इस्लाम को बदलने की नहीं असली इस्लाम की जरुरत
पैंगबर मोहम्मद साहेब के जन्मदिन यानि ईद ए मिलादुन्नबी ऐसे मौके पर आयी है जब दुनिया भर में एक नई बहस छिडी हुयी है कि क्या इस्लाम को बदलने की जरुरत है. ये बहस फ्रांस में ईसाई टीचर और उसके बाद तीन लोगों की हत्या के बाद और तेज हो गयी है तो इस्लामिक विश्व के कटटरपंथी नेता जोर दे रहे कि इस्लाम में कोई बदलाव की जरुरत नहीं बल्कि उसको बचाने के लिए सब एकजुट हों.
ऐसे में ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या सचमुच इस्लाम इतना कमजोर है कि किसी एक के कार्टून बनाने या किसी दिखावे पर रोक लगाने से उसका नुकसान हो जायेगा. मेरे हिसाब से तो इस समय कटटपंथी इस्लाम के बजाय मोहम्मद साहेब के बताये असली इस्लाम को वापस लाने की जरुरत है जो उस समय के कटटरपंथ के खिलाफ ही पनपा था .
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक इस्लाम के तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख, 571ईं. के दिन ही इस्लाम के सबसे महान नबी और आखिरी पैगंबर का जन्म हुआ था. जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस साल 30 अक्टूबर को है.
पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का पूरा जीवन मानवता की सेवा में गुजरा। जब हजरत साहब का जन्म हुआ, उस समय अरब देश की सामाजिक स्थिति बहुत खराब थी। महिलाओं का कोई सम्मान नहीं था। लोग अपनी पुत्रियों को जिंदा दफन कर देते थे। कबीलों के लोग आपस में लड़ते रहते थे। जिसमें हजारों लोग जान से हाथ धो बैठते। लोग शराब और जुए के आदी हो चुके थे। आपसी भाईचारा और प्यार-मोहब्बत खत्म हो चुकी थी। इन बुराइयों के ख़िलाफ बाद में हज़रत साहब ने पहल की थी।जन्म के पहले ही हज़रत साहब के पिता का निधन हो गया था और छह साल की उम्र में उनकी मां भी नहीं रहीं। उनका लालन-पालन उनके चाचा हजरत अबू तालिब ने किया। उन्होंने अपने से 15 साल बड़ी विधवा महिला हज़रत ख़दीजा से शादी की। उस समय यह बड़ी प्रगतिशीलता की बात थी, क्योंकि तब विधवा महिलाओं की समाज में इज्ज़त नहीं थी। इससे समाज में संदेश गया कि विधवा स्त्री को भी पूरा सम्मान देना चाहिए। हज़रत मोहम्मद ने महिलाओं पर हो रहे जुल्म को रोका और महिलाओं को समाज में इज्ज़त की ज़िंदगी मिली। उन्होंने कहा कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने फ़रमाया है कि और सुस्त ना हो और ग़म ना खाओ तुम ही सरबुलन्द (ग़ालिब)रहोगे अगर तुम मोमिन हो यानि अल्लाह तआला ने मुसलमानों की सरबुलन्दी का वायदा किया। हम मुसलमान तभी अल्लाह की नज़र में मोमिन हैं जब हम अल्लाह के सिवाय किसी दूसरे से ख़ौफ़ न रखते हों और न ही अल्लाह के सिवाय किसी दूसरे से कोई उम्मीद रखते हों।
पैगंबर साहब के इस्लाम की पहली ही शर्त ये थी कि तुम किसी को परेशान न करो और जहां तक हो सके पड़ोसी से लेकर हर जरुरतमंद की मदद करो . उनके इस्लाम में जिहाद का मतलब कुरीतियों से लडना था ना कि हथियार उठाकर किसी भी निर्दोष को मार देना.
पैगंबर हजरत मोहम्मद के पवित्र संदेश…
सबसे अच्छा आदमी वह है
जिससे मानवता की भलाई होती है
जो ज्ञान का आदर करता है
वह मेरा आदर करता है
विद्वान की कलम की स्याही
शहीद के खून से अधिक पाक है
अत्याधिक ज्ञान अत्याधिक इबादत से बेहतर है
दीन का आधार संयम है
ज्ञान को ढूंढने वाला अज्ञानियों के बीच
वैसा ही है जैसे मुर्दों के बीच जिंदा
मजदूर को उसका मेहनताना
उसके पसीने के सूखने से पहले दे दें
वह आदमी जन्नत में दाखिल नहीं हो सकता
जिसके दिल में घमंड का एक कण भी मौजूद हो
जिसके पास एक दिन और एक रात का भी खाना है
उसके लिए भीख मांगना मना है
सबसे अच्छा मुसलमान घर वह है
जहां यतीम पलता है
सबसे बुरा मुसलमान घर वह है
जहां यतीम के साथ दुर्वव्यवहार किया जाता है
पैगंबर मोहम्मद के पवित्र संदेश
भूखे को खाना दो, बीमार की देखभाल करो
अगर कोई अनुचित रूप से बंदी बनाया गया है तो उसे मुक्त करो
आफत