राज्यपाल साहेब कुछ तो संविधान का ख्याल करें..
मैं उदधव बाला साहेब ठाकरे संविधान का पालन करने की शपथ लेता हूं . ये शपथ खुद राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी ने ही दिलाई थी और अब वो खुद ही मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कह रहे हैं कि क्या आप धर्मनिरपेक्ष होने का सवाल कर रहे हैं. समझ नहीं आता कि राजभवन में रहकर राज्यपाल साहेब ने शायद बहुत दिनों से भारत के धर्मनिरपेक्ष होने का पैरा नहीं पढा और वो खुद ही हिंदुत्ववादी होने की सलाह भी दे रहे हैं.
वैसे अगर राज्यपाल साहेब ये मानते है कि भारत अब धर्मनिरपेक्ष नहीं रहा और उसको हिंदुत्ववादी हो जाना चाहिये तो संविधान में बदलाव कर देना चाहिये और किसी भी मुख्यमंत्री को संविधान की शपथ नहीं दिलाना चाहिये . ये तो सीधे सीधे संवैधानिक पद पर बैठे राज्यपाल साहेब अभी अपनी जिम्मेदारी भूल रहे हैं. अगर वो अपना हिंदुतववादी ऐजेंडा चलाना चाहते तो उन्हें पद छोड देना चाहिये .
शिवसेना ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी साहेब को सही संदेश दिया कि वो ऐसा कैसे कह सकते हैं. शिवसेना राजनीतिक दल के दौर पर हिंदुत्ववादी है और ये जगजाहिर है .उसका भाजपा की तरह दोहरा चेहरा नहीं है जो हिंदुत्व के सवाल पर बदलती रहती है लेकिन मुख्यमंत्री को तौर पर तो उदधव जी को संविधान का पालन करना ही होगा .एक तरफ खुद प्रधानमंत्री कह रहे है कि महाराष्ट्र में कोरोना का खतरा बढा हुआ है और दूसरी तरफ राज्यपाल साहेब मंदिर खोलने का दवाब बना रहे है .तुर्रा ये कि उत्तराखंड में मंदिर खुल गये. कौन समझाये की मुंबई में अकेले सिदधी विनायक में हर रोज जाने वालो की संख्या ही कई मंदिरो की सामूहिक भीड से ज्यादा होगा खास तौर पर त्यौहारी सीजन में संभालना मुश्किल हो जायेगा .ऐसा नहीं कि सरकार मंदिर खोलने के खिलाफ है लेकिन वो समझदारी से और पूरे एहतियात के साथ करना चाहती है .मुश्किल ये है कि राज्यपाल साहेब पूरी तरह से बीजेपी का ऐजेंडा चला रहे है .ये संयोग नहीं कि राज्यपाल साहेब ने सलाह उस दिन दी जिस दिन बीजेपी मंदिर का आंदोलन करने वाली थी और साथ में पत्र भी बीजेपी नेताओं के ही दिये .
ये प्रकरण राज्यपाल साहेब के लिए उलट साबित हो गया . बीजेपी नेताओं के दवाब में वो चिटठी लिख बैठे और संविधान को ही भूल गये . अब भी वक्त है कि सभी अपनी अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को समझें .