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क्यों है जलवायु परिवर्तन संचार अत्यधिक जटिल? एक दृष्टि कोण मीडिया पत्रकार के नज़रिये से

                               प्रियंका सिंह राज

  जलवायु परिवर्तन दशकों से एक गंभीर विषय रहा है; हालाँकि हमने जलवायु परिवर्तन के विषय को समझने के लिए शायद ही कोई परिमाण उत्पादक ज्ञान शुरू किया है। पर्यावरण का आज का बदलता परिदृश्य चिंता का विषय है। संस्थागत क्षेत्र जलवायु परिवर्तन की आदतों को विकसित करने और पर्यावरण की बिगड़ती जीवन शैली को बदलने के लिए पर्यावरण-जीवन शैली को अपनाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं। जलवायु में हो रहे बदलाओं का कारण, लोगो को असहाय रूप से मोजुदा स्थिति को समझने के लिए उत्सुक कर रही है। कठनाई यह है कि, मीडिया हमें जानकारी देने का विरोधाभासी अथवा भ्रामिक माध्यम बनता जा रहा। जनता की नजर में कई बार विषय का नजरिया बदल जाता है। मुख्यधारा मीडिया द्वारा सूचना के प्रसार को आम विचारों के साथ साझा नहीं किया जाता है, बल्कि अलग-अलग दृष्टिकोण विभिन्न विचारों की ओर ले जाते हैं और कभी-कभी कठिन तरीकों से अवगत कराया जाते हैं जो अंततः सार्वजनिक उलझन पैदा करते हैं।  जरूत यह है कि, हम पत्रकार कैसे बेहतर रूप से, संचार प्रचार कि योजना को बनाये और सही जानकारी लोगो को साझा करे।

       संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में मीडिया की तीन पारम्परिक भूमिकाएँ विशेष रूप से प्रासंगिक हैं:

  • दर्शकों व श्रोताओं को सूचित करना
  • एक प्रहरी के रूप में काम करना
  • सामाजिक मुद्दों पर मुहिम चलाना

दक्षिण पूर्व एशिया जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित है, लेकिन अधिकांश नागरिक और देश जलवायु परिवर्तन की समस्याओं का सामना करने के लिए तैयार नहीं हैं। यह आंशिक रूप से इस तथ्य के कारण है कि जलवायु परिवर्तन संचार अत्यधिक जटिल है और विभिन्न आयामों राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, मानव उन्मुख और वैज्ञानिक से संबंधित है।

मौजूदा हालत में मीडिया भ्रामिक, सूचनाओं का स्त्रोत्र बनता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर गलत सूचना और दुष्प्रचार व्यापक रूप से फैला हुआ है – और वे जलवायु संकट से निपटने में प्रगति की दिशा में प्रमुख बाधाएँ हैं। भ्रामक या भ्रामक सामग्री जलवायु विज्ञान और समाधानों की धारणा को विकृत करती है, भ्रम पैदा करती है, और अक्सर कार्रवाई में देरी या हानिकारक कार्रवाई की ओर ले जाती है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अनुसार, “जलवायु परिवर्तन पर बयानबाजी और गलत सूचना और विज्ञान को जानबूझकर अनदेखी करने से वैज्ञानिक सहमति, अनिश्चितता, अत्यावश्यकता और असहमति की गलत धारणाओं में योगदान हुआ है।”

जनसंचार माध्यम इस जटिलता को जनता तक पहुँचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विश्व स्तर पर, जलवायु परिवर्तन समाचार बड़े सांख्यिकीय महत्व के साथ बढ़ रहे हैं; हालाँकि, आँकड़े बताते हैं कि जनता को अभी भी इसके बारे में जानकारी नहीं है। यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन समाचार बड़े पैमाने पर आर्थिक प्रभावों और आपदाओं के परिणामस्वरूप हुई, हिंसा का वर्णन करने पर जोर देता है। रिपोर्टिंग में मानव-उन्मुख रिपोर्टिंग अनुपस्थित है, इसलिए समस्याओं के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने और मौजूदा और भविष्य की समस्याओं से निपटने के लिए सहयोग के निर्माण में समाचार के लिए एजेंडा सेटिंग और फ्रेमिंग महत्वपूर्ण कारक हैं।

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने पत्रकारों के लिये एक पुस्तिका तैयार की है, जिसके अनुसार आम धारणा ये है कि जलवाय एक ऐसा मुद्दा है, जिससे उपजी चिन्ताओं से अख़बार बेचे जा सकते हैं और नए पाठकों को ऑनलाइन व रेडियो पर आकर्षित किया जा सकता है   मगर, इसके विपरीत पत्रकारों को जलवायु बदलाव की अच्छी कहानियाँ कहने के लिये अपने शीर्षकों में जलवायु लिखने की ज़रूरत नहीं है 

जलवायु परिवर्तन की अवधारणा को समझने के लिए जलवायु परिवर्तन संचार एक बहुत ही आवश्यक दायित्व है। यह सबसे प्रचारित अवधारणा रही है, फिर भी जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए कोई गहरा सिद्धांत नहीं रहा है। इसी तरह के संदर्भ में, हमें जलवायु परिवर्तन के वर्तमान परिदृश्य की सर्वोत्कृष्ट घटना का प्रचार करने के लिए एक वैज्ञानिक के रूप में नहीं बल्कि एक संचारक और शोधकर्ताओं के रूप में जलवायु संचार के संदर्भ का प्रसार करने की आवश्यकता है।

बहुत कुछ बोला गया है, बहुत कुछ चर्चा की गई है, बहुत कुछ कहा गया है, संचार के विभिन्न माध्यमों से बहुत कुछ आबाद किया गया है। लेकिन हम अभी भी जलवायु परिवर्तन के उचित संचार में पीछे हैं।

आज की दुनिया में जलवायु परिवर्तन संचार निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि हम जानते हैं कि पर्यावरणीय आपदा एक सत्य है जो अपने समय पर आएगी। विभिन्न विद्वान और वैज्ञानिक जलवायु संकट की खतरनाक स्थिति को व्यक्त करने के तरीकों की कोशिश कर रहे हैं। यह कहते हुए कि जलवायु संचार केवल परिणामों के बारे में बात  करना नहीं है, बल्कि एक ही विचारधारा पर एक साथ काम करना है। इस संदर्भ में अलग-अलग दिशाओं से आने वाली विभिन्न योजनाओं पर चर्चा करने के लिए एजेंडे और समाधान पर एक साथ कार्य करना है।

जलवायु परिवर्तन आज मानव जाति के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। यह भयावह है, यह भयानक है, और दुनिया के कई क्षेत्रों में यह युद्ध में तब्दील होने के कगार पर है। दुनिया भर के लोग पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहे हैं और गंभीर खतरे में हैं। संकट के इस पूरे दौर में तीन थीम चलती हैं। सबसे पहला, जलवायु परिवर्तन एक मानव अधिकार संकट है । दूसरा, राजनीतिक और व्यापारिक नेताओं को हरित जीवन शैली अपनाने की जिम्मेदारी को पहचानना चाहिए और जलवायु कार्य योजना के संदर्भ में हरित जीवन के दर्शन को बढ़ावा देना चाहिए। तीसरा, इस बात के बढ़ते प्रमाण हैं कि जीवाश्म ईंधन उद्योग जलवायु संकट के लिए महत्वपूर्ण रूप से जिम्मेदार है और उसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

यह बहुत स्पष्ट है कि दुनिया जलवायु आपदा के कगार पर है। सार्वजनिक जुड़ाव जलवायु परिवर्तन की प्रतिक्रिया का एक महत्वपूर्ण पहलू है। जैसा कि जलवायु परिवर्तन में गलत सूचना में तेजी से वृद्धि हुई है; यह जलवायु परिवर्तन संशयवाद  और विरोधाभास से निकटता से जुड़ा हुआ है। जलवायु संकट का मुकाबला करना और गलत सूचनाओं को हटाना दो केंद्रीय और अन्योन्याश्रित चुनौतियां हैं जिनका मानवता आज सामना कर रही है। ऐसे में आम आदमी के नजरिए से “क्लाइमेट चेंज की अवधारणा करना समय की मांग है। साथ ही यह वह समय है कि इक्कीसवी सदी के दूसरे-दशक के क्लाइमेट चेंज से पर्याप्त रूप से निपटना है।

आखिर क्यों ?

जलवायु परिवर्तन पर अनगिनत विचारों का आदान-प्रदान किया गया है, कई अहम् जलवायु परिवर्तन विषयों का पता लगाया गया है, कई प्रकार के विषय-विचार  को व्यक्त किया गया है और संचार के विभिन्न रूपों के माध्यम से बहुत से लोग जुड़े हुए हैं। दुर्भाग्य से, हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ठीक से संप्रेषित करने में पिछड़ते जा रहे हैं।  मौजूदा हालत में मीडिया भ्रामिक, सूचनाओं का स्त्रोत्र बनता जा रहा है। भ्रामक और गलत जानकारी की रोकथाम बेहद जरूरी हो गयी है ।

IPCC वैज्ञानिकों ने माना है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये निष्पक्ष व कारगर क़ानून तैयार किए जाने आवश्यक हैं। सामाजिक स्वीकार्यता के लिये यह भी ज़रूरी है कि समता व न्याय पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया जाए

 

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