेकिन चुनाव में संघ ने पूरी तरह से चुपपी साध ली है . हो सकता है इसकी वजह असम में एनआरसी को लेकर बवाल और संघ पर हिंदुतववादी नीतियों को लेकर उठते सवाल है . यहां तक कि संघ पर आतंक फैलाने के आरोप और साधवी प्रग्या के चुनाव मैंदान मे उतरने के बाद भी संघ चुप है . तीन राज्यों की हार के बाद संघ ने खुद बीजेपी के साथ बैठक मे सलाह दी थी कि स्थानीय मुददो को ही ज्यादा प्राथमिकता दी जाये लेकिन चुनाव इसके उलट केवल राष्ट्रीय मुददो पर ही हो रहा है .
किसान की खराब हालत FARMERS
किसान संघ और बाकी संगठन लगातार किसानों की खराब हालत , खेती में सुधार और समर्थन मूलय की बात उठाते रहे है लेकिन ये पहला मौका है जब सरकार खुद इस मुददे पर बैकफुट पर है सिवाय कर्जमाफी के किसी और मुददे पर सरकार किसानों के मुददे पर नही बोल पा रही है . संघ भी इस मुददे पर चुप है क्योकि अगर बोलेगे तो बात सरकार के खिलाफ ही जायेगी.
गंगा की सफाई . GANGA
पांच साल पहले सरकार बनने पर सरकार के साथ साथ संघ ने भी गंगा की सफाई और अविरल गंगा की बात की थी .करोडों रुपये बहा दिये गये और गंगा की सफाई के नाम पूजा तो हुयी लेकिन अविरल गंगा अभी दूर है . संघ में इस बात को लेकर खासी नाराजगी है कि गंगा सफाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ. संघ के ही सुझाव पर नितिन गडकरी को कमान भी दी गयी लेकिन गडकरी भी कुछ नही कर पाये क्योंकि कंट्रोल तो पीएमओ के पास ही ही था .
जाहिर है तमाम ऐसे मुददे है जिन पर संघ को लगता है कि उसे बोलना चाहिये लेकिन वो चुप है . कैडर को भी कोई साफ संदेश नही दिया जा रहा है यानि कैडर चाहे तो अपना फैसला कर सकता है. ये चुप्पी भारी भी पड सकती है